रांची: पूरे देश में झारखंड एकमात्र ऐसा राज्य है जहां की विधानसभा बिना नेता प्रतिपक्ष के संचालित हो रही है. नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त होने की वजह से कई संवैधानिक संस्थाओं में चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है. पिछले साढ़े तीन वर्षों से नेता प्रतिपक्ष का मामला कानूनी दांव पेंच में उलझा पड़ा है. अब यह मामला एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ा हुआ है, जहां यह तय होना है कि सदन में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति पर सिर्फ स्पीकर का अधिकार है या हाईकोर्ट भी कोई निर्णय ले सकता है. इस बिंदु पर कल यानी 16 मई को झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई होने वाली है. इस मामले में तब नया मोड़ आ गया जब एडवोकेट एसोसिएशन की याचिका पर 5 मई को हाईकोर्ट ने सुनवाई की. कोर्ट ने विपक्षी दल के नेता पर एक सप्ताह के भीतर फैसला लेने का आदेश देते हुए कहा कि अगर ऐसा नहीं होता है तो विधानसभा के सचिव को आकर जवाब देना होगा.
ये भी पढ़ें-झारखंड विधानसभा नेता प्रतिपक्ष के मामले में हाई कोर्ट सख्त, कहा- एक हफ्ते में निकालें हल
आखिर अधिकार वाली नौबत क्यों आई:दरअसल, इसपर 11 मई को विधानसभा के सचिव सैयद जावेद हैदर एफिडेविट के मार्फत बता चुके हैं कि दलबदल मामले पर लगातार सुनवाई हुई है और फैसला जल्द लिया जा सकता है. वहीं सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि स्पीकर, भाजपा से दूसरे विधायक का नाम सुझाने की सलाह दे चुके हैं. लेकिन भाजपा ने इसपर कोई जवाब नहीं दिया है. इस गंभीर मसले पर कल यानी 16 मई को दो बिंदुओं पर सुनवाई होगी. पहला बिंदु यह होगा कि क्या हाईकोर्ट स्पीकर को नेता प्रतिपक्ष के लिए नोटिफिकेशन जारी करने का आदेश दे सकता है.
दूसरा बिंदु यह होगा कि क्या स्पीकर को यह अधिकार है कि वह मुख्य विपक्षी दल को यह सुझाव दे सके कि वह किसी दूसरे को नेता प्रतिपक्ष नामित करे. इस मामले में एडवोकेट एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता नवीन कुमार का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष का नोटिफिकेशन जारी करने के लिए हाईकोर्ट को स्पीकर को निर्देशित करना चाहिए. क्योंकि नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त होने की वजह से लोकायुक्त और सूचना आयोग जैसी महत्वपूर्ण संस्थाएं डिफंक्ड पड़ी हुई हैं. वहीं सूचना आयुक्त के रिक्त पद को लेकर राजकुमार नामक शख्स की ओर से अधिवक्ता अभय मिश्रा पक्ष रख रहे हैं. दूसरी तरफ बाबूलाल मरांडी की ओर से अधिवक्ता इंद्रजीत सिन्हा और राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन को पक्ष रखना है. मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायाधीश आनंद सेन की खंडपीठ करेगी.
किस स्टेज पर है बाबूलाल का मामला:भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी पर दलबदल का मामला दिसंबर 2020 से चल रहा है. पिछले साल यानी अगस्त 2022 को ही स्पीकर के ट्रिब्यूनल में सुनवाई पूरी हो चुकी है. फैसला सुरक्षित है. पूर्व में दलबदल मामले में स्पीकर ने स्वत: संज्ञान लिया था. इसको हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. इसके बाद प्रदीप यादव, बंधु तिर्की, दीपिका पांडेय, राजकुमार यादव और भूषण तिर्की से दलबदल का आरोप लगाते हुए स्पीकर के ट्रिब्यूनल में शिकायत दर्ज कराई थी. इसपर 10 बिंदुओं पर सुनवाई पूरी हो चुकी है. लेकिन करीब नौ माह बाद भी फैसला नहीं आने पर मामला हाईकोर्ट में चला गया है.
प्रदीप और बंधु का भी मामला है पेंडिंग:खास बात है कि बाबूलाल मरांडी के खिलाफ शिकायत के बाद जेवीएम से कांग्रेस में गये प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के खिलाफ भी भाजपा की ओर से स्पीकर के ट्रिब्यूनल में दलबदल की शिकायत की गई है. इस मामले में अबतक सुनवाई पूरी नहीं हुई है. इस बीच आय से अधिक संपत्ति मामले में बंधु तिर्की अपनी सदस्यता गंवा चुके हैं. इस बीच दोनों के मामले में 18 मई को स्पीकर के ट्रिब्युनल में सुनवाई की तारीख मुकर्र की गई है.
भाजपा की क्या है दलील:विधानसभा की हर कार्यवाही के दौरान यह बात जोर शोर से उठती है कि सदन में नेता प्रतिपक्ष का चयन क्यों नहीं हो पा रहा है. इसपर भाजपा का रटा रटाया जवाब है कि उसकी ओर से बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता चुनकर स्पीकर को अवगत करा दिया गया है. भाजपा की दलील है कि चुनाव आयोग भी बाबूलाल मरांडी के जेवीएम के भाजपा में विलय को सही करार देते हुए उन्हें भाजपा विधायक का दर्जा दे चुका है. इसी वजह से बाबूलाल मरांडी अबतक दो राज्यसभा चुनाव में भाजपा विधायक के रूप में वोट भी डाल चुके हैं. इसके बावजूद सदन में मामले को उलझाकर रखा गया है. इसकी वजह से सूचना आयुक्त और लोकायुक्त का चयन नहीं हो पा रहा है. आपको बता दें कि फरवरी 2020 में भाजपा नेता अमित शाह की मौजूदगी में बाबूलाल मरांडी ने जेवीएम का भाजपा में विलय किया था.