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आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की हो रही पूजा, पढ़िये कैसे हुई आयुर्वेद की उत्पत्ति

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Published : Oct 22, 2022, 9:21 PM IST

Updated : Oct 22, 2022, 11:07 PM IST

आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की जयंती (Birth Anniversary of Lord Dhanvantari) पर आज उनकी पूजा की जा रही है. रांची के आयुष अस्पताल समेत कई आयुर्वेदिक अस्पतालों में भगवान धन्वंतरि (Father of Ayurveda Lord Dhanvantari) की पूजा की जा रही है.

Father of Ayurveda Lord Dhanvantari
Father of Ayurveda Lord Dhanvantari

रांची:आज भगवान धन्वंतरि की जयंति (Birth Anniversary of Lord Dhanvantari) है. भगवान धन्वंतरि भारत की प्राचीन जड़ी बूटियों पर आधारित इलाज पद्धति आयुर्वेद के जनक (Father of Ayurveda Lord Dhanvantari) हैं. आयुर्वेद से जुड़े लोग और आयुर्वेदिक चिकित्सक भगवान धन्वंतरि की पूजा आराधना कर रहे हैं. भगवान धन्वंतरि की जयंती हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी के मौके पर मनाई जाती है. हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लिए उत्पन्न हुए थे, इसी अमृत कलश से आयुर्वेद की उत्पत्ति हुई थी.

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भगवान धन्वंतरि की हो रही है पूजा आराधना:रांची के आयुष अस्पतालों, प्राइवेट आयुर्वेदिक अस्पतालों सहित कई जगह पर भगवान विष्णु के अंश के रूप में दुनिया को आयुर्वेद की सौगात देने वाले धन्वंतरि की आराधना की जा रही है. रांची के राजकीय संयुक्त आयुष औषधालय के आयुर्वेदाचार्य डॉ साकेत कुमार कहते हैं कि आदिकाल में समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए भगवान धन्वंतरि ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति दुनिया को दी. हजारों लाखों साल से यह विज्ञान बिना किसी दुष्प्रभाव के लोगों का इलाज कर रहा है.

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नक्षत्र वन में भगवान धन्वंतरि की है विश्रामावस्था वाली प्रतिमा:रांची के नक्षत्र वन में भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा विश्रामावस्था में दिखाई गई है और उसके चारों ओर सैकड़ों की संख्या में औषधीय गुणों वाले पेड़ पौधे का बगान लगाया गया है. सभी की महत्ता और कौन से पौधे की जड़ी बूटी, पत्ते, तना किस-किस बीमारी में लाभ पहुंचाता है, सबका जिक्र किया गया है ताकि लोग जान सकें कि पेड़ पौधे सिर्फ आक्सीजन ही नहीं देते बल्कि ये हमें छाया के साथ साथ कई असाध्य और जटिल बीमारियों को ठीक करने का नुस्खा भी देते हैं. वह भी बिना किसी साइड इफेक्ट के.

झारखंड में कई दुर्लभ पेड़-पौधे और जड़ी बूटी: आयुर्वेदाचार्य डॉ साकेत कुमार कहते हैं कि झाड़ जंगलों के प्रदेश झारखंड में आयुर्वेद का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यहां की जंगलों और पठारों पर कई तरह के दुर्लभ पेड़-पौधे और जड़ी बूटी उपलब्ध हैं. आदिकाल से उन जड़ी बूटियों का इस्तेमाल जनजातीय समाज करता भी रहा है. ऐसे में जरूरी है कि झारखंड में आयुर्वेद पर रिसर्च हो ताकि पीड़ित मानव की सेवा हो सके.

Last Updated : Oct 22, 2022, 11:07 PM IST

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