रांचीःझारखंड में कोरोना की बेलगाम रफ्तार बढ़ती जा रही है. राज्य के अधिकांश जिलों में कोरोना अपनी जड़े जमा चुका है. राजधानी रांची भी इससे अछूती नहीं है. इस कोरोना संकट की सबसे ज्यादा मार गरीबों और रोज कमाने खाने वालों पर पड़ रही है. गरीब और छोटे-छोटे रोज कमाने खाने वाले लोग संक्रमण से कैसे बचें और अपने परिवार को भुखमरी से कैसे बचाएं? यह गुहार किससे लगाएं? कहां लगाएं? उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है. इधर संक्रमण से बचने के लिए जो दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं.
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कोरोना के बढ़ते संक्रमण से बचने के लिए झारखंड हाई कोर्ट ने केस की सुनवाई वर्चुअल मोड से कर दी है. वहीं झारखंड स्टेट बार काउंसिल ने बढ़ते संक्रमण को देखते हुए 7 दिन तक अधिवक्ता और अधिवक्ता लिपिक को किसी भी तरह की अदालती कार्रवाई में भाग न लेने का निर्देश दिया है.
एक तरफ संक्रमण से बचने के लिए कई तरह के निर्देश दिए जा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ रोज कमाने खाने वाले के समक्ष अब भूख मिटाने की समस्या सताने लगी है. झारखंड हाई कोर्ट के निर्देश और झारखंड स्टेट बार काउंसिल के इन निर्देशों के बाद बड़ी संख्या में लोगों के सामने रोजी-रोटी की समस्या आन पड़ी है.
हाई कोर्ट के छोटे दुकानदार संकट में
हाई कोर्ट के आसपास, गेट के सामने के छोटे दुकानदार, चाय के स्टॉल लगाने वाले, लिट्टी बेचने वाले, सत्तू जूस बेचने वाले, कैंटीन चलाने वाले की अब परेशानी बढ़ती ही जा रही है. वे अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करेंगे यह मुश्किल सा लगता है. इनके अलावा कचहरी के आसपास फोटोस्टेट दुकान संचालक, बुक बेचने वाले, टाइपिस्ट अपने परिवार का गुजारा करने वाले छोटी आय वाले लोग हैं, जो प्रतिदिन कमाते हैं और खाते हैं.
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उन पर जो गुजर रही है उसे कोई देखने वाला नहीं मिल रहा है. अदालत में अधिवक्ताओं का सहयोग करने वाले मुंशी जो अधिवक्ता के लिए काम करते हैं, जो बाहर से आने वाले मुवक्किल को केस दायर करने में सहयोग करते हैं, अब बाहर से मुवक्किल न आने से वह परेशान है.
प्रतिदिन कमाने-खाने वाले छोटे लोग अधिक संख्या में होते हैं, जिनकी आय काफी कम होती है. कुछ मुंशी बड़े अधिवक्ताओं के होते हैं उन्हें तो कुछ पैसा मिल जाता है, लेकिन छोटे-छोटे अधिवक्ताओं के जो अधिकांश मुंशी होते हैं, वे प्रतिदिन कमाते हैं और खाते हैं.
कोविड-19 की दूसरी लहर से फिर से सब कुछ बंद
ऐसे अधिवक्ता लिपिक के समक्ष भी अब अपने परिवार को चलाने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. उनके इस दर्द को सुनने वाला कोई दिख नहीं रहा है. पिछले 1 वर्ष से अदालतों में वर्चुअल मोड में काम चल रहा है. बीच में वर्चुअल मोड से चलने के बावजूद भी अदालत में मुवक्किल केस फाइल करने के लिए आने लगे थे तो धीरे-धीरे कुछ लोगों का थोड़ी-थोड़ी रोजी-फिर से प्रारंभ हुई थी, लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर से फिर से सब कुछ बंद हो गया है.
सरकार से मदद की उम्मीद
ठेला और खोमचा वाले फिर से क्या करेंगे? कुछ समझ में नहीं आ रहा है, ऐसे में यह लोग किधर देखें? क्या कहें? किसको कहे? कहां गुहार लगाएं? कुछ इन्हें समझ में नहीं आ रहा है. संक्रमण से बचें या परिवार चलाएं. यहां के नीति बनाने वाले लोग इनकी समस्या को देखें या फिर भगवान के ही सहारे छोड़ दें.
लिट्टी के ठेले लगाने वाले हों या चाय के स्टॉल लगाने वाले या फिर प्रतिदिन कमाने खाने वाले सभी का एक ही निवेदन है कि संक्रमण से बचने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए लेकिन उनके परिवार के लालन-पालन के लिए भी सरकार को कुछ ध्यान देना चाहिए. इनकी ओर देखने वाला कोई नहीं है सिर्फ सरकार ही उन्हें यह राहत दे सकती है. उनका यह आग्रह है कि सरकार उनकी इस समस्या पर भी ध्यान दे.