रांची: झारखंड की आदिवासी संस्कृति और सभ्यता से दुनिया को परिचित कराने वाले डॉ. रामदयाल मुंडा की जयंती (Dr. Ramdayal Munda's birth anniversary) के मौके पर सोमवार को पूरा झारखंड उन्हें याद कर रहा है. सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्रांति का बिगुल फूंकने का श्रेय डॉ. रामदयाल मुंडा को जाता है.
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23 अगस्त 1939 को रांची के तमाड़ दिउड़ी में जन्मे डॉ. रामदयाल मुंडा का नागपुरी और मुंडारी में लिखा गया गीत आज भी झारखंड के गांवों और कस्बों में बड़े ही आदर के साथ लोग गाते हैं.
उनका लिखा पहिल पिरितिया आज भी लोगों की जुबान पर है. रांची के तमाड़ से अमेरिका के मिनेसोटा विश्वविद्यालय तक की सफर करने वाले डॉ. रामदयाल मुंडा भाषा विज्ञान के मर्मज्ञ थे. आदिवासी समाज की स्थिति और उन्हें उठाने के