रांची: झारखंड का राजभवन एक और इतिहास का गवाह बनने जा रहा है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के 11वें राज्यपाल के रूप में सीपी राधाकृष्णन को मनोनीत किया है. वह तमिलनाडु के तिरूपुर के रहने वाले हैं. उन्हें "मोदी ऑफ तमिलनाडु" कहा जाता है. उन्होंने कोयंबटूर सीट से 1998 और 1999 का लोकसभा चुनाव भाजपा की टिकट पर जीता था. 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी खुद उनके लिए चुनाव प्रचार करने कोयंबटूर आए थे. लेकिन आतंकियों ने कुछ और तैयारी कर रखी थी.
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कोयंबटूर विस्फोट में गई थी 58 लोगों की जान: लालकृष्ण आडवाणी के आरएस पुरम में होने वाली चुनावी बैठक में पहुंचने से पहले ही सीरियल ब्लास्ट हुआ था, जिसमें 58 लोगों की जान चली गई थी. इसमें ज्यादातर भाजपा के कार्यकर्ता थे. उस दिल दहलाने वाली घटना के बावजूद घटिया स्तर की राजनीति हुई थी. कांग्रेस ने भाजपा पर ही गंभीर आरोप लगाए थे. हालाकि तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री ने इसके पीछे आईएसआई की साजिश करार दिया था. इस सीरियल धमाकों की साजिश कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन अल-उम्मा और तमिलनाडु मुस्लिम मुनेत्र कषगम ने रची थी. तब आरोप लगा कि राज्य सरकार चाहती तो सीरियल विस्फोट रोक सकती थी. लेकिन बाद में उसकी नींद खुली. घटना के बाद संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया.
शिव के उपासक हैं 'सीपी राधाकृष्णन':सीपी राधाकृष्णन को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी ने बताया कि वह शिव के उपासक हैं. शुद्ध शाकाहारी हैं. पूजा-पाठ के लिए ज्यादा समय निकालते हैं. इनके चाचा जी कोयंबटूर से कांग्रेस सांसद थे. लेकिन इनका लगाव आरएसएस और जनसंघ से रहा. वह कारोबारी समुदाय से आते हैं. थोड़ी बहुत हिन्दी समझ लेते हैं लेकिन ठीक से बोल नहीं पाते. सीपी राधाकृष्णन के पिताजी एलआईसी का काम करते थे. वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी ने बताया कि सीपी राधाकृष्णन आम के बेहद शौकीन हैं. उनकी एक और खासियत है कि अगर शाम के वक्त कोई उनके घर आ जाता है तो वह उसे बिना खाना खिलाए नहीं जाने देते हैं. वह एक साधारण इंसान हैं. अपने बूते उन्होंने तिरूपुर में होजीयरी का बड़ा कारोबार खड़ा किया है. उनकी स्पीनिंग मील भी है. फैक्ट्री की देखरेख मैनचेस्टर से टैक्सटाइल इंजानियरिंग पढ़कर आए उनके पुत्र संभालते हैं.
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क्यों 'तमिलनाडु के मोदी' कहे जाते हैं सीपी:सीपी राधाकृष्णन को तमिलनाडु का मोदी कहा जाता है. उनको करीब से जानने वालों ने बताया कि वह दक्षिण भारत में भाजपा के मजबूत स्तंभ हैं. वह 16 साल की उम्र में ही आरएसएस और जनसंघ से जुड़ गये थे. उन्होंने अपने बूते तमिलनाडू में भाजपा का झंडा बुलंद किया है. इसलिए उन्हें तमिलनाडु का मोदी कहा जाता है. उनके चुनावी सफर की बात करें तो उन्होंने कांग्रेस और डीएमके की पैठ के बावजूद 1998 के लोकसभा चुनाव में डीएमके प्रत्याशी केआर सुब्बियन को करीब डेढ़ लाख वोट के अंतर से हराया था. सीपी राधाकृष्णन को 4.49 लाख वोट मिले थे. जबकि डीएमके प्रत्याशी को 3.04 लाख वोट मिले थे. कांग्रेस प्रत्याशी आर कृष्णन को सिर्फ 40,739 वोट मिले थे. दक्षिण भारत में भाजपा की यह सबसे बड़ी जीत थी. इसके बाद बहुमत के अभाव में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने से 1999 में फिर लोकसभा का चुनाव हुआ. इसमें भी भाजपा के सीपी राधाकृष्णन को 49.21 प्रतिशत वोट मिला था. उन्होंने सीपीआई प्रत्याशी आर नल्लाकन्नु को 55 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से हराया था.
हालांकि, 2004 के चुनाव में उन्हें सीपीआई के के सुब्बारायां ने 60 हजार वोट के अंतर से हरा दिया था. 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कोयंबटूर से जीकेएस सेल्वाकुमार को उतारा. लेकिन वह कहीं नहीं टिक पाए. उस चुनाव में सीपीएम प्रत्याशी पीआर नटराजन की जीत हुई थी. 2014 में मोदी लहर के बीच भाजपा ने फिर से सीपी राधाकृष्णन को उतारा. उनका सीधा मुकाबला एडीएमके के पी नागराजन से हुआ. इस चुनाव में सीपी को 33 प्रतिशत तो नागराजन को 36 प्रतिशत वोट मिले.
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दक्षिण भारत में भाजपा को दिलाई पहचान: सीपी राधाकृष्णन दक्षिण भारत में भाजपा के ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने 1999 में एनडीए बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. उनका जन्म मद्रास के तिरूपुर में 1957 में हुआ था. वह 16 साल की उम्र में ही आरएसएस और जनसंघ से जुड़ गये थे. वह 1998 और 1999 में कोयंबटूर से लोकसभा सांसद चुने गये थे. तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के साथ-साथ पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे. उनको केरल का भाजपा प्रभारी भी बनाया गया था. वह पहली बार किसी राज्य के राज्यपाल के रूप में मनोनीत किए गये हैं.