रांची: झारखंड की हेमंत सरकार ने उत्पाद विभाग से 3000 करोड़ राजस्व उगाही का लक्ष्य रखा है. इसके लिए नई उत्पाद नीति बनी है. छत्तीसगढ़ राज्य मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड को झारखंड राज्य बिवरेजेज कॉरपोरेशन लिमिटेड का परामर्शी एजेंसी बनाया गया है. विभागीय अधिकारियों की दलील है कि राज्य बनने के बाद सिर्फ दो वित्तीय वर्ष ऐसे रहे हैं जब लक्ष्य से ज्यादा राजस्व की प्राप्ति हुई है. साल 2018-19 में 1000 करोड़ के लक्ष्य की तुलना में 1082.18 करोड़ और 2019-20 में 1800 करोड़ लक्ष्य की तुलना में 2009.19 करोड़ राजस्व प्राप्त हुआ था.
इस वर्ष के लिए जो टारगेट सेट किया गया है, उसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है अवैध मदिरा के संचयन और बिक्री को रोकना. इसके लिए मैनपावर की जरूरत होगी. लेकिन इस मामले में यह विभाग खुद नशे में डूबा नजर आ रहा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्पाद विभाग में कुल स्वीकृत पद की तुलना में सिर्फ 17.82 प्रतिशत कार्यबल मौजूद है. विभाग में कुल 1074 पद स्वीकृत हैं. इनमें 883 पद रिक्त हैं. यानी सिर्फ 191 अधिकारी और कर्मी के भरोसे एक विभाग इतने बड़े राजस्व लक्ष्य को पूरा करने की कोशिश कर रहा है. यहां उत्पाद आयुक्त के सभी चार पद रिक्त हैं. सहायक उत्पाद आयुक्त के सात में से दो पद रिक्त हैं. उत्पाद अधीक्षक के 20 में से 14 पद रिक्त हैं. रसायन परीक्षक का एक पद है जो खाली है. अवर निरीक्षण उत्पाद के 125 में 84 पद रिक्त हैं. सहायक अवर निरीक्षण उत्पाद के 105 में 88 पद रिक्त हैं. छापेमारी के वक्त अहम भूमिका निभाने वाले उत्पाद सिपाही के 622 स्वीकृत पद की तुलना में 583 पद रिक्त पड़े हुए हैं. विभाग को 36 चालक की जरूरत है. लेकिन यहां सिर्फ दो चालक से काम चल रहा है. ऐसे में भला टारगेट कैसे हासिल होगा. हालांकि सरकार का दावा है कि रिक्त पदों को जल्द भरा जाएगा.
झारखंड में नहीं होती मदिरा की जांच: अब विभाग से जुड़े दूसरे चौंकेना वाली बात पर नजर डालते हैं. यह ऐसा राज्य है जहां के मदिरा की जांच एक मद्य निषेध वाला राज्य करता है. जी हां, बिहार के पटना में उत्पाद रसायन परीक्षक को मदिरा जांच का नमूना भेजना पड़ता है. यही नहीं अवैध या नकली शराब की जब्ती के बाद यहां के पदाधिकारियों को अभियोजन के दौरान मदिरा की जांच रिपोर्ट के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है. इसकी वजह से न सिर्फ अभियोजन प्रभावित होता है बल्कि पैसे खिलाकर रिपोर्ट बदल जाने की संभावना बनी रहती है. अब सरकार कह रही है कि जल्द से जल्द उत्पाद प्रोयगशाला स्थापित कर उत्पाद रसायन परीक्षक नियुक्त कर लिया जाएगा. अब देखना है कि यह कब तक हो पाता है.
झारखंड में सबसे ज्यादा बीयर की है डिमांड: जानकार कहते हैं कि राजस्व प्राप्ति के लक्ष्य को खपत के आधार पर तय किया जाता है. इस मामले में झारखंड का रिपोर्ट कार्ड अच्छा है. यहां साल दर साल शराब की खपत बढ़ रही है. इसको पिछले तीन वर्षों को आंकड़ों से समझा जा सकता है. वित्तीय वर्ष 2019-20 में 1.84 करोड़ एलपीएल (लंदन प्रुफ लीटर) विदेशी शराब और 3.71 करोड़ एलपीएल बीयर की खपत हुई थी. 2020-21 के कोरोना काल में कई महीने बंद के बावजूद 1.70 करोड़ एलपीएल विदेशी शराब की खपत हुई. जबकि ठंडा पेय पीने की हिदायत के बाद भी यहां लोग 2.25 करोड़ बल्क लीटर बीयर गटक गये. हालाकि 2021-22 में कोरोना के डेडली फेज के बावजूद 1.55 करोड़ एलपीएल विदेशी शराब और 2.05 बीएल बीयर की खपत हुई. हालांकि विभागीय अधिकारियों का कहना है कि टारगेट को पूरा करने के लिए अवैध और नकली शराब की खपत पर लगाम कसना होगा.
साल दर साल बढ़ती गई शराब की खपत: खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद वित्तीय वर्ष 2001-2002 में 101.98 करोड़ राजस्व मिला था. साल 2003-2004 में तो सिर्फ 94.50 करोड़ ही राजस्व प्राप्त हुआ था. राज्य बनने के बाद 12वें साल में यानी 2012-13 में पहली बार पांच सौ करोड़ से ज्यादा राजस्व प्राप्त हुआ. वक्त के साथ झारखंड में शराब का सेवन करने वालों की संख्या बढ़ती गई. इसी के साथ कम कीमत पर अवैध शराब का कारोबार भी पनपने लगा. इसी का नतीजा है कि साल 2011-12 से लेकर अबतक हर साल औसतन 1.50 करोड़ रुपए जुर्माने के रूप में वसूले जा रहे हैं. वैसे तमाम कमियों के बावजूद विभागीय मंत्री जगरनाथ महतो का कहना है कि इस साल टारगेट का रिकॉर्ड टूटेगा. लेकिन सिंपल सा सवाल है कि स्वीकृत पदों की तुलना में महज 18 प्रतिशत कार्यबल के साथ राजस्व का लक्ष्य कैसे हासिल होगा.