रांची: दुमका में नक्सली वारदात में एसपी अमरजीत बलिहार की हत्या के सजायाफ्ता की फांसी की सजा के मामले पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. सजायाफ्ता के अधिवक्ता ने कहा कि हमने कोई अपराध नहीं किया. सजा माफ कर दी जाए. सरकार ने कहा जघन्य से भी जघन्य अपराध है, इसलिए फांसी की सजा बरकरार रखी जाए. अदालत ने सभी पक्षों की दलील को सुनने के उपरांत सुनवाई की प्रक्रिया पूर्ण करते हुए आदेश सुरक्षित रख लिया है.
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फिलहाल इंतजार करना होगा कि एसपी के हत्यारे की फांसी की सजा बरकरार रहेगी या निचली अदालत के आदेश पर हाई कोर्ट का कुछ और आदेश होगा. झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश रंगन मुखोपाध्याय और न्यायाधीश संजय प्रसाद की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. अदालत ने मामले की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत से गुहार लगाई थी कि निचली अदालत की द्वारा दी गई फांसी की सजा उचित नहीं है. बिना पुख्ता सबूत गवाह के उन्हें फांसी की सजा दे दी गई है. वह इस घटना में शामिल नहीं थे. ना उन्हें घटना को अंजाम देते किसी ने देखा है. ना उनके खिलाफ किसी तरह की कोई ऐसी सबूत मिली है. इसलिए सजा माफ कर दी जाए.
सरकार के अधिवक्ता ने प्रार्थी के अधिवक्ता की दलील का विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने जघन्य से जघन्य अपराध किया है. इसलिए इनकी फांसी की सजा बरकरार रखी जाए. उन्होंने कहा कि वारदात में घायल हुए लोगों ने गवाही दी है. आरोपी की पहचान की है. इसने उस वारदात को अंजाम दिया है. इसलिए निचली अदालत द्वारा जो सजा दी गई है. वह सही है. इसे बरकरार रखा जाए. अदालत ने दोनों पक्षों की दलील को सुनने के उपरांत आदेश सुरक्षित रख लिया है.
वर्ष 2013 में एसपी अमरजीत बलिहार समेत छह पुलिसकर्मी की नक्सली वारदात में हत्या हो गई थी. उसी मामले में 7 को आरोपी बनाया गया था. 5 को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया. 2 आरोपी सुखलाल मुर्मू और सनातन वास्ती को हत्या का दोषी मानते हुए फांसी की सजा वर्ष 2018 में सुनाई गई थी. निचली अदालत से दी गई फांसी की सजा के विरोध में याचिका दायर की गई है. उसी याचिका पर सुनवाई हुई.