रांची: देश की आजादी के 70 साल बाद बाद भी झारखंड के कई ऐसे स्कूल हैं जहां पीने का पानी उपलब्ध नहीं है. राज्य के ग्रामीण क्षेत्र के साथ-साथ कई शहरी क्षेत्र में भी शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है ही नहीं. ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी रांची के ही शहरी क्षेत्र के ऐसे कई स्कूलों की पड़ताल की है, जहां शुद्ध पेयजल के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है, जबकि कई ऐसी योजनाएं हैं जो इस परेशानी को दूर करने के लिए संचालित की जा रही है, लेकिन योजना धरातल पर नहीं उतर सकी है.
अधिकारियों का बड़े-बड़े दावे
राज्यभर में सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ी केद्रों को भी कई योजनाओं से जोड़ा गया है, ताकि यहां तक शुद्ध पेयजल पहुंचाई जा सके. राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के अधिकारी बड़े-बड़े दावे तो जरूर करते हैं, लेकिन उन दावों की पोल उस वक्त खुल गई जब ईटीवी भारत की टीम ने कई स्कूलों का जायजा लिया. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के कई स्कूलों में भी शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं है. कई स्कूलों में खानापूर्ति के नाम पर RO और वाटर फिल्टर लगाया तो गया है, लेकिन इसका उपयोग सिर्फ शिक्षक और स्कूल के कर्मचारी ही करते हैं. विद्यार्थियों को शुद्धा पानी नसीब नहीं होता है, जबकि केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सभी राज्यों को शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करने के लिए विशेष पहल करने की अपील की है और इसे देखते हुए पेयजल एवं स्वच्छता विभाग भी इस दिशा में आगे बढ़ने की बात कही थी. जल जीवन मिशन का टारगेट पूरा करने का भी निर्देश कई महीने पहले ही दिया गया है, लेकिन ना तो जल जीवन मिशन इन स्कूलों तक पहुंचा है और ना ही विभागीय स्तर पर ही विद्यार्थियों को शुद्ध पेयजल देने के लिए कोई व्यवस्था ही की गई है. केंद्रीय स्तर पर कुछ स्कूलों में वाटर फिल्टर जरूर लगाए गए हैं, लेकिन यह वाटर फिल्टर हाथी का दांत साबित हो रहे हैं.
धरातल पर नहीं है और योजनाएं
जानकारी के अनुसार पेयजल विभाग की ओर से 100 दिनों में सभी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्र में नल से जल की सुविधा उपलब्ध कराने संबंधी एक पत्र भी जारी हुआ है, लेकिन यह पत्र फिलहाल कहां है इसकी जानकारी अधिकारियों को नहीं है. हालांकि, शिक्षा पदाधिकारी यह जरूर कहते हैं कि शहरी क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था कर दी गई है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है. ग्राउंड लेवल पर शहरी क्षेत्र के भी किसी भी सरकारी स्कूल में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं है. आंगनबाड़ी केंद्रों का तो और बुरा हाल है. शहर के बीचोबीच स्थित बाल कृष्णा प्लस टू स्कूल और जिला स्कूल की भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है. इन दोनों स्कूलों में पेयजल की व्यवस्था करने की बात तो कही जा रही है, लेकिन विद्यार्थियों को शुद्ध पेयजल पीने को नहीं मिलता है और यहां के विद्यार्थी भी यह बात कहते हैं, जबकि शिक्षक और प्रधानाध्यापक कुछ और ही कहते हैं. विभाग की नाकामियों को छिपाने के लिए स्कूल के शिक्षक और प्रधानाध्यापक भी काफी एक्टिव हैं. शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों से जब इस मामले में जानने की कोशिश की गई कि क्या राज्यभर के सरकारी स्कूलों में पीने योग्य पानी की सुविधा के बारे में कोई अध्ययन अब तक किया गया है. तब उनके पास भी माकूल कोई जवाब नहीं मिला. रिपोर्ट देने की बात कहकर पदाधिकारी भी अपना पल्ला झाड़ते रहे और अंततः उनके पास भी कोई जवाब नहीं मिला और ना ही पीने के पानी की सुविधा व्यवस्थित करने के लिए ही कोई योजना पर अब तक बेहतर तरीके से काम ही किया जा सका है.
