रांची: पहले एक घर में कार आती थी तो कई घरों का काम हो जाता था, लेकिन कोरोना की वजह से स्थिति बदल चुकी है. अब हर घर के लोग अपनी-अपनी कार पर चलना पसंद कर रहे हैं. कोरोना की वजह से दिन प्रतिदिन लोगों के जीने की शैली में परिवर्तन हो रहा है. लोग सुरक्षा के दृष्टिकोण से सार्वजनिक जगहों पर जाने से परहेज कर रहे हैं. ऐसे तो उच्च वर्ग के परिवारों के पास पहले से ही निजी वाहन है, ताकि वह सार्वजनिक परिवहन सेवा से बच सकें, लेकिन अब मध्यम वर्ग फैमिली भी कोरोना की वजह से निजी वाहन खरीदने की ओर अपना रूख दिखा रहे हैं. इसके लिए पुरानी गाड़ियों का शोरूम अब काफी कारगर साबित हो रहा है.
नई गाड़ी खरीदना महंगा होने से पुरानी कार की ओर रूझान
रांची के कोकर स्थित ट्रू वैल्यू शोरूम के मैनेजर राजेश मिश्रा बताते हैं कि पहले लोग नई गाड़ियों के तरफ रुख करते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद से लोगों के पास कहीं ना कहीं पैसे का अभाव हुआ है. इस वजह से लोग पुरानी गाड़ी खरीदकर अपने और अपने परिवार को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं, मैनेजर राजेश मिश्रा बताते हैं कि नई गाड़ी खरीदने में लोगों को कम से कम 5 लाख रुपये लग जाते हैं और फिर उस गाड़ी पर डेप्रिसिएशन चार्ज भी बहुत ज्यादा लगता है. जैसे कि अगर कोई ग्राहक नई गाड़ी खरीदते हैं तो उस पर डेप्रिसिएशन चार्ज प्रति वर्ष 15 से 25 प्रतिशत तक आ जाता है, जिसके बाद उस नई गाड़ी की कीमत एक्स-शोरूम प्राइस से काफी कम हो जाती है.
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लोग कम बेच रहे अपनी गाड़ी
राजेश मिश्रा का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति नई गाड़ी खरीदने में पांच लाख रुपये खर्च करता है और उसी गाड़ी को एक से डेढ़ साल बाद अगर वह बेचता है तो उस गाड़ी की कीमत 3 से साढे़ तीन लाख हो जाती है. पुरानी गाड़ी के शोरूम के मैनेजर बताते हैं कि जिस प्रकार से कोरोना के बाद पुरानी गाड़ियों की डिमांड बढ़ी है, ग्राहकों की डिमांड पूरी नहीं हो पा रही हैं. पुरानी गाड़ियों का व्यापार करने वाले लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के बाद नई गाड़ियों की खरीदारी में कमी हुई है, इसलिए पुरानी गाड़ी को लोग कम बेच रहे हैं. इसका मतलब यह है कि लोग कोरोना के डर से पुरानी गाड़ियां खरीदने के लिए आ तो रहे हैं, लेकिन पुरानी गाड़ियों के शोरूम वाले लोगों की डिमांड को पूरी नहीं कर पा रहे हैं. कई लोगों को बैरंग वापस लौटना पड़ रहा है.