रांची: रघुवर सरकार के कार्यकाल में सखी मंडलों और बुनकर समितियों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने की योजना बनाई गई. इसके लिए झारक्राफ्ट के माध्यम से गरीबों को बांटे जाने वाले कंबल बनाने का टेंडर इन्हें देने का फैसला किया गया. इसके लिए झारक्राफ्ट को 10 लाख कंबल का ऑर्डर दिया गया, जिसका इस्तेमाल गरीबों के बीच बांटने और सरकारी काम में किया जाना था. हालांकि कुछ ही कंबल गरीबों को बांटे गए और बाकी कंबल की राशि कुछ लोग मिलकर डकार गए.
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कैसे हुआ घोटाला?
सरकार ने झारक्राफ्ट को 10 लाख कंबल का ऑर्डर दिया था. इसके लिए 25 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया. लेकिन सखी मंडल और बुनकरों से कंबल बनावाने के बदले हरियाणा से कंबल खरीद दिखाकर सरकारी धन की बंदरबांट कर ली गई. मई 2016 से दिसंबर 2017 के बीच इस मद में पड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है.
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कैसे हुआ खुलासा
झारक्राफ्ट ने 2016-2018 के बीच 633 हस्तकरघे की खरीद दिखाई. इसपर दो करोड़ दो लाख रुपए खर्च भी दिखाए गए. लेकिन किससे खरीदी गई इसका कोई अता पता नहीं है. 9 लाख 82 हजार 717 कंबल बनवाने का काम दिया गया था, लेकिन 8 लाख 13 हजार 91 कंबलों की बुनाई सखी मंडल या बुनकर सहयोग समितियों से नहीं कराई गई. झारक्राफ्ट के कुछ लोगों ने सहयोग समितियों के साथ मिलकर इस घोटाले की पटकथा तैयार की. ऊनी धागे की ढुलाई, कंबलों की बुनाई और परिवहन के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए. हरियाणा के पानीपत से धागा मंगाने की बात फर्जी पाई गई. दिसंबर 2018 में एजी की रिपोर्ट से इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ.