रांचीःआजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष छेड़ने के अपने इरादे को अंजाम तक पहुंचाने और आजाद हिंद फौज को कायम करने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji subhash chandra bose) ने जब देश छोड़ा था, तो उन्होंने आखिरी घंटे झारखंड के गोमो में गुजारे थे. गोमो स्टेशन से ही वह कालका मेल पकड़कर पेशावर के लिए रवाना हुए थे. अब गोमो जंक्शन को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन के नाम से जाना जाता है.
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वो तारीख थी 18 जनवरी, 1941, जब कोलकाता के एल्गिन रोड स्थित अपने आवास में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा नजरबंद किए गए नेताजी पुलिस को चकमा देकर निकल भागे थे. अंग्रेजी हुकूमत के सख्त पहरे के बावजूद उनके कोलकाता से निकलने की योजना बांग्ला वॉलंटियर के सत्यरंजन बख्शी ने बनाई थी. वह अपने घर से निकलने के बाद अपने भतीजे डॉ. शिशिर बोस के साथ अपनी बेबी आस्टिन कार (बीएलए 7169) से उस रोज रात आठ बजे गोमो पहुंचे थे और यहां लोको बाजार में रहनेवाले अपने वकील मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के घर पहुंचे थे.
नेताजी के लिए तैयार हुई पठान ड्रेसःनेताजी सुभाष चंद्र बोस ने शेख अब्दुल्ला से पेशावर जाने की अपनी योजना साझा की. तय हुआ कि वह पठान का वेश धरकर स्टेशन से हावड़ा-पेशावर मेल 63 अप ट्रेन पकड़ेंगे. शेख अब्दुल्ला के कहने पर गोमो के अमीन दर्जी ने उनके लिए आनन-फानन में पठान ड्रेस तैयार की. अमीन दर्जी ने ही रात एक बजे उन्हें स्टेशन पहुंचाया, जहां तीन नंबर प्लेटफार्म से उन्होंने यह ट्रेन पकड़ी. बाद में यह ट्रेन कालका एक्सप्रेस के रूप में जानी जाने लगी. पिछले वर्ष रेलवे ने इस ट्रेन का नामकरण नेताजी एक्सप्रेस कर दिया है. सुभाष चंद्र बोस के देश छोड़ने की यह परिघटना इतिहास के पन्नों पर द ग्रेट एस्केप के रूप में जानी जाती है.