रांची: साल 1999, 26 जुलाई के दिन भारत के बहादुर सैनिकों ने देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी देकर पाकिस्तान के घुसपैठियों आतंकवादियों और सैनिकों को कारगिल से खदेड़ दिया था. जिसमें सैकड़ों वीर सैनिकों ने मां भारती की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. आज पूरा देश उन वीर सपूतों को याद कर कारगिल विजय दिवस मना रहा है.
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वर्ष 1999 में 3 मई से 26 जुलाई तक चलने वाले युद्ध में कई जवानों ने वीरगति को प्राप्त किया था. ऐसे ही वीर सपूतों में रांची के नागेश्वर महतो का भी नाम शामिल है. जो 13 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान देश के लिए शहीद हो गए. शहादत पाने के बाद नागेश्वर महतो के पीछे तीन बेटे, पत्नी छोड़ गए. नागेश्वर महतो के जाने का दुख सबको है लेकिन पूरा परिवार आज भी उन्हें याद कर गर्व महसूस कर रहा है.
शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी बताती हैं कि वर्ष 1981 में नागेश्वर महतो सेना में चले गए थे और तब से लगातार वो अपने देश के लिए जुनून और जज्बे के साथ काम कर रहे. लेकिन वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान बोफोर्स तोप को ठीक करने के समय पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा धोखे से की गयी बमबारी में उनके पति नागेश्वर महतो की मौत हो गयी. पाक सैनिकों द्वारा दागे गए गोले की चिंगारी उनकी आंखों में चली गई और शरीर के कई हिस्सों में बारूद लगने से वो वीरगति को प्राप्त हुए.
संध्या देवी बताती हैं कि पति के जाने के बाद 3 बच्चे और बूढ़ी मां को पालना एक चुनौती जरूर थी. लेकिन सरकारी मदद और सेना के जवान की पत्नी होने के नाते देशभक्ति के जज्बे ने उन्हें कभी निराश नहीं होने दिया. वो बताती हैं कि केंद्र सरकार की और से आर्थिक सहयोग दिया गया. जिसमें राजधानी के बिरसा चौक पर एक पेट्रोल पंप मुहैया कराया गया. लेकिन राज्य सरकार की तरफ से उनकी कोई मांग पूरी नहीं हुई है, जिसका उन्हें काफी दुख है.
शहीद नागेश्वर महतो के छोटे पुत्र आकाश महतो बताते हैं कि पिता का ना होना अपने आप में कई समस्याएं उत्पन्न करता है. क्योंकि एक पुत्र के लिए उनके पिता की छाया ही सबकुछ होता है. लेकिन उनके साथ उनके पिता की देशभक्ति की भावना आज भी उनके साथ है. उन्होंने देश के युवाओं से अपील करते हुए कहा कि ज्यादा से ज्यादा लोग सेना में सेवा अवश्य दें. उन्होंने भी अपने पिता की तरह सेना में सेवा देने का काफी प्रयास किया लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण उन्हें मौका नहीं मिल पाया.