रांचीःनेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 में चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में अभी भी एनीमिया यानी खून की कमी बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है. वहीं उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी बीमारियां भी चिंता बढ़ा रहीं हैं.
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वर्ष 2019 से 2021 तक की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 की रिपोर्ट का नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4 (वर्ष 2016) से तुलना करने पर पता चलता है कि राज्य में स्वास्थ्य के क्षेत्र में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है परंतु अभी भी राज्य स्वास्थ्य के मानकों पर दूसरे राज्यों से काफी पीछे है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 6 महीने से 05 साल तक के 67.5 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं जो एनीमिक हैं यानी जिनमे हीमोग्लोबिन की मात्रा 11 ग्राम से कम है.
NFHS 5 की रिपोर्ट में आए झारखंड की सेहत के चिंताजनक आंकड़े
क्या कहती है रिपोर्टःइसी तरह रिपोर्ट के अनुसार 15 वर्ष से 49 वर्ष की सामान्य महिला में 65.7% महिलाएं ऐसी हैं जिनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा 12 ग्राम से कम है. इस उम्र समूह की गर्भवती महिलाओं में 56.8% आबादी ऐसी गर्भवती महिलाओं की है जिनके खून में हिमोग्लोबिन की मात्रा 11 ग्राम से कम है. अगर सभी महिलाओं की बात करें तो 15 से 49 वर्ष की उम्र समूह की 65.3% महिलाएं एनीमिया से जूझ रहीं हैं. हैरत की बात यह है कि वर्ष 2016 के बाद कई तरह के अभियान और कार्यक्रम चलाए जाने के बावजूद भी राज्य में एनीमिक महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. 2016 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में जहां 65.2% महिलाएं खून की कमी से जूझ रहीं थीं वहीं अब यह संख्या बढ़कर 65.3% हो गई है. रिपोर्ट बताती है कि राज्य में 29.6% ऐसे पुरुष हैं जिन में हीमोग्लोबिन की मात्रा 13 ग्राम से कम है यानी राज्य का हर तीसरा पुरुष भी एनीमिक है.
NFHS 5 की रिपोर्ट में आए झारखंड की सेहत के चिंताजनक आंकड़े मधुमेह और उच्च रक्तचाप के मरीजों को लेकर क्या है रिपोर्ट मेंःनेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष मधुमेह और उच्च रक्तचाप की समस्या से ज्यादा ग्रस्त हैं. राज्य में जहां 10.2% महिलाएं मधुमेह से ग्रस्त हैं, वहीं 14.1% पुरुष डायबिटिक हैं. इसी तरह राज्य में जहां 17.8% महिलाएं उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रेशर की मरीज हैं तो 22.6% पुरुष डायबिटिक हैं.
अभी भी हर तीसरी बच्ची की उम्र से पहले ही कर दी जाती है शादीः झारखंड में बच्चियों की कम उम्र में शादी यानी बाल विवाह की समस्या का निदान नहीं हो रहा है. कई तरह की प्रयासों के बावजूद राज्य में 2016 की तुलना में लड़कियों में बाल विवाह की कुरीति में थोड़ा ही सुधार हुआ है. वर्ष 2016 की रिपोर्ट के अनुसार जहां 35.9% बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से पहले कर दी जाती थी, इसमें मामूली सुधार आया है. अब यह संख्या घटकर 32.2% हो गी है यानी राज्य में हर 100 बालिकाओं में 33 के करीब बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से पहले कर दी जाती है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 की रिपोर्ट यह भी बताती है की शहरी क्षेत्र की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह की प्रथा ज्यादा प्रचलित है. इसी तरह रिपोर्ट के अनुसार राज्य में हर पांचवें लड़के (22.7%) की शादी 21 वर्ष से पहले कर दी जाती है.
NFHS 5 की रिपोर्ट में आए झारखंड की सेहत के चिंताजनक आंकड़े अंडर -5 मोर्टेलिटी रेट अभी भी चिंताजनकः नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार बच्चों में होने वाली मौत के मामले में झारखंड में 2016 की अपेक्षा बेहतर सुधार है परंतु अभी भी अंडर फाइव मोर्टेलिटी रेट (Under5 MR) की स्थिति चिंताजनक ही कही जाएगी. वर्ष 2016 में जहां राज्य में प्रति 1000 जन्म पर अंडर फाइव एमआर 54.3 थी वह अब घटकर 45.4 जरूर हुई है परंतु चिंता की बात यह है कि ग्रामीण इलाकों में अभी भी U-5 MR ,करीब करीब आधी 49.2 है. वहीं रिपोर्ट के अनुसार राज्य में इन्फेंट मोर्टेलिटी रेट (आईएम आर) 37.9 और निओनेटल मोर्टेलिटी रेट 28.2 प्रति 1000 जन्म है.
15-49 वर्ष उम्र समूह की झारखंड की 40% महिलाएं परिवार नियोजन का साधन इस्तेमाल नहीं करतींःनेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के इंडिकेटर के अनुसार राज्य में परिवार नियोजन के साधनों को इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या में इजाफा हुआ है. वर्ष 2016 में किए गए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4 मैं जहां सिर्फ 40.4% महिलाएं परिवार नियोजन के किसी न किसी साधन का इस्तेमाल करतीं थीं, वहीं अब 61.7% महिलाएं ऐसे साधनों का इस्तेमाल करने लगी हैं. यह आंकड़ा बताता है कि राज्य में अभी भी 15 वर्ष से लेकर 49 वर्ष तक कि महिलाओं में करीब 40 % महिलाएं ऐसी हैं जो परिवार नियोजन के किसी साधन का इस्तेमाल नहीं करती हैं.
गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच में भी अभी और काम करने की जरूरतः नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व होने वाली चिकित्सीय जांच में सुधार होने के बावजूद अभी भी राज्य में 32% ऐसी गर्भवती महिलाएं हैं जो गर्भधारण करने के प्रथम तिमाही में चेकिंग नहीं करवातीं, इसी तरह पूरे गर्भकाल के दौरान कम से कम 4 बार एंटीनेटल चेकअप कराने वालr महिलाओं की संख्या महज 38.6% है यानी 60% से ज्यादा गर्भवती महिलाएं 4 बार भी प्रसव पूर्व जांच नहीं करातीं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के रिपोर्ट के अनुसार राज्य में क्रिसमस के टीके से प्रोटेक्टेड गर्भवती महिलाओं की संख्या में भी थोड़ी गिरावट आई है और यह 91.7% से घटकर 90.8% हो गया है. राज्य में गर्भवती महिलाओं को 100 दिन फोलिक एसिड प्रोटेक्शन का प्रतिशत 2016 की अपेक्षा बढ़ने के बावजूद 14.9% ही है.