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कैसे होगा आदिवासियों का उत्थान, शोध संस्थान में नहीं हैं रिसर्चर

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Published : Aug 31, 2021, 12:54 PM IST

Updated : Aug 31, 2021, 11:05 PM IST

झारखंड में आदिवासियों के उत्थान और जनजातीयों पर शोध के लिए रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान (TRI) की स्थापना की गई है. लेकिन सरकार की अनदेखी से संस्थान अपना मकसद पूरा नहीं कर पा रहा है.

Ramdayal Munda Tribal Research Institute have no researchers in ranchi
रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान

रांचीःझारखंड के सत्ता के गलियारे में आदिवासियों के विकास की बातें तो खूब सुनने को मिलती हैं. लेकिन इसके लिए किए जा रहे प्रयासों का अंदाजा रांची के मोरहाबादी इलाके में स्थापित टीआरआई यानी ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट की हालत से ही लगाया जा सकता है.

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सरकार की उपेक्षा से संस्थान बदहाल

रांची के मोरहाबादी इलाके में रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान (Ramdayal Munda Tribal Research Institute, TRI) की स्थापना 31 अक्तूबर 1953 को की गई थी. यह केंद्र सरकार की पहल पर जनजातीयों के विकास और शोध को बढ़ावा देने के लिए स्थापित चार संस्थानों में से एक है. टीआरआई सरकार को जनजातीय समाज के सर्वांगीण विकास के लिए शोध आधारित रिपोर्ट मुहैया कराती है. ताकि सरकार इसके आधार पर जरूरी योजना बना सकें. लेकिन सरकार की उपेक्षा से यह संस्थान बदहाल है.

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सिर्फ 17 कर्मचारी बचे

TRI (टीआरआई) के असिस्टेंट डायरेक्टर राकेश रंजन उरांव ने बताया कि संस्थान में पदाधिकारियों-कर्मचारियों के 58 पद स्वीकृत हैं. लेकिन धीरे-धीरे कर्मचारी और पदाधिकारी सेवानिवृत्त होते गए, लेकिन रिक्त पदों को भरने की कोशिश नहीं की गई. यही वजह है कि 58 सृजित पदों के मुकाबले फिलहाल संस्थान में मात्र 17 कर्मचारी और पदाधिकारी कार्यरत हैं. निदेशक के पद पर सेवा दे रहे रनेद्र कुमार भी सेवानिवृत्ति हो चुके हैं. इससे संस्थान के मुखिया का भी पद खाली हो गया. ऐसे में बिना कर्मचारी और शोध स्टाफ के नियुक्ति के यहां शोध कार्य कैसे होगा यह बड़ा सवाल है.

संस्थान में 41 पद रिक्त

  • निदेशक का पद खाली
  • उप निदेशक के 3 पद खाली
  • सहायक निदेशक के 5 पद खाली
  • शोध पदाधिकारी के 6 पद खाली
  • शोध अन्वेषक के 5 पद खाली

रिक्त पदों को भरने की मांग

अखिल भारतीय आदिवासी परिसंघ के प्रदेश अध्यक्ष एलएम उरांव का कहना है कि झारखंड में कुल आबादी का 26 फीसदी अनुसूचित जनजातियों की आबादी है. उनकी भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज और उनकी विभिन्न समस्याओं की शोध रिपोर्ट तैयार कर सरकार को देना इस संस्थान का मूल दायित्व है. लेकिन बिना शोध पदाधिकारी और शोध अन्वेषक के संस्थान कैसे अपनी जिम्मेदारी निभाएगा. यहां शोध पदाधिकारियों के छह में से छह और शोध अन्वेषक के छह में से पांच पद खाली हैं. अखिल भारतीय आदिवासी परिसंघ के प्रदेश अध्यक्ष एलएम उरांव ने बताया कि राज्य सरकार को पत्र लिखकर शोध संस्थान में रिक्त पदों को जल्द भरने का मांग की है. लेकिन यह मालूम नहीं की यहां कब तक नियुक्ति हो सकेगी.

टीआरआई में पद खाली होना चिंता की बातः बंधु तिर्की

टीआरआई की स्थिति पर कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और विधायक बंधु तिर्की ने भी दुख जताया है. उनका कहना है यह बहुत ही चिंता की बात है कि झारखंड में जिन आदिवासियों की बात सरकार करती है उन पर शोध करने वाली संस्था में पदाधिकारियों और अधिकारियों की घोर कमी है. यहां तक की निदेशक का पद भी खाली है. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को लेकर मैं राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात करूंगा और जल्दी ही पद भरवाने की गुजारिश करूंगा.

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चार संस्थानों में से एक

भारत सरकार के निर्देश पर देश के जिन चार राज्यों में जनजातीय शोध संस्थान स्थापित किए गए थे, झारखंड उनमें से एक है. यहां जनजातीय संग्रहालय और पुस्तकालय भी है. यहां आदिवासी संस्कृति और उनकी जीवन शैली को समझा जा सकता है. लेकिन इस संस्थान की अनदेखी सरकारी कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े करती है.

टीआरआई की बातें

  • 31 अक्तूबर 1953 को हुई थी टीआरआई की स्थापना
  • सरकार को जनजातियों पर शोध आधारित रिपोर्ट मुहैया कराना काम
  • 58 पद स्वीकृत हैं टीआरआई के लिए
  • 17 कर्मचारियों के भरोसे चलाया जा रहा काम
Last Updated : Aug 31, 2021, 11:05 PM IST

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