रांची: "पढ़ेगा झारखंड तभी तो बढ़ेगा झारखंड" सूबे के बच्चे को पढ़ने के लिए बड़ी सोच तो सरकार बना लेती है लेकिन झारखंड की किस्मत ऐसी है कि जो उसकी झोली में आना है वह किसी और के बदइंतजामी की भेंट चढ़ जाती है. 1 जुलाई 2023 झारखंड के शैक्षणिक विकास के लिए एक मील का पत्थर साबित होता, क्योंकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के तहत जिन विद्यालयों का चयन किया आज वहां से पढ़ाई शुरू हुई है. लेकिन जो सोच कर के अभिभावक इस स्कूल में अपने बच्चे को भेजे हैं. और जो हालात इन स्कूलों के दिखे अब इन सभी अभिभावकों के माथे पर बल पड़ गया है कि यहां बच्चे पढ़ेंगे क्या यहां रहेंगे कैसे?
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सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के पहले दिन जब विद्यालय खुला तो लोगों में काफी उत्साह था. बच्चे भी उत्साहित थे. शिक्षक भी उत्साहित थे. अभिभावक तो फूले नहीं समा रहे थे कि हमारे बच्चे वैसे विद्यालय में पढ़ेंगे जो निजी विद्यालयों को टक्कर देते हैं. यहां से निकलकर झारखंड, अपने जिले, अपने गांव और माता पिता का नाम रोशन करेंगे. इन तमाम सोच के साथ जो अभिभावक सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस पहुंचे थे उन लोगों को वहां दिखावे की तो तैयारी दिखी, लेकिन जो तैयारी दिखनी चाहिए थी वह अभिभावकों को रास नहीं आई.
बच्चे के एडमिशन के बाद वहां की हालात को गार्जियन किस तरीके से देख रहे हैं. जब ईटीवी भारत ने इसकी पड़ताल की तो वहां पहुंची एक महिला ने कहा कि पढ़ाई का क्या हाल होगा यह तो आने वाले समय में पता चलेगा. लेकिन पढ़ाने के लिए जो माहौल देने की बात थी वैसा इंतजाम यहां दिख नहीं रहा है. हॉस्टल में गंदगी का अंबार है. और जानकारी में यह बातें भी आई हैं कि खाना गंदे पानी से बन रहा है. ऐसे में तो बच्चे बीमार पड़ जाएंगे और पढ़ाई क्या करेंगे. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए था क्योंकि गंदा खाना खा कर के कोई कैसे ठीक रह पाएगा.
सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के लिए एक महिला ने जो सवाल उठाया है पूरे झारखंड के लिए सरकारी व्यवस्था पर बहुत बड़ी चोट है. इसमें दो राय नहीं कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंड के शिक्षा व्यवस्था के लिए चिंतित नहीं हैं. या फिर छात्रों को क्या मिलना चाहिए उसके लिए उनकी तरफ से की जाने वाली तैयारी में कोई कमी है.
सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की बात करें या फिर विदेशों में भेज करके झारखंड के छात्रों को पढ़ाने की, यूपीएससी की पीटी परीक्षा को पास कर चुके छात्रों को मेंस की तैयारी के लिए ₹100000 देने की बात हो. यह तमाम योजनाएं सरकार और हेमंत सरकार की बड़ी सोच में है. इसके लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सराहना हो ही रही हैं. बड़ा सवाल यह है कि जिन अधिकारियों को इसकी निगरानी करनी है वह उसकी निगरानी आंख बंद करके कर रहे हैं. या फिर बंद आंख से ही उसकी निगरानी करनी है यह तंत्र के हिस्से में शामिल है. क्योकि मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट पर ही सवाल उठ रहा है.