रांचीः झारखंड में इस वर्ष अभी तक सामान्य से 38 प्रतिशत कम बारिश (less rain in Jharkhand) हुई है. वहीं राज्य के 24 में से 09 जिलों में 50 फीसदी से भी कम बारिश हुई है. ऐसे में राज्य में खेती पर बेहद नकारात्मक असर (paddy farming affected) पड़ा है. राज्य में धान की 18 लाख हेक्टेयर में से 31-32 प्रतिशत क्षेत्र में धान रोपनी हुई है. वहीं कुल खरीफ के 28 लाख हेक्टेयर लक्षित की तुलना में 37-38 फीसदी का ही आच्छादन (Drought like situation) हो सका है.
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कम समय में तैयार होने वाली वेराइटी की धान लगा रहे किसानः राज्य में देर से आई मानसून और कम बारिश की वजह (less rain in Jharkhand) से धान की खेती करने वाले किसानों की काफी परेशानी हुई. इसको देखते हुए कृषि निदेशालय और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने राज्य के अन्नदाताओं को सलाह दी थी. किसान 120 दिन से कम समय में तैयार होने वाले धान की किस्में, जिसमें सहभागी, आईआर 64DRT, अंजली, वंदना, बिरसा विकास धान के प्रभेद लगाएं. जो ना सिर्फ कम समय में तैयार होता है बल्कि कम बारिश में भी अच्छी पैदावार देती है. कृषि वैज्ञानिकों की सलाह मानते हुए राज्य के किसान 15 अगस्त के बाद भी कम दिनों और कम पानी में हो सकने वाले धान के प्रभेद (paddy which get ready in 100 days) लगा रहे हैं. किसानों को उम्मीद है कि कम बारिश में भी वह इससे उतना उपज ले लेंगे कि एक साल तक घर में अन्न की कमी नहीं होगी.
मानसून की अपडेट रिपोर्टः मौसम केंद्र रांची से जारी मानसून की अपडेट रिपोर्ट के अनुसार अभी भी राज्य में सामान्य से 38 फीसदी कम बारिश हुई है. 18 अगस्त तक राज्य में सामान्य औसत बारिश 689.8 मिलीमीटर की जगह 428.8 MM बारिश ही हुई है. राज्य के 24 में से दो जिले पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम को छोड़ दें तो बाकी 22 जिलों में कम मानसून की बारिश से स्थिति बेहद खराब है, उसमें से भी 09 जिले ऐसे हैं जहां सामान्य से 50 फीसदी या उससे अधिक कम बारिश हुई है. इन जिलों में धान की रोपनी बेहद कम (paddy farming affected) हुई है.
पलामू, गढ़वा, चतरा, पाकुड़, साहिबगंज, दुमका जैसे कई जिले हैं जहां त्राहिमाम स्थिति है. वहीं धनबाद, देवघर, बोकारो में सामान्य से 32 फीसदी कम बारिश हुई है. चतरा में 61 फीसदी कम, देवघर में 55 प्रतिशत कम, धनबाद में 42 फीसदी कम, दुमका, जामताड़ा, कोडरमा 50 प्रतिशत कम, पूर्वी सिंहभूम में 03 फीसदी कम, गढ़वा में 57 प्रतिश कम, गिरिडीह में 44 फीसदी कम, गोड्डा में 69 प्रतिशत कम, गुमला में गिरिडीह जैसे जिलों में भी धानरोपनी लक्ष्य से काफी कम हुई है.
देर से धान रोपनी से प्रति एकड़ कम हो जाता है पैदावारः कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धान की रोपनी में होने वाली देरी का सीधा असर धान के उत्पादन पड़ पड़ता है. अब जैसे जैसे देर होगी वैसे वैसे प्रति एकड़ धान की उपज कम होती जाएगी. लेकिन इसके बावजूद राज्य के किसान ट्यूबेल, जलाशय, पोखर या बरसाती पानी जैसे भी हो खेत में धान लगा देना चाहते हैं. क्योंकि उन्हें पता है कि यही एक फसल है जो ठीक ठाक भी उपज दे गया तो उनके घर में सालों भर अनाज की कमी नहीं होगी. यही वजह है कि राज्य में 15 अगस्त के बाद भी किसान धान रोपनी में लगे हैं. उधर कृषि निदेशालय हर जिले से 15 अगस्त तक धान और अन्य खरीफ फसलों के आच्छादन की रिपोर्ट मंगा रहा है ताकि राज्य में कम बारिश से उभरे हालात का आकलन कर आगे का फैसला किया जा सके.