रांची:कोरोनाकाल में सिर्फ शिक्षण (ट्यूशन) शुल्क लेने के सरकारी आदेशों को निजी स्कूलों ने धता बता दिया है. स्कूल प्रबंधन शिक्षण स्कूल समेत अनेक मदों के नाम पर अभिभावकों से मोटी रकम वसूल रहा है. इससे अभिभावकों पर पढ़ाई बोझ बन गई है और जांच के लिए बनाई गई सरकारी समितियां खानापूर्ति मात्र बनकर रह गईं हैं.
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पिछले डेढ़ वर्षों में कोरोना के कारण लोगों के रोजगार प्रभावित हुए हैं. किसी की नौकरी छूट गई है तो कारोबार प्रभावित होने से किसी की आमदनी घट गई है. इस दौरान अभिभावकों की परेशानियों को कम करने के लिए राज्य सरकार ने निजी स्कूलों को सिर्फ शिक्षण शुल्क लेने के आदेश दिए थे, लेकिन स्कूलों ने इन आदेशों को धता बता दिया. शिक्षण शुल्क के अलावा कई मदों में अभिभावकों से मनमानी फीस वसूली (Private schools in Jharkhand are charging huge amount on parents)जा रही है. हाल यह है कि बच्चों के दाखिले के नाम पर 20 हजार से 60 हजार तक की फीस ली जा रही है. ऐसे में यदि किसी अभिभावक के दो बच्चे पढ़ रहे हैं तो हालात को समझना मुश्किल नहीं है.
शिक्षा मंत्री के दावे हुए हवा-हवाई
स्कूलों की मनमानी फीस वसूली को लेकर शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने एक कमेटी गठित कर पूरे मामले की जांच कराने की बात कही थी. लेकिन अब तक न कमेटी का पता चला और न ही उसकी जांच का. उपायुक्त स्तर पर गठित कमेटी ने भी फिलहाल इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया है.
फीस के लिए बेचना पड़ रहा इलेक्ट्रॉनिक सामान
इधर, विद्यार्थियों के लिए पढ़ाई का खर्च उठाना परेशानी भरा बन गया है. नतीजतन तमाम विद्यार्थी पढ़ाई के साथ कुछ काम करने की फिक्र में लगे हैं. ऐसे ही एक विद्यार्थी सतेन्द्र यादव ने ईटीवी भारत की टीम को बताया कि उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. स्कूल की फीस और पढ़ाई का खर्च उठाना उसके लिए मुश्किल हो रहा है. नतीजतन वह पढ़ाई के साथ फुटपाथ पर इलेक्ट्रॉनिक आयटम बेचता है, जिसकी आमदनी से अपनी पढ़ाई का खर्च उठा रहा है.
स्कूलों की मनमानी पर सरकार मौन
निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर झारखंड अभिभावक संघ ने भी सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार से संयुक्त रूप से इस दिशा में पहल करने की अपील की है. संघ के अध्यक्ष अजय राय की मानें तो मामले को लेकर लगातार आंदोलन किया जा रहा है. लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है. एक अभिभावक बिनोद कुमार का कहना है कि नामांकन के नाम पर स्कूल मनमानी कर रहे हैं. इससे ऐसे अभिभावक जिनके एक से अधिक बच्चे हैं, उनके लिए मुश्किल खड़ी हो गई है.