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जादोपटिया और पाटकर चित्रकला को बचाने में जुटा आरयू, सिलेबस के तहत होगी पढ़ाई

रांची विश्वविद्यालय ने विलुप्ति की कगार पर पहुंची जादोपटिया और पाटकर चित्रकला को बढ़ावा देने के उद्देश्य से फाइन आर्ट्स डिपार्टमेंट के तहत इसे पढ़ाने को लेकर एक योजना बनाई है. इन चित्रकलाओं को उचित प्लेटफार्म देने और इन्हें बचाने के उद्देश्य से रांची विश्वविद्यालय ने फाइन आर्ट्स डिपार्टमेंट के तहत इसकी पढ़ाई शुरू करवाने की तैयारी कर रही है.

ru will be taught jadopatia and patekar painting
रांची विश्वविद्यालय

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Published : Jun 12, 2021, 3:23 PM IST

रांची:विश्वविद्यालय लगातार अपने विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास को लेकर कुछ ना कुछ नए प्रयोग करता रहता है. इस बार फिर विश्वविद्यालय प्रबंधन की ओर से विलुप्ति की कगार पर पहुंचे जादोपटिया और पाटकर चित्रकला को बढ़ावा देने के उद्देश्य से फाइन आर्ट्स डिपार्टमेंट के तहत इसे पढ़ाने को लेकर एक योजना बनाई गई है.

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जल्द शुरू होगी पढ़ाई

गौरतलब है कि झारखंड की पुरानी परंपरा और कलाओं को संजोने के उद्देश्य से कई काम हो रहे हैं लेकिन कुछ ऐसे भी चित्रकला हैं जो विलुप्ति की कगार पर हैं. इनमें जादोपटिया और पाटकर चित्रकला शामिल है. हालांकि अब एक बार फिर इन चित्रकलाओं को उचित प्लेटफार्म देने और इन्हें बचाने के उद्देश्य से रांची विश्वविद्यालय ने फाइन आर्ट्स डिपार्टमेंट के तहत इसकी पढ़ाई शुरू करवाने की तैयारी कर रही है.

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सिलेबस भी तैयार

डिपार्टमेंट ऑफ परफॉर्मिंग एंड फाइन आर्ट्स ने इसे लेकर सिलेबस भी तैयार कर लिया है. इन दोनों चित्रकला को कॉमन पेपर के रूप में शामिल किया जाएगा. उनको बढ़ावा देने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस के दिन हर वर्ष कार्यक्रम आयोजित हो इसे लेकर विश्वविद्यालय के एकेडमिक कैलेंडर में इसे जगह भी दिया जाएगी.

कुलपति ने दी जानकारी

रांची विश्वविद्यालय की कुलपति कामिनी कुमार ने जानकारी देते हुए कहा कि जादोपटिया और पाटकर चित्रकला लुप्त होती जा रही है और झारखंड के परिवेश में इन कलाओं का महत्व काफी है. इसे देखते हुए ही विश्वविद्यालय ने इन दोनों कलाओं को विश्वविद्यालय के तहत पढ़ाने को लेकर एक योजना तैयार की है.

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क्या है जादोपटिया चित्रकला

जादोपटिया झारखंड बिहार की सीमा के निवासी संथाल जनजाति के लोगों की चित्रकला है जो इस समाज के इतिहास और दर्शन को पूरी तरह अभिव्यक्त करने की क्षमता रखती है. चित्रकला की शैली को कपड़े या कागज पर बनाया जाता है.

कपड़े पर सुई धागे से सिलाई कर 5 से 20 फीट लंबा और डेढ़ या 2 फीट चौड़ा एक पाठ तैयार किया जाता है. उसके बाद इसमें झारखंड की संस्कृतियों को उकेरा जाता है. सदियों पुरानी ये परंपरा फिलहाल विलुप्त की कगार पर है लेकिन एक बार फिर इस कला को जिंदा करने का प्रयास रांची विश्वविद्यालय कर रहा है.

क्या है पाटकर चित्रकला

दूसरी ओर पाटकर पेंटिंग पेड़ की छाल और पत्तों के रंग से बनाई जाती है. इस कला को बचाने के लिए पर्यटन विभाग ने भी कुछ साल पहले एक गांव को पर्यटन गांव घोषित कर इसकी उत्थान की कोशिश की थी लेकिन उसके बाद इस ओर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. रांची विश्वविद्यालय में इन दोनों विषयों की जानकारी देश-विदेश तक पहुंचेगी.

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