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आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के लिए चल रही हैं ये योजनाएं, शिक्षा से लेकर पेंशन तक दे रही है सरकार

2000 में एकीकृत बिहार से अलग कर जिनके विकास के नाम पर झारखंड राज्य की स्थापना की गई थी, वे आदिवासी आज भी समाज की मुख्यधारा से कटे हुए हाशिए पर रहकर अपना जीवनयापन करने को मजबूर हैं. सच तो यह है कि झारखंड को आदिवासी बहुल राज्य होने के बावजूद आदिवासियों तक विकास की रोशनी कभी नहीं पहुंच पाई. आज भी सरकार उनके लिए कई तरह की योजनाएं चलाकर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए प्रयासरत ही है.

विकास की मुख्यधारा से दुर आदिवासी

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Published : Aug 7, 2019, 7:11 PM IST

Updated : Aug 8, 2019, 6:15 PM IST

रांची: सन 2000 में एकीकृत बिहार से अलग हुए झारखंड में लगभग सवा तीन करोड़ की आबादी का 26.2% हिस्सा अनुसूचित जनजाति समुदाय का है. जिनमें संथाल, मुंडा, उरांव और हो राज्य की कुल जनजातीय आबादी के तीन चौथाई हैं. जबकि आठ प्रिमिटिव वल्नरेबल ट्राईबल ग्रुप बिरहोर, सबर, बिरजिया, असुर, पहाड़िया कोरवा, सोरा पहाड़िया और माल पहाड़िया मिलकर यहां 3.4% जनजातीय आबादी संगठित करते हैं. हालांकि अनुसूचित जनजाति राज्य की आबादी में एक चौथाई हिस्सा रखते हैं.


एक कमरे का कच्चा मकान है इनका आसरा
झारखंड को ट्राईबल स्टेट माना जाता है इसके बावजूद की लंबे समय से ये आदिवाती हाशिए पर रहे हैं. झारखंड सरकार के 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण की मानें तो प्रदेश के 16% अनुसूचित जनजाति अपने पूरे परिवार के साथ मात्र एक कमरे के कच्ची दीवारों और कच्ची छत वाले घरों में रह रही है.

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सरकार चला रही है कई योजनाएं
अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक समानता देने के उद्देश्य से केंद्र और राज्य सरकार कई योजनाएं चला रही है.


शिक्षा के क्षेत्र में सरकार देती है स्कॉलरशिप
राज्य सरकार अनुसूचित जनजाति के छात्रों को प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप देती है. जिसके तहत पहली से दसवीं कक्षा तक के बीच में सरकारी स्कूल में एनरोल्ड स्टूडेंट्स को 500 रुपये से लेकर 2250 रुपये प्रति छात्र स्कॉलरशिप दी जाती है. वहीं पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप अधिकतम 5000 रुपये से लेकर 15,000 रुपये तक के बीच में दी जाती है. इसके तहत चार अलग-अलग ग्रेड निर्धारित किए गए हैं।

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एग्जाम फी होता है रीइम्बर्स
राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति समेत अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग के छात्रों के लिए मैट्रिक और इंटरमीडिएट के परीक्षा शुल्क के रीइमबर्समेंट की व्यवस्था की गई है. वहीं इस वर्ग के छात्रों के लिए कक्षा 8 में एनरोल होने वाले सभी छात्रों को डीबीटी के द्वारा साइकिल के लिए 3500 रुपए भी दिए जाते हैं.


जनजाति संस्कृति की रक्षा के लिये सरकार ने उठाये हैं कदम
वहीं राज्य सरकार ने जनजातीय संस्कृति की रक्षा और संरक्षण के लिए भी कई कदम उठाए हैं. जनजातीय केंद्र, मानकी हाउस और घूमकुड़िया भवन के निर्माण का कार्य कराया है. 2018-19 में सरहुल और करमा पर सरकार ने 'स्पेशल पोस्टल कवर' और 'माय स्टाम्प' जारी किए. वहीं प्रिमिटिव वल्नरेबल ट्राईबल ग्रुप के परिवारों को आवास सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रत्येक हाउसिंग यूनिट के लिए एक लाख रुपये से अधिक रुपये देने और 100% अनुदान सहायता के रूप में देने की व्यवस्था की गई है. वही प्रेझा फाउंडेशन के तहत अनुसूचित जनजातियों को विशेष रूप से कौशल विकास और आजीविका संवर्धन के लिए तैयार किया जा रहा है.


पीवीटीजी के लिए हैं पेंशन स्कीम
राज्य के 9 जनजाति समूह असुर, परहिया, हिल खड़िया, बिरहोर, बिरजिया, कोरवा, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया और सबर को आदिम जनजाति में शामिल किया गया है. इनके लिए राज्य सरकार आदिम जनजाति पेंशन योजना चलाती है. जिसमें इन समूह के परिवार के एक सदस्य को पहले 600 रुपये प्रति माह की दर से भुगतान किया जाता था वहीं अब राज्य सरकार ने इसे बढ़ाकर 1000 रुपये प्रतिमाह कर दिया है.


टारगेटिंग द हार्ड कोर पुअर प्रोजेक्ट
टारगेटिंग द हार्ड कोर पुअर प्रोजेक्ट के नाम से भी एक कार्यक्रम चल रहा है जिसके तहत अनुसूचित जनजाति के अत्यधिक गरीब 2000 एकल महिला परिवारों को 24 महीने में गरीबी से राहत देने के लिए सामाजिक-आर्थिक सहयोग दिया जाता है.


स्वास्थ्य क्षेत्र की योजनाएं
सरकारी योजना के तहत आदिवासियों के लिए अधिकतम 100000रुपए तक के मेडिकल सहायता की व्यवस्था की गई है. इन सबके अलावा सरकार बिरसा आवास योजना, शहीद ग्राम विकास योजना जैसी कई स्कीम भी चला रही है.

Last Updated : Aug 8, 2019, 6:15 PM IST

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