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एचईसी विस्थापित के लिए आगे आए बंधु तिर्की, कहा- लोगों की जमीन का म्यूटेशन और रसीद निर्गत करे सरकार

मांडर विधायक एचईसी के विस्थापितों और पुनर्वासित गांव के लोगों को जमीन का म्यूटेशन और रसीद देने की मांग की है. बंधु तिर्की ने सरकार का ध्यान आकृष्ट कराते हुए आग्रह किया है कि विस्थापितों को उनके मूल गांव के ही नाम के पुर्नवास स्थलों पर बसने के लिए 10 से 20 डिसमिल जमीन प्रति परिवार उपलब्ध कराई गई थी.

demand for mutation receipt of land to hec's displaced in ranchi
बंधु तिर्की

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Published : Jan 7, 2021, 6:19 PM IST

रांचीः मांडर विधायक बंधु तिर्की ने सरकार का ध्यान आकृष्ट कराते हुए गुरुवार को आग्रह किया है कि विस्थापितों को उनके मूल गांव के ही नाम के पुर्नवास स्थलों पर बसने के लिए 10 से 20 डिसमिल जमीन प्रति परिवार उपलब्ध कराई गई थी. जिसके लिए उन्हें 368 रुपये सरकार के पास जमा कराना पड़ा था. उन्हें जमीन के एवज में जमीन नहीं दी गई है. उन्होंने कहा कि उस भूमि पर मकान भी अपने व्यय पर बनाया है.

योजनाओं से वंचित हैं लोग

50 वर्ष से अधिक समय बीत जाने पर भी उन्हें आज तक भूमि का मालिकाना हक नहीं दिया गया है. क्योंकि रजिस्टर 2 में नाम दर्ज नहीं हुआ है और रसीद ना काटे जाने के कारण विभिन्न योजनाओं के लाभ से वंचित हैं, उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. परिवार में बढ़ोतरी के कारण कई सदस्य वयस्क हो गए हैं और बाल-बच्चेदार होने के कारण घर बनाने के लिए पुनर्वास स्थलों पर दी गई 10 से 20 डिसमिल भूमि कम पड़ रही है. जमीन के मालिकाना हक के कागजात नहीं होने कारण जाति प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, मूल निवासी प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे हैं.


जमीन का म्यूटेशन रसीद देने की मांग

साथ ही विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभ जैसे सामाजिक सुरक्षा वृद्धावस्था, विधवा पेंशन से भी यह वंचित है. क्योंकि बहुत से लोगों के पास विस्थापित प्रमाणपत्र भी नहीं है. नामकुम प्रखंड के ग्राम लटवा, चोरिया टोली, सतरंजी, सबे बागान और प्रखंड नगड़ी के ग्राम आनी, जगरनाथपुर, कुट्टे, तिरिल, मुड़मा, नचयातू, चेटे गांव के विस्थापितों को जाति, आय, आवासीय प्रमाण पत्र का लाभ नहीं मिल पा रहा है. तिर्की ने सरकार से मांग की है कि यहां निवास कर रहे लोगों की जमीन का म्यूटेशन रसीद निर्गत किया जाए.

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उन्होंने कहा है कि एचईसी की स्थापना के लिए भूमि का अधिग्रहण वर्ष 1957-58 से 1959-60 तक तत्कालीन बिहार सरकार की ओर किया गया था. इस कंपनी की स्थापना वर्ष 1964 में डीड ऑफ कॉन्वेयन्स वर्ष 1996 में किया गया. विस्थापितों को मुआवजे के रूप में 3200 से 4200 रुपये प्रति एकड़ राशि का भुगतान किया गया है. यह फसल के लिए क्षतिपूर्ति थी या भूमि की एवज में दी गई राशि थी, यह स्पष्ट नहीं है. उन्हें मकान, पेड़, पौधे, कुआं की कोई क्षतिपूर्ति नहीं मिली. अपने मूल ग्राम से विस्थापित लोगों विशेषकर आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के धार्मिक सामाजिक और सांस्कृतिक स्थानों को संरक्षित किया जाना चाहिए. जैसे सरना, मसना, अखरा, कब्रिस्तान, जतरा स्थल, खेलकूद स्थल का सीमांकन कर घेराबंदी की जानी चाहिए.

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