आंगनबाड़ी केंद्र में पेयजल समस्या ये है योजना कोरोना महामारी का हवाला देकर एक बड़ी समस्या को बार-बार नजरअंदाज किया जा रहा है. वहीं अगर योजनाओं की बात करें तो राज्य में 38,432 आंगनबाड़ी केंद्र है. सरकारी स्कूलों की संख्या 50 हजार है. इनमें से 43.7 फीसदी अपर प्राइमरी, 8.2 फीसदी माध्यमिक और 2.6 उच्चतर माध्यमिक स्कूल हैं. इन स्कूलों में वाटर टेप के जरिए शुद्ध पेयजल पहुंचाने की योजना है, लेकिन यह योजना पत्र के माध्यम से इस विभाग से उस विभाग का चक्कर काट रहा है. इसके अलावा राज्य के सभी स्कूलों और आंगनबाड़ी केद्रों में नल से जल के जरिए शुद्ध पेयजल मुहैया कराने की भी योजना है, साथ ही सामाजिक और सार्वजनिक संस्थानों के माध्यम से भी पेयजल की व्यवस्था सरकारी स्कूलों में कराने को लेकर राज्य सरकार ने योजना बनाई है, जबकि ये योजनाएं दूर-दूर तक क्रियान्वयन होता नहीं दिख रहा है. जलापूर्ति योजना से भी स्कूलों को जोड़ने की योजना है. गांव टोला में पेयजल आपूर्ति योजना के माध्यम से नजदीकी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में योजना विकसित करने का प्लान है. वहीं आदिवासी बहुल ग्रामीण दुर्गम इलाकों में सोलर वाटर स्कीम के तहत नल से जल कनेक्शन दिया जाना है और यह भी योजना अभी भी ठंडे बस्ते में ही है.
सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश
सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्कूलों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का निर्देश सभी राज्य सरकारों को दिया है. दायर एक जनहित याचिका में सभी स्कूलों में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने का निर्देश जारी किए गए थे. इस याचिका में उपलब्ध जल में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक आर्सेनिक, फ्लोराइड जैसे तत्वों के नियमित जांच की भी मांग की गई थी. सरकार ने लगभग 70 फीसद स्कूलों में चापानल तो लगा दिए हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश खराब है, तो कहीं का पानी काफी खराब आता है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि विद्यार्थियों के जीवन के साथ कितना खिलवाड़ किया जा रहा है.
इसे भी पढे़ं:-विश्व के हर कोने में पहुंचेगी झारखंड की खुशबू, दीदियों की मेहनत पर चढ़ेगा पलाश का रंग, अमेजन और फ्लिपकार्ट देंगे प्लेटफॉर्म
पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने भी बनाई थी योजना
पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने झारखंड के शौचालय और पेयजल विहीन सरकारी स्कूलों को बंद कर समायोजित करने का एक फैसला लिया था. जिन स्कूलों में शौचालय पेयजल है उन स्कूलों में विद्यार्थियों को शिफ्ट करने की बात कही गई थी. यह योजना कुछ हद तक धरातल पर भी उतारा गया था. तमाम उपायुक्त और विकास आयुक्त भी अपने स्तर पर इस योजना की मॉनिटरिंग कर रहे थे, लेकिन फिलहाल यह योजना भी ठंडे बस्ते में ही है और आज भी सरकारी स्कूलों के बच्चे शुद्ध पेयजल की अव्यवस्था के कारण रोजाना दो-चार होते हैं. कोरोना महामारी समाप्त होने के बाद स्थिति और विकट होगी, क्योंकि कई स्कूलों में पेयजल की व्यवस्था फिलहाल पूरी तरह ठप है. इनमें शहरी क्षेत्र के स्कूल भी शामिल हैं.