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नियुक्ति नियमावली पर झारखंड हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, 10 अगस्त को अगली सुनवाई

संशोधित नियुक्ति नियमावली को लेकर दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. सरकार की ओर से कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पक्ष रखा. कोर्ट ने सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है.

Hearing in Jharkhand High Court on Revised Recruitment Rules
Hearing in Jharkhand High Court on Revised Recruitment Rules

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Published : Jul 20, 2022, 3:51 PM IST

रांची: झारखंड कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा होने वाली नियुक्ति के लिए संशोधित नियामवली के खिलाफ दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट की डबल बेंच में सुनवाई हुई. राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता ने समय की मांग की. अदालत ने उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए 10 अगस्त की तिथि निर्धारित की है. प्रार्थी के अधिवक्ता ने समय का विरोध करते हुए कहा कि पहले ही काफी समय दिया जा चुका है. अब समय ना दिया जाए.


झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य नयायाधीश डॉ रवि रंजन और न्ययाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पक्ष रखा. अदालत ने सरकार के अधिवक्ता से यह जानना चाहा कि राज्य के कर्मचारी चयन आयोग द्वारा होने वाली परीक्षा में हिंदी और अंग्रेजी को हटाकर उर्दू को शामिल किए जाने के लिए राज्य सरकार ने क्या कुछ डाटाबेस तैयार किया है. इसके लिए क्या कुछ कमेटी का गठन किया गया. कमेटी ने क्या अपना मंतव्य दिया है. क्या तैयारी की गई. कब कब बैठक हुई. इससे संबंधित सभी रिकॉर्ड सहित अदालत में बिंदुवार अद्यतन जानकारी पेश करने को कहा है. अधिवक्ता ने अदालत को सरकार से इंस्ट्रक्शन लेकर जवाब देने की बात कही. जिस पर अदालत ने उन्हें समय देते हुए जवाब पेश करने का निर्देश दिया है.


प्रार्थी रमेश हांसदा की ओर से दायर याचिका में संशोधित नियक्ति नियमावली को चुनौती दी गयी है. याचिका में कहा गया है कि नयी नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने को अनिवार्य किया गया है. जो संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. वैसे उम्मीदवार जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है. नयी नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है. जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है. उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना राजनीतिक फायदे के लिए है. राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है. उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग करते हैं. ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी बाहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है. इसलिए नई नियमावली में निहित दोनों प्रावधानों को निरस्त किये जाने की मांग है.

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