रांची:झारखंड में पहली बार साइबर ठगों और आतंकवादियों का गठजोड़ सामने आया है. झारखंड सीआईडी की जांच में पता चला है कि साइबर ठगी से हासिल किए गए पैसे विदेशी खातों के जरिए टेरर एक्टिविटी में शामिल लोगों के पास भेजे जा रहे हैं. रांची और धनबाद में ऐसे मामले सामने आए हैं. सीआईडी की साइबर सेल की टीम ने इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाली एजेंसी इंडिया साइबर क्राइम सेंटर के सहयोग से दोनों ही मामले की जांच शुरू की है.
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प्रारंभिक जांच में चौंकाने वाली जानकारियां हासिल हुई हैं. जांच में यह बात सामने आई है कि धनबाद में जिस व्यक्ति से मैरेज ब्यूरो के नाम साइबर अपराधियों ने एक करोड़ की ठगी की वारदात को अंजाम दिया था, वह पैसे मनी ट्रेल के जरिये ईरान में सक्रिय एक ऐसे समूह के खाते में गया है, जो आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त है. वहीं रांची के धुर्वा इलाके में रहने वाले एक व्यक्ति से भी क्रिप्टो करेंसी के जरिये एक करोड़ 33 लाख की ठगी हुई. इस व्यक्ति के पैसे भी विदेशी बैंक में ट्रांसफर किए हैं. जांच में पता चला है कि एक करोड़ 33 लाख लेबनान के आतंकी समूह हिजबुल्ला के अकाउंट में ट्रांसफर किए गए हैं.
41 बैंको के खातों के प्रयोग:जांच के दौरान यह बात सामने आई है कि जो करोड़ों रुपए झारखंड के विभिन्न लोगों से ठगे गए हैं, उन्हें 41 बैंक खातों के जरिए ट्रांसफर किए हैं. 41 में से अधिकांश बैंक खाते विदेशों में हैं. ठगी के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप वर्चुअल नंबर के द्वारा बनाया गया था. इसके बाद ग्रुप के माध्यम से लोगों को जोड़ा गया. जोड़ने के बाद निवेशक को निवेश में डबल और ट्रिपल मुनाफे का आश्वासन दिया गया. पैसे के निवेश के लिए चाइनीज एप बियंस और अलीबाबा नेटवर्कका इस्तेमाल किया गया. इसके साथ ही एप वास्तविक नजर आए इसके लिए एक फेक वेब पेज भी बनाया गया, लेकिन जैसे ही पैसों की ठगी हुई वेबसाइट भी बंद हो गया और व्हाट्सएप खाता भी.
अन्य राज्यो में भी बड़ी ठगी की खबर:झारखंड सीआईडी की तरफ से आम लोगों से अपील की गई है कि अगर उनके साथ किसी भी तरह की बड़ी ठगी को अंजाम दिया जाता है तो वह तुरंत मामला रिपोर्ट करें. क्रिप्टो करेंसी में निवेश करने वाले झारखंड के लोग थोड़ा ज्यादा ही सावधानी बरतें. सबसे हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि जब झारखंड से ठगे गए पैसे आतंकी खातों में जाने की जानकारी मिली, तो कई राज्यों में भी इसे लेकर जांच पड़ताल की जा रही है जिसमें चौंकानेवाले जानकारियां मिल रही हैं. उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से भी ठगी के पैसे विदेश भेजे गए हैं.
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स्थिति होगी खतरनाक:अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर अपराध के रोकथाम को लेकर काम करने वाली एजेंसी साइबर पीस फाउंडेशन के डायरेक्टर विनीत कुमार ने भी लोगों से सावधान रहने की अपील की. उनके अनुसार साइबर क्राइम को लेकर अगर लोग सचेत नहीं हुए तो विदेशी लिंक भारी मुसीबत के रूप सामने आ जाएगा. विनीत कुमार के अनुसार आप यह नहीं जानते हैं कि साइबर अपराधियों ने जो आपसे पैसे खा गए हैं उनका कहां इस्तेमाल हो रहा है. खासकर अगर आपके पैसे विदेश के खातों में ट्रांसफर हो रहे हैं तो यह बेहद खतरे वाली बात है. क्योंकि विदेशों में यह पैसे किसी के पास भी ट्रांसफर किए जा सकते हैं. उनमें देश विरोधी गतिविधियों में शामिल लोग भी शामिल हैं.
