रांचीः बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में सजा काट रहे कैदियों के हाथों बनाए गए प्रोडक्ट अब आम लोगों के लिए भी उपलब्ध है. चलंत वाहन (Mobile Van) के जरिए जेल प्रशासन राजधानी के अलग-अलग इलाकों में कैदियों के बनाए गए प्रोडक्ट आम लोगों के बीच पहुंचा रहा है. जेल में काम कर कैदी हर दिन 400 से 500 रुपये कमा रहे हैं.
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कंबल से लेकर साबुन तक बना रहे कैदीः बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में सजायाफ्ता कैदियों द्वारा कई तरह के रोजमर्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले सामान बनाए जा रहे हैं. उनमें तौलिया, चादर, दो तरह के कंबल, मोमबत्ती, कॉपी, फाइल जैसे सामान शामिल हैं. जेल में बंद कैदियों को आत्मनिर्भर बनाने और अपराध की दुनिया से हमेशा के लिए नाता तोड़ने के उद्देश्य से लिए उन्हें हुनरमंद बनाया जा रहा है. ताकि जब तक वह जेल में हैं तब भी अपने परिवार के लिए कुछ कमा सके और जब जेल से बाहर निकले तब अपना जीवन कारीगरी के बल पर सुधार सकें. जेल में बंद कैदियों द्वारा तैयार किए गए प्रोडक्ट काफी लोकप्रिय भी हो रहे हैं. रांची जेल में बंद कैदियों के प्रोडक्ट बाजार में बिक रहे हैं. ग्राहकों को ये सामान इतना पसंद आ रहा है कि जहां कहीं भी चलंत वाहन दिखता है वहां आम लोगों की भीड़ लग जाती है और लोग कैदियों के बनाए गए कंबल चादर जैसे सामान बड़े चाव से खरीदते हैं.
जैप के जवान हर दिन मोबाइल वैन लेकर निकलते हैंः बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा के बंदियों के द्वारा बनाए गए सामानों की बिक्री के लिए चलंत वाहन की व्यवस्था की गयी है. बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में सेना से रिटायर्ड जवानों की तैनाती सैफ के माध्यम से की गयी है. इन्हीं जवानों को कैदियों द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट बेचने की जिम्मेदारी भी दी गयी है. सोमवार से लेकर शनिवार तक राजधानी के अलग-अलग मोहल्लों में दोनों सैफ के जवान चलंत वाहन लेकर निकलते हैं. मोहल्लों के वैसे चौराहे जहां वाहन लगाने की उचित व्यवस्था रहती है. वहीं पर चलंत वाहन को खड़ा किया जाता है जिसके बाद आम लोग पहुंचते हैं और खरीदारी करते हैं.
जेल में चादर निर्माण में जुटे कैदी कैदियों के बनाए कंबल और चादर की मांग ज्यादाः बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में बंदियों के द्वारा दो तरह के कंबल बनाए जाते हैं, उनमें से एक का रंग काला होता है और दूसरे का लाल. लाल रंग का कंबल हॉस्पिटल और पुलिस वालों के बीच सप्लाई होता है जबकि काला रंग का कंबल आम लोगों के लिए उपलब्ध है. वहीं जेल के कैदी बेहतरीन चादर बनाते हैं, जिनकी मांग बाजार में बहुत है. जेल में बंद बंदियों द्वारा कई तरह की फाइलों का भी निर्माण किया जाता है. इसकी आपूर्ति झारखंड सरकार के सभी कार्यालयों में होती है. वर्तमान में फाइलों की सप्लाई विधानसभा, वित्त, गृह और आपदा प्रबंधन विभाग सहित सभी विभागों में की जा रही है. जल्द ही जेल में मल्टी कलर प्रिंटिंग प्रेस भी लगाया जाएगा.
मोबाइल वैन से बाजार में बिक रहा कैदियों का प्रोडक्ट
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कौशल विकास के लिए कैदियों को प्रशिक्षणः कौशल विकास के लिए भी जेल में सजा काट रहे बंदियों को समय-समय पर प्रशिक्षण देकर उन्हें दक्ष बनाया जाता है. कैदियों को हुनरमंद बनाने से पहले उनकी राय ली जाती है अगर कोई कैदी कंबल निर्माण में अपनी इच्छा जताता है तो उसे कंबल निर्माण में लगाया जाता है. वहीं अगर कोई और कैदी मोमबत्ती या फिर साबुन निर्माण करना चाहता है तो उसे उसमें दक्ष बनाया जाता है. रांची जेल प्रशासन का यही उद्देश्य है कि जब कैदी सजा काटकर बाहर निकलें तो उन्हें कहीं भी रोजगार मिल सके.
कैदियों के बनाए चादर और कंबल मास्क तैयार कर रहे कैदीः कोविड संक्रमण फैलने के बाद जेल के कैदियों द्वारा बड़े पैमाने पर मास्क भी बनाया जा रहा है. कैदियों द्वारा बनाए गए मास्क का प्रयोग जेल में भी होता है. इसके अलावा बाहर भी सप्लाई होती है. वैसे तो राजधानी रांची के सिविल कोर्ट सहित कई जगह कैदियों द्वारा बनाए गए सामानों की बिक्री होती है. लेकिन संक्रमण की वजह से अधिकांश वैसी दुकानें बंद पड़ी हैं. लेकिन चलंत वाहन के जरिए संक्रमण के दौरान भी आम लोगों के पास कैदियों से बने प्रोडक्ट आसानी से पहुंच रहे हैं. कैदियों के बनाए गए कंबल चादर और दूसरे तरह की सामान बाजार में मिलने वाले सामानों की तुलना में बेहद सस्ते हैं. कैदियों के बनाए गए चादर 200 से 300 रुपये के बीच है जबकि कंबल 300 से लेकर 500 तक है.