रांची: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सत्ता उनके करीबी रहे एकनाथ शिंदे के हाथों में आ गई है. भाजपा ने समर्थन देकर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया है. महाराष्ट्र की सत्ता में हुए इस अप्रत्याशित उलटफेर की चर्चा झारखंड में जोर शोर से हो रही है. बेशक, भाजपा ने एकनाथ को सीएम की कुर्सी देकर यह बताने की कोशिश की है कि बगावत की प्लॉटिंग में उसकी भूमिका होती तो सीएम की कुर्सी से कॉम्प्रोमाइज नहीं किया जाता. इसके बावजूद झारखंड में आम लोगों की जुबान पर यही सवाल है कि क्या यहां भी कुछ होने वाला है. दरअसल, 2019 में 8 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए थे. इनमें महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में भाजपा की सरकार थी. लेकिन नतीजे आने के बाद भाजपा सिर्फ हरियाणा में सरकार बना पाई.
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सरकार गिराने की दो बार हो चुकी है साजिश: करीब ढाई साल बाद एकनाथ शिंदे के सहारे महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होकर भाजपा ने दूसरी भरपाई पूरी कर ली है. क्या अब झारखंड की बारी है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद दो बार सरकार को गिराने की साजिश का मामला थाना तक पहुंच चुका है. एक प्राथमिकी जुलाई 2021 को कोतवाली थाने में दर्ज हुई थी. सीएम के करीबी और बेरमो से कांग्रेस के विधायक जय मंगल उर्फ अनूप सिंह ने आरोप लगाया था कि रांची के होटल ली-लैक में मुंबई से आए लोग विधायकों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं. हालांकि इस मामले में किसी भी विधायक को आरोपी नहीं बनाया गया. इस घटना के ठीक तीन माह बाद झामुमो के विधायक रामदास सोरेन ने जगन्नाथपुर थाने में एक शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने झामुमो से निष्कासित कोषाध्यक्ष रवि केजरीवाल पर प्रलोभन देकर सरकार गिराने की साजिश का आरोप लगाया था.
झारखंड में बहुमत का अंकगणित:महाराष्ट्र के बाद झारखंड को लेकर क्यों चर्चा हो रही है? इस सवाल का जवाब जानने से पहले यहां की सत्ता का अंकगणित जानना जरूरी है. झारखंड विधानसभा में 81 विधायक चुनकर आते हैं. सरकार बनाने के लिए 41 विधायकों का समर्थन जरूरी है. अभी झामुमो के 30, कांग्रेस के 18 और राजद के एक विधायक यानी कुल 49 विधायकों के समर्थन से सरकार चल रही है. भाकपा माले ने अपने एक विधायक का समर्थन बाहर से दे रखा है. कागज पर एनसीपी के इकलौते विधायक का भी बाहर से समर्थन प्राप्त है. दूसरी तरफ भाजपा के पास कुल 26 विधायक हैं. उसकी सहयोगी पार्टी आजसू के दो विधायक हैं. अगर निर्दलीय सरयू राय, एनसीपी विधायक कमलेश सिंह और बरकट्ठा विधायक अमित यादव का साथ मिल भी जाता है तो यह संख्या 31 पर सिमट जाएगी. ऐसे में भाजपा उसी सूरत में सरकार बना पाएगी, अगर कांग्रेस के 18 में से दो तिहाई यानी 12 विधायक उसके साथ आ जाएंगे. अब सवाल है कि यह अंकगणित कैसे पूरा होगा.
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आरपीएन सिंह और कांग्रेस का आंतरिक घमासान:आरपीएन सिंह ने झारखंड के कांग्रेस प्रभारी रहते हुए 2019 के चुनाव में पार्टी को 16 सीटों पर जीत दिलाई थी. लेकिन खानदानी कांग्रेसी रहने के बावजूद उत्तर प्रदेश चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे. झारखंड कांग्रेस के विधायकों पर उनकी जबरदस्त पकड़ रही है. उनको अच्छी तरह मालूम है कि झारखंड कांग्रेस के कौन-कौन से विधायक पाला बदलने के लिए तैयार बैठे हैं क्योंकि उनके प्रभारी रहते हुए सरकार के खिलाफ कई विधायक दिल्ली की सैर लगा चुके हैं. हालांकि जेवीएम से निकलकर प्रदीप यादव और बंधु तिर्की (अब बंधु की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की) के कांग्रेस में जाने के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या 18 हो गई है. दलबदल से बचने के लिए 12 विधायकों की जरूरत पड़ेगी. इस बीच महाराष्ट्र में शिवसेना जैसी मजबूत पार्टी में अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत ने झारखंड में तमाम संभावनाओं को जन्म दे दिया है. ऊपर से अविनाश पांडे के प्रभारी बनने के बाद राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी को लेकर झामुमो की मनमानी और निगम, बोर्ड के गठन में देरी से कांग्रेस खेमे में गुस्सा है जो कई बार पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आ चुका है.