रांची: विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मनाए जा रहे राजकीय समारोह झारखंड आदिवासी महोत्सव के समापन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा कि राज्य में करीब 28 लाख संथाल आदिवासी हैं और झारखंड की कुल आबादी करीब 3 करोड़ है. अगर राज्य के कुल आदिवासियों की बात करें तो 90 लाख है जो कुल आबादी की 26 फीसदी है. राज्य में कुल 32 आदिवासी समूह हैं और संथाल में सबसे ज्यादा आदिवासी हैं.
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मुख्यमंत्री ने कहा है कि झारखंड राज्य का बंटवारा आदिवासी मूल्यों को ध्यान में रखते हुए ही किया गया है. झारखंड के विकास के लिए हम लोग काम कर रहे हैं. अगर लोगों को यह लग रहा है कि जो भी आदिवासी समाज है, वह देश में कहीं गुम हो जाएगा ऐसा नहीं है. हम लोगों के रहते आदिवासी समाज पर कोई कुछ नहीं कर सकता.
सरना कोड को लेकर किए गए सवाल का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि यह आदिवासी समाज की पहचान का विषय है. सवा सौ करोड़ की आबादी में 13 करोड़ आदिवासी हैं. इनकी पूरी पहचान ही इस विषय को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. इस सवाल पर एक जवाब खोजना होगा कि आखिर इन आदिवासियों के लिए समाज में कौन सी जगह होगी. समाज को यह सोचना होगा कि सवा सौ करोड़ की आबादी में क्या यह 13 करोड़ की आबादी उसी में विलय हो जाएगी या फिर उनकी पहचान के लिए कुछ किया जाएगा.
सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि देश में आदिवासी समाज से कम जनसंख्या वाली कई ऐसी जातियां हैं जिनकी पहचान देश में अलग तरह से है. लेकिन आदिवासी समाज उस जगह पर नहीं पहुंच पाया है. जिसपर काम करने की जरुरत है. मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड पहला ऐसा राज्य है जिसने आदिवासी समाज को जगह देने के लिए सरना धर्म कोड पास करके केंद्र सरकार को भेजा है जो अभी केंद्र सरकार के पास लंबित है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि देश में आदिवासी को आदिवासी ही नहीं समझा जाता है. कोई उन्हें बनवासी कहता है और कोई उन्हें दूसरा परिचय देता है. केंद्र और राज्य में आदिवासी कल्याण मंत्रालय जरूर है, लेकिन आज भी समाज में आदिवासी को आदिवासी का दर्जा नहीं दिया जा रहा है. यह एक बड़ा कंट्रोवर्शियल लैंग्वेज है. आदिवासी वनवासी नहीं हैं और वनवासी आदिवासी नहीं हैं. यह एक विवादित विषय है मंत्रालय तो है, लेकिन यह परस्पर विरोधाभासी है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड बंटवारे की हिस्ट्री कंट्री बंटवारे की हिस्ट्री से कम नहीं है. यहां भी गरीबों के जल जंगल और जमीन को लूटा जाता था और आदिवासी उसमें कुछ नहीं कर पाते थे. अपनी जमीन और माटी को बचाने के लिए दर्जनों लोग शहीद हुए हैं और आदिवासी समाज के लिए इन लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि पिछले 100 सालों से ही झारखंड के मिनरल्स को उपयोग में लिया जा रहा है. लेकिन उसके नाम पर जिन लोगों को विस्थापित किया गया उन लोगों की स्थिति आज तक नहीं सुधरी. चाहे कोयला निकालने की बात हो या फिर लौह अयस्क निकालने की बात हो. जिन लोगों को विस्थापित किया गया उन लोगों का घर बनाने का काम आज तक नहीं किया गया.
सीएम ने कहा कि उनकी सरकार ने इन लोगों को सुविधा देने की कोशिश की है. देश को सबसे ज्यादा मिनरल रॉयल्टी झारखंड से ही प्राप्त होती है. लेकिन झारखंड के लोगों के लिए कुछ नहीं किया गया. यहां के आदिवासियों को किसी भी तरह की रॉयल्टी आज तक नहीं मिली. आज तक इन लोगों के लिए केंद्र सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं किया गया.
हेमंत सोरेन ने कहा कि मणिपुर की घटना ने बड़ी विचित्र स्थिति में आदिवासी समाज लाकर खड़ा कर दिया है. सैकड़ों साल पहले अंग्रेज जिन आदिवासियों को लेकर गए थे आज वह वापस आ रहे हैं. हम उन्हें सेल्टर देने का काम भी कर रहे हैं. पूरे देश में आदिवासी जिस तरीके से बिखरे हुए हैं उनको एकजुट करने का हमारा प्रयास है ताकि उन लोगों को एक डोर में बांधा जा सके.