रांचीः अपनी सरकार के कार्यकाल के पांचवें साल में प्रवेश कर रही हेमंत सरकार के लिए आने वाला समय बेहद ही चुनौती भरा रहेगा. चुनावी वर्ष होने की वजह से जहां राजनीतिक हैसियत बनाकर रखना मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए पहली प्राथमिकता होगी.
दूसरी ओर सरकारी स्तर पर कई ऐसे फैसले लेने होंगे जो उन्होंने 2019 के विधानसभा चुनाव में वादा किया था. झारखंड में संविदाकर्मियों को नियमित करने का मुद्दा हो या पारा शिक्षकों का मसला, सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप निर्णय लेनी होगा. इसी तरह पारा शिक्षक, पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक, वित्त रहित शिक्षाकर्मियों की मांगों को पूरा करना सरकार के लिए चुनौती भरा कार्य होगा. ऐसे संविदाकर्मियों की संख्या करीब ढाई लाख है.
दूसरा जो बड़ा मुद्दा है वह सरकारी विभागों के खाली पदों को भरने का, जिसको लेकर युवा लगातार मांग करते रहे हैं. 2019 में जनता से यूपीए नेताओं के द्वारा वादा भी किया गया था. जेएमएम, कांग्रेस और राजद ने मेनिफेस्टो के जरिए युवाओं को नौकरी का भरोसा भी दिया था. ऐसे में पांचवें साल सरकार को जेपीएससी और जेएसएससी की लंबित परीक्षा को शीघ्र आयोजित करने में तेजी लानी होगी.
तीसरी चुनौती हेमंत सरकार के लिए अबुआ आवास योजना के माध्यम से घर देने की होगी. चालू वित्तीय वर्ष के शेष बचे तीन महीने में दो लाख और वित्तीय वर्ष 2024-25 के प्रथम छमाही में ढाई लाख आवास देना चुनौती होगा. बता दें कि दूसरी छमाही में विधानसभा चुनाव होगा. ऐसे में साढ़े चार लाख आवास बनाना सरकार के लिए बेहद ही कठिन काम होने वाला है.
हेमंत सरकार की उपलब्धि और भविष्य के मुद्दे जो लगायेगी नैया पारः सबसे पहले 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति और ओबीसी आरक्षण बिल, जिसे साल 2022 में विधानसभा से पारित कर राज्यपाल को भेजा गया, जिसे राजभवन ने लौट दिया था. साल 2023 के शीतकालीन सत्र में फिर से इसे पारित कर सरकार ने राजभवन को भेजा है. अगर राजभवन फिर से इसे लौटाती है तो दूसरी बार लौटाए जाने पर मुद्दा बनेगा. सरना धर्म कोड का मुद्दा, जिसे राज्य सरकार ने विधानसभा से पारित कर फैसला केंद्र के पाले में डाला है. ओल्ड पेंशन स्कीम लागू किए जाने के फैसले के जरिए सरकारी सेवकों को आकर्षित करने की कोशिश होगी.