रांचीः लॉकडाउन के दौरान झारखंड में साढ़े सात लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों की घर वापसी हुई. इनमें से कुछ ट्रेनों के जरिए लौटे तो कुछ मजदूरों को विमान के जरिए रेस्क्यू किया गया. जिन्हें कोई साधन नहीं मिला, वे पैदल ही निकल पड़े. घर वापसी के बाद रोजगार सबसे बड़ी चुनौती बनी तो मनरेगा सबसे बड़ा सहारा बना. ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम और मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने ईटीवी भारत को बताया कि झारखंड में कोरोना काल के दौरान 10 लाख जॉब कार्ड बने और 26 लाख 31 हजार लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला. इसके साथ ही पारिश्रमिक मद में 1,623 करोड़ से ज्यादा की राशि वितरित की गई.
मजदूरों की प्रतिक्रिया
इन दावों की पड़ताल के लिए ईटीवी भारत छोटानागपुर, पलामू और संताल परगना के गांवों में पहुंची. हमने मजदूरों से पूछा कि उन्हें कितना काम मिला, क्या ये काम उनकी रोजी-रोटी के लिए काफी रहा और क्या अब वे काम की तलाश में शहर नहीं जाएंगे? लोहरदगा और हजारीबाग के मजदूरों ने बताया कि उन्हें पर्याप्त काम मिल रहा है जबकि पलामू के मजदूरों ने कहा कि शुरुआती महीनों में काम मिलने के बाद अब काम नहीं मिल रहा.
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क्या कहते हैं अधिकारी
हजारीबाग के उप विकास आयुक्त अभय कुमार सिन्हा ने बताया कि मजदूरों के लिए 100 की जगह 125 दिन रोजगार मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया. केंद्र सरकार प्रायोजित गरीब कल्याण रोजगार अभियान में देशभर के 116 जिलों के साथ झारखंड के 3 जिले गिरिडीह, गोड्डा और हजारीबाग को भी शामिल किया गया. मनरेगा के तहत सार्वजनिक काम के अलावा कुछ निजी काम भी शामिल किए गए. सामुदायिक स्वच्छता, ग्राम पंचायत भवन, सड़क निर्माण, फाइबर केबल, कुआं, तालाब जैसे काम कराए गए.
आंकड़ों पर एक नजर
आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो 24 मार्च को लॉकडाउन के बाद अप्रैल महीने में 24 लाख 16 हजार 345 मानव दिवस सृजित हुए. अगले महीने मई में ये संख्या तीन गुना से ज्यादा 91 लाख 69 हजार 928 हो गए. इसके अगले महीने जून में ये आंकड़ा 1 करोड़ 40 लाख 31 हजार 763 तक पहुंच गया. जून में अनलॉक वन की शुरुआत हो गई और धीरे-धीरे प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया. इसकी तसदीक आंकड़े भी कर रहे हैं. जुलाई में 94 लाख 67 हजार 298 मानव मानव दिवस सृजित हुए जो अगस्त में घटकर 59 लाख 50 हजार 770 पर पहुंच गया. हालांकि सितंबर, अक्टूबर और नवंबर महीने में इसमें बढ़ोतरी देखी गई.
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