हाजारीबाग: पूरा देश आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती मना रहा है. आजादी के आंदोलन में उनकी भूमिका और आजाद भारत के सबसे बड़े आंदोलन के नायक के रूप में उनको याद किया जा रहा है. हजारीबाग से भी उनका विशेष नाता रहा है. जब भी जेपी की बात की जाएगी तो हजारीबाग को नहीं भूला जा सकता.
दखें जेपी पर स्पेशल स्टोरी जेल से भागकर अंग्रेजों को दी थी चुनौती
हजार बागों का शहर हजारीबाग ऐतिहासिक धरती के रूप में जाना जाता है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कर्मभूमि के रूप में भी इसे जाना जाता है. जेपी भारत छोड़ो आंदोलन के सबसे बड़े सिपाही थे. जिसका गवाह स्थल हजारीबाग बना. जिसका जीता जागता प्रमाण लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा है.
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दीपावली की रात गढ़ा जा रहा था इतिहास
दीपावली की रात 9 नवंबर 1942 को जब पूरे देश में लोग अतिशबाजी कर दीपावली की खुशियां मना रहे थे, उस रात जेपी ने हजारीबाग में एक अमिट इतिहास रचा था. हजारीबाग सेंट्रल जेल से अपने पांच साथियों के साथ दीपावली के दिन ही उन्होंने चहारदीवारी लांघ कर अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी. हजारीबाग के प्रसिद्ध इतिहासकार और आजादी में हजारीबाग के योगदान पर रिसर्च करने वाले प्रोफेसर प्रमोद सिंह बताते हैं कि यहां से लोकनायक जयप्रकाश का नाम हमेशा जुड़ा रहेगा, क्योंकि उन्होंने हजारीबाग में आजादी से पहले अंग्रेजों को जेल से फरार होकर चुनौती तो दी ही थी. अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. इतिहासकार यह भी मानते हैं कि हजारीबाग से आजादी की लड़ाई में जेपी का योगदान अमिट है. हजारीबाग के कर्जन ग्राउंड से जयप्रकाश नारायण ने 50 हजार से अधिक लोगों को संबोधित किया था.
जेल से भागकर अंग्रेजों को दी थी चुनौती
जेपी इंसान नहीं एक विचारधारा हैं
जेपी को अपना आदर्श मानने वाले अधिवक्ता स्वरूप जैन का कहना है कि जेपी एक इंसान का नाम नहीं बल्कि एक विचारधारा हैं. जिसका आज भी महत्व है. वो कहते हैं कि हजारीबाग में जेपी मूवमेंट का बड़ा असर देखने को मिला था, हजारों हजार की संख्या में विद्यार्थी गिरफ्तार हुए. उन्होंने कहा अधिवक्ता होने के नाते उस वक्त जो भी गिरफ्तारी होते थे, उसे जमानत दिलाने का काम हमारा था. स्वरुप जैन बताते हैं कि 15 महीना तक जेपी हजारीबाग सेंट्रल जेल में बंद रहे और इमरजेंसी खत्म होने के बाद उनकी रिहाई हुई.
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सरकार के आदेशों को तत्कालीन एसडीओ ने नकारा
हजारीबाग में जेपी मूवमेंट में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हरीश श्रीवास्तव अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, कि यहां जब आंदोलन चरम सीमा पर था और प्रशासनिक अधिकारी आंदोलन पर विशेष नजर रखे हुए थे, उस दौरान समाहरणालय परिसर में आंदोलन चल रहा था. सरकार ने उस समय आंदोलनकारियों पर फायरिंग करने का आदेश दे दिया था, लेकिन तत्कालीन एसडीओ ने फायरिंग के आदेश को नकार दिया और आंदोलनकारियों पर गोली नहीं चलाने का आदेश दिया. हरीश श्रीवास्तव कहते हैं कि अगर गोली चलती तो कई लोगों की मौत हो जाती, लेकिन अधिकारी ने गोली चलाने से जवानों को रोका दिया था. वे कहते हैं कि ऐसा करने का एक उद्देश्य हो सकता है कि उनके दिल में जेपी के प्रति आदर होगा. उनका यह भी मानना है कि आज के समय में फिर से एक उलगुलान की जरूरत है जैसा जेपी के समय में हुआ था.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपनी कविता के जरिए जेपी को श्रद्धांजलि दी थी. उन्होंने जो लाइन जेपी को समर्पित की थी, वो यह हैं.
क्षमा करो बापू तुम हमको
वचनभंग के हम अपराधी
राजघाट को किया अपावन, भूले मंजिल यात्रा आधी।
जयप्रकाश जी रखो भरोसा
टूटे सपनों को जोड़ेंगे
चिता भस्म की चिंगारी से
अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे"