रांची: झारखंड में इस साल भी लंपी स्किन डिजीज फैलने की बात सामने आ रही है. यह वायरस खासकर गाय और बैल को अपनी चपेट में लेता है. संक्रमित जानवरों को खाने में दिक्कत होती है. जानवरों के शरीर पर फफोले जैसे चक्कते उभर जाते हैं. बताया जा रहा है कि झारखंड के ग्रामीण इलाकों में इसकी वजह से जानवरों की मौत हो रही है. लेकिन विभाग के निदेशक आदित्य रंजन के मुताबिक यह बात बिल्कुल गलत है.
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उन्होंने कहा कि झारखंड में इस बीमारी से कितने जानवरों की मौत हुई है, इसका अभी तक कोई डाटा नहीं आया है. निदेशक ने बताया कि लक्षण को देखते हुए हर पंचायत में शिविर लगाए जा रहे हैं. अभी तक इस बीमारी को लेकर कोई स्पेसिफिक वैक्सीन नहीं बना है. लेकिन गोट पॉक्स वैक्सीन का डोज बढ़ाकर गाय और बैल को देने से यह असरदार साबित होता है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा वैक्सीन के लिए दो एजेंसियां नामित की गई हैं. इन एजेंसियों के नाम हैं इंडियन इम्यूनोलॉजिकल लिमिटेड, हैदराबाद और हेस्टर. फिलहाल झारखंड में अलग-अलग जिलों से 21 लाख वैक्सीन डोज की डिमांड आई है. दोनों कंपनियों के पास उपलब्धता को देखते हुए एक से दो दिन के भीतर ऑर्डर रिलीज कर दिया जाएगा.
दूसरी तरफ इस बात की भी चर्चा हो रही है कि पशुपालन विभाग ने बीमारी को देखते हुए छुट्टियां रद्द कर दी है. इसका विभागीय सचिव अबु बकर सिद्दिकी और निदेशक आदित्य रंजन ने खंडन किया है. दोनों अधिकारियों ने बताया कि किसी की छुट्टी रद्द नहीं की गई है. दोनों अधिकारियों ने पशुपालकों से अफवाह से बचने की अपील की है.
वहीं, पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान के डॉ सनत कुमार पंडित ने ईटीवी भारत को बताया है कि अभी तक भोपाल लैब से पॉजिटिव केस का कंफर्मेशन नहीं आया है. हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि साल 2020-21 में पहली बार यह बीमारी सामने आई थी. इसके बाद 2021-22 और 2022-23 में भी लंपी डिजीज के पॉजिटिव केस मिले थे. इस साल भी पिछले कुछ दिनों में कई जिलों से इसकी शिकायत आई है. लिहाजा, सैंपल को कुरियर के जरिए भोपाल स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्यूरिटी डिजीज लेबोरेट्री में भेजा गया है. वहां से रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.
डॉ सनत कुमार पंडित ने कहा कि अगर समय रहते इस बीमारी का इलाज शुरू कर दिया जाए तो तीन से चार दिन में पशु ठीक हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि इस बीमारी का मोर्टालिटी यानी मृत्युदर अनुमानित 5 प्रतिशत के करीब है. कुछ दिन पहले लोहरदगा, गढ़वा, गोड्डा, रांची, दुमका और चतरा से कुल 83 सैंपल आए थे. इनमें से 53 सैंपल भोपाल भेजे जा चुके हैं. उन्होंने कहा कि सैंपल को एक विशेष बॉक्स में भेजा जाता है. उस बॉक्स की क्षमता कम से कम पचास सैंपल की होती है. हमारी कोशिश है कि कम सैंपल वाले बॉक्स की भी व्यवस्था हो ताकि भविष्य में त्वरित जांच हो सके.
विभाग के उप निदेशक डॉ मनोज कुमार ने कहा कि जानवरों के शरीर पर अगर फफोले जैसा चकत्ता दिखता है तो फौरन पशुपालकों को पंचायत स्तर पर लग रहे शिविर में संपर्क करना चाहिए. उन्होंने कहा कि संक्रमित होने पर गायों के दूध देने की क्षमता प्रभावित जरूर होती है लेकिन इलाज करने पर चार से पांच दिन में बीमारी ठीक हो जाती है. इसलिए पशुपालकों को अफवाह से बचना चाहिए. यह बीमारी दो-तीन साल पहले सामने आई है. इसका इलाज संभव है.