रांची: राजधानी में आयोजित तीन दिवसीय इंटरनेशनल ट्राइबल फिलोसॉफी कॉन्फ्रेंस का उद्घाटना मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने किया. कार्यक्रम में झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी मौजूद रहीं. इस कॉन्फ्रेंस को देखने देश-विदेश से स्टूडेंट आए हुए हैं.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि ग्लोबल भूख आदिवासियों को नुकसान पहुंचा रही है, विकास के नाम पर दुनिया के कई देशों में अलग-अलग जनजातियों को हटा दिया गया, उनमें ब्राजील और मलेशिया जैसे देश शामिल हैं.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि ब्राजील में गोरानी अनुसूचित जनजाति का वास हुआ करता था, लेकिन वहां की सरकार ने उस स्थान पर गन्ने उगाने की योजना बनाई, जिसके वजह से आदिवासी समूह को विस्थापित होना पड़ा. उन्होंने कहा कि गन्ने से एथिओल बनाया जाता है, जिसे वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उसी तरह मलेशिया के समुद्र तट पर रहने वाले आदिवासियों को भी वहां की सरकार ने हटा दिया. उन्होंने कहा कि दरअसल वहां की सरकार समुद्र तट के किनारे सी-पार्क बनाना चाहती थी, आंकड़ों को देखें तो मलेशिया के उस इलाके में आदिवासियों ने सबसे ज्यादा सुसाइड की है.
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विकास का पैमाना हो तय
हेमंत सोरेन ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि विकास के नाम पर सड़कें बने, इमारतें बनी, उद्योग और कारखाने भी लगे, लेकिन उन सड़कों पर चलने के लायक लोग ना रहे तो वह कैसा रहेगा. उन्होंने कहा कि झारखंड में भी कई बड़े उद्योग धंधे लगे, लेकिन जिस मकसद से सरकार ने उद्योग लगाए उसका लाभ आदिवासियों को नहीं मिला. उन्होंने बताया कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई के दौरान जो बर्तन और हथियार वहां मिले वह बर्तन और हथियार आज भी आदिवासियों के इस्तेमाल की चीजें हैं.
क्यों कम हो रहे हैं आदिवासी, इसपर हो मंथन
उन्होंने कहा कि इस बात का चिंतन करना होगा कि झारखंड में 1951 में 33% आबादी था, जो अब घटकर 26% बची है. उन्होंने कहा कि आदिवासी संस्कृति को और आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. मुख्यमंत्री ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग पर पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है, बड़े-बड़े कार्यक्रम और सेमिनार हो रहे हैं, लेकिन आदिवासी समुदाय एक ऐसा समूह है जिसने प्रकृति को गले से लगाकर के रखा है. उन्होंने कहा कि वह खुद इस समुदाय से आते हैं इसलिए उनके मन में आदिवासी दर्शन को लेकर संवेदना है.
आदि दर्शन संरक्षित करने वक चुनौती
मुख्यमंत्री हेमंत सोरने ने कहा कि दर्शनशास्त्र पर कई शोध हुए हैं और फेलोशिप भी हुई है, लेकिन जहां तक आदिवासी दर्शन के बात है कहीं न कहीं यह एक बड़ा समूह है, इसको संरक्षित रखना अपने आप में एक चुनौती है.उन्होंने कहा कि दुनिया भर के 90 देशों में 37 करोड़ आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, जिनमें 5 हजार अलग-अलग संस्कृतियां हैं और लगभग 40 हजार भाषाएं बोली जाती हैं. उन्होंने बताया कि यह समाज दुनिया की आबादी का 5% है, लेकिन जब गरीबी की बात आती है तो दुनिया की गरीबी की आबादी में जो हिस्सेदारी है, उसमें आदिवासी समुदाय की 15% हिस्सेदारी है. उन्होंने कहा कि उम्मीद की जा सकती है, कि तीन दिवसीय इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस आदिवासी समुदाय के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा.