रांचीः 10 जून, दिन शुक्रवार, जुमे की नमाज के बाद, रांची के मेन रोड की तस्वीर बिल्कुल बदल गयी. इबादत के बाद शहर पर पत्थरों की बारिश हुई, गोलियों की बौछार हुई. उपद्रवियों ने शहर में जमकर तांडव मचाया, आम लोगों और मंदिरों को निशाना बनाया गया. इस पथराव में सैकड़ों लोग जख्मी हुए, दर्जनों पुलिस वालों के सिर फूटे. दुखद ये रहा कि इस घटना में दो लोगों ने अपनी जान गंवा दी. अचानक उठे इस बवाल को रोकने की प्रशासन ने भरसक कोशिश की. तूफान थमा, बवाल की आग ठंडी तो हुई लेकिन शहर की गलियारों में सवालों की तपिश अब तक बरकरार है.
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रांची हिंसा की जांच, कार्रवाई और सवाल से लेकर जवाब का दौर शुरू हुआ. इस हिंसा की धमक दिल्ली तक महसूस की गयी. जुमे की नमाज के बाद झारखंड में हिंसा को लेकर के केंद्रीय गृह मंत्रालय और झारखंड के राज्यपाल ने सरकार से सवाल पूछा है. झारखंड के राज्यपाल ने डीजीपी सहित तमाम बड़ी अधिकारियों को राजभवन में तलब किया और पूछा कि हिंसा के बारे में अभी तक का अपडेट क्या है, गिरफ्तारी को लेकर बात क्या चल रही है.
मंगलवार को जो कुछ हुआ उसके बाद कई सवाल उठ खड़े हुए हैं जांच की दिशा क्या होगी. इधर केंद्रीय एजेंसियों ने झारखंड सरकार से कई सवाल पूछे हैं. रांची की हिंसा पर जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से सवाल किया गया तो उन्होंने जो जवाब दिया उसे सुनकर सभी चौंक गए. पत्रकारों के बार-बार सवाल पूछने पर सीएम झुंझलाते (CM Hemant Soren angry) हैं. एक बार फिर पत्रकार सीएम से कहते हैं कि रांची हिंसा पर कुछ बोल दीजिए. जिसके बाद अपनी झुंझलाहट को तंज में बदले हुए सीएम कहते हैं 'क्या बोले, क्या बोलवाना चाहते हैं आप हमसे, क्या चाहते हैं आप कि पेट्रोल-डीजल लेकर निकल जाएं क्या.' सीएम यहीं नहीं थमते, जब पत्रकार पूछते हैं कि इस जवाब के क्या मायने हैं तो सीएम इतना तक कह डालते हैं कि 'जब आप इतना नहीं समझ पा रहे हैं तो पत्रकारिता छोड़ दीजिए.'
सीएम हेमंत सोरेन के इस जवाब पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. लेकिन सीएम को हिंसा पर जवाब तो देना ही है. मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रशासन से सवाल पूछा गया है कि जो गोली चलाई गयी उसका खोखा क्यों नहीं रखा गया, रबर बुलेट का इस्तेमाल क्यों नहीं हुआ, वाटर कैनन का उपयोग क्यों नहीं हुआ, सुरक्षा एजेंसियों ने जो इनपुट दिए थे उसके आधार पर तैयारी क्यों नहीं की गई. ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब झारखंड की सरकार को देना है, इसके लिए पुलिस महकमा जवाब तैयार भी कर रहा है.
लेकिन जनता को जो जवाब अपने मुखिया से चाहिए वह बड़ा अजीब है, जिसे सुनने में भी अजीब लग रहा है. इस जवाब को सुनकर यह कहा जा सकता है कि ऐसे गंभीर मसलों पर मुखिया का जवाब भी गंभीर ही होगा. लेकिन अब सत्ता पक्ष की तरफ से ऐसा जवाब आया है तो राजनीति होगी कि बयानों को तोड़कर समझा और समझाया गया है.
पत्रकारों के सवाल और इस सरकार के जवाब ने झारखंड में तहलका मचा दिया है. झारखंड में कानून व्यवस्था को लेकर कई बातें हो रही हैं. मुख्यमंत्री का इस तरीके का बयान निश्चित तौर पर सकते में डालने वाला है. लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं, उनके मायने मतलब क्या हैं. ये तमाम बातें अभी सियासी गर्भ में पल रहे हैं. लेकिन जो समझ निकलकर सामने आ रही है, उसके अनुसार अभी भी झारखंड की सियासत में गुस्सा शांत नहीं हुआ है. गुस्सा चाहे आम लोगों का हो, झुंझलाहट चाहे हुक्मरानों की हो या पेशानी पर बल प्रशासन के माथे पर हो.