रांची:बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद जनता के बीच कांग्रेस की स्वीकार्यता को लेकर बहस छिड़ी हुई है. सवाल उठ रहे हैं कि ऐसा क्या हो गया है कि कांग्रेस लगातार जनाधार खो रही है. राज्य स्तर पर एक राष्ट्रीय पार्टी की स्थिति पिछलग्गू पार्टी वाली क्यों हो गई है. झारखंड बने 20 साल हो गए हैं फिर भी यह पार्टी अपने पैरों पर क्यों खड़ा नहीं हो पा रही है. हमारे वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने प्रदेश कांग्रेस की हालिया स्थिति पर झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार मधुकर से बात की.
वरिष्ठ पत्रकार से बातचीत(भाग-1) वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई लड़ी है. उसमें कुछ बड़े नेता बने और उनका एक्सेप्टेंस था, लेकिन बाद के दिनों में बड़े नेता गायब होते गये. आलाकमान को यह लगने लगा कि राज्य स्तर पर जनाधार बनाने वाले नेताओं का कद छोटा नहीं किया गया तो शक्ति का विकेंद्रीकरण हो जाएगा. दूसरी बात यह कि कांग्रेस में सिर्फ प्रयोग होता है. पार्टी नहीं समझ पाती कि किसको प्रभारी बनाया जाना चाहिए, जो ग्राउंड रियलिटी को समझता हो. झारखंड कांग्रेस के कई पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दूसरी पार्टियों में गए थे, उनकी जन स्वीकार्यता नहीं थी. कोई भी नेता अपने विचारों को खड़ा नहीं कर पाया. खोजना जरूरी है कि किस नेता का जनता के बीच एक्सेप्टेंस है. अगर लोग कांग्रेस को मानते भी हैं तो उन तक पहुंच नहीं बन रही है. कांग्रेसी एक-दूसरे का पैर काटने में लगे हुए हैं. तथाकथित आलाकमान को यह बात समझ में नहीं आ रही है कि किस को यहां का प्रभारी बनाया जाए.
वरिष्ठ पत्रकार से बातचीत(भाग-2) आंतरिक कलह की वजह
ओडिशा में कांग्रेस के नेता हैं भक्त चरण दास, उनको झारखंड की अच्छी समझ है. अगर उनको प्रभारी बनाते तो कुछ प्रभाव पड़ता. सुबोधकांत मानते हैं कि हमारे इतना बड़ा कोई नेता नहीं है, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि जनता के बीच उनका कितना एक्सेप्टेंस है. सुखदेव भगत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो वह बीडीओ गिरी से ऊपर नहीं उठे. रामेश्वर उरांव आईपीएस गिरी से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं. जरूरी है कि मास बेस बनाने के लिए पार्टी को आंदोलन करना होगा. हीरे को परखने का काम जोहरी करता है और जोहरी को ढूंढना होगा. इस पार्टी में आंतरिक कलह इसलिए है कि कोई अपने आप को कमतर आंकने को तैयार नहीं है. अगर सुबोधकांत संघर्ष की बात करते हैं तो उनके हाथों में किसने जंजीर बांध रखा है.
खुद को बड़ा नेता मान बैठते हैं कांग्रेसी
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आए यशवंत सिन्हा के संघर्ष का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि यही यशवंत सिन्हा थे जिनको इसी राजभवन के सामने जन मुद्दों को लेकर डंडे खाने पड़े थे और इसका भाजपा को फायदा भी हुआ. दिक्कत इस बात की है कि कांग्रेस में जैसे ही कोई एमपी, एमएलए बनता है तो वह यह मान बैठता है कि उससे बड़ा कोई नेता है ही नहीं. एक दौर था जब पार्टी स्तर पर सामाजिक, आर्थिक मुद्दों पर चर्चा होती थी, लेकिन यह व्यवस्था बंद हो गई. अब कोई भी नेता किसी ढंग से एमएलए, एमपी या वार्ड पार्षद बन रहा है. इसलिए जरूरी है कि झारखंड कांग्रेस को एक ऐसा नेता तैयार करना होगा, जिसकी बात पार्टी के लोग समझे और उसपर अमल करें.
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सुखदेव भगत बीडीओ से नेता बने थे, लेकिन पार्टी के अंदर उनकी एक्सेप्टेबिलिटी नहीं बनी. फुरकान अंसारी इनको कभी नेता नहीं मानते थे. सुबोधकांत खुद को बड़ा नेता मानते थे. दिक्कत यह है कि इस पार्टी में कोई एक्सीलेटर, क्लच या गेयर नहीं बनना चाहता. यहां ब्रेक बनने की परंपरा है. अगर सुखदेव भगत पार्टी में आना चाहते हैं तो इसके लिए माहौल बनाना पड़ेगा, क्योंकि उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव के खिलाफ चुनाव लड़ा था. ऐसी स्थिति में या तो रामेश्वर उरांव को अपना दिल बड़ा करना होगा या सुखदेव भगत को अपना कद छोटा दिखाते हुए कांग्रेस में आना होगा.
कांग्रेस के पास विचारधारा की कमी
कांग्रेस के पास आज की तारीख में कोई विचारधारा नहीं है. राहुल गांधी खुद चुनाव में मंदिरों में मत्था टेकते देखे गए, लेकिन इससे ऐसा नहीं है कि हिंदू वोट उनकी तरफ पोलराइज हो जाएगा. जनता यह देखती है कि किसी पार्टी का नेता उनके लिए क्या कर रहा है. झारखंड में ही सरकार के फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने छठ को लेकर आवाज उठा दी. जबकि यह फैसला एमएचए गाइडलाइन के आधार पर किया गया था. यह समझना चाहिए कि कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर क्या किया. अगर तबलिगियों के साथ अन्याय हुआ तो उस समय कांग्रेस क्यों मुखर नहीं दिखी. कांग्रेस से यह पूछना चाहिए कि असेंबली में जनहित के कितने मुद्दे उठाए. गरीबी के खिलाफ कांग्रेस क्या कर रही है. जाहिर सी बात है कि सिर्फ कागज पर कलम चलाने से पार्टी नहीं खड़ी होगी. कांग्रेस में एकजुटता जरूरी है और एक ऐसे नेता की जरूरत है जिस पर सभी अमल करें.