विदेशी खातों की जानकारी निकालना बेहद मुश्किल:साइबर पीस फाउंडेशन अमेरिका जैसे देशों में साइबर अपराधियों के खिलाफ काम कर रहा है. विनीत कुमार के अनुसार अगर आपके पैसे देश के अंदर किसी खाते में जा रहे हैं तो उससे फ्रीज करवाना पुलिस जैसी संस्था के लिए भी आसान काम है. लेकिन अगर आपके पैसे विदेशी खातों में जा रहे हैं तो यह खतरनाक है, क्योंकि वैसी स्थिति में कई प्रक्रिया से गुजर कर ही उन खातों पर नकेल कसा जा सकता है. इसके लिए बकायदा आपको सीबीआई जैसी एजेंसियों को लगना पड़ता है और इंटरपोल की मदद लेनी पड़ती है.
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विदेशी मनी ट्रेल का पता लगाना है मुश्किल:दरअसल, बड़ी ठगी की रकम साइबर अपराधी मनी ट्रेल के जरिए विदेशों में भेज रहे हैं. और विदेशों में हुए मनी ट्रेल को पता करना बेहद मुश्किल काम है. उदाहरण के लिए अगर आपके पैसे चाइना, पाकिस्तान जैसे देश के बैंक खातों में जाते हैं तो ऐसे में सीबीआई जैसी एजेंसी भी कोई मदद नहीं कर पाएगी.
मनी ट्रेल को आप आसान शब्दों में समझें:दरअसल वित्तीय लेनदेन और आदान-प्रदान की एक श्रृंखला जब बन जाती है तब इसे मनी ट्रेल कहा जाता है. खासकर जब यह मनी ट्रेल अपराधिक जांच के दौरान पता चले तो यह और भी गंभीर हो जाता है. मान लीजिए कि कोई शख्स ए नाम के व्यक्ति से ठगी करता है और उसके पैसे बी नाम के व्यक्ति के अकाउंट में डाल देता है. बी नाम का व्यक्ति उसी पैसे को विदेश में बैठे किसी पी नाम के व्यक्ति के खाते में डाल देता है. यह सिर्फ पुलिस को उलझाने के लिए किया जाता है. चुकी जैसे-जैसे खातों की जांच कर पुलिस असली मुजरिम तक पहुंचने की कोशिश करती है, पैसे अलग-अलग बैंक से होते हुए विदेश पहुंच जाते हैं. जहां तक पुलिस की पहुंच नहीं होती है. आमतौर पर आतंकी संगठनों को जाने वाले पैसे सीधे विदेशी अकाउंट में ही जमा किए जा रहे हैं.
व्याकरण से असली नकली की पहचान :क्रिप्टो करेंसी के जरिए ठगी के पैसे जो आतंकी खाते में गए हैं वह ठगने के लिए फर्जी वेबसाइट का भी प्रयोग किया गया था, ऐसे में आपको यह जान लेना चाहिए कि आखिर फर्जी वेबसाइट कैसे दिखते हैं. अगर आपके पास इसकी जानकारी होगी तो आप फर्जी वेबसाइट के चक्कर में नहीं फसेंगे. अगर आप लोग थोड़ा सा भी जागरूक हो जाएं तो साइबर अपराधियों की दाल कहीं नहीं गलेगी. जब भी साइबर अपराधी बल्क मैसेज भेजते हैं तो उसमें व्याकरण की अशुद्धियां होती हैं. क्योंकि अगर मान लीजिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से कोई मैसेज आता है तो बैंक का जो फॉर्मेट है उसी के अनुसार आएगा.अगर साइबर अपराधी उसकी कॉपी करते हैं तो यह आसान नहीं है ऐसे में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया लिखने में साइबर अपराधी व्याकरण की अशुद्धियां करते हैं. साइबर अपराधियों के मैसेज को अगर ध्यान से देखा जाए तो ठगी से बचा जा सकता है. अधिकांश फर्जी वेबसाइट में ओ की जगह जगह जीरो का इस्तेमाल किया जाता है, इसे भी ध्यान से देखें.
यूआरएल की समझ ठगी से बचाएगी:किसी भी फेक साइट का यूआरएल http से शुरू होती है और इसमें लॉक का आइकन नहीं होता, जबकि सुरक्षित वेबसाइट https से शुरू होती हैं और लॉक आइकन के साथ होता हैं. इसका मतलब है कि वेबसाइट सुरक्षित हैं. सबसे पहले यूआरएल की जांच करें. इस बात को सुनिश्चित कर लें कि यह असली साइट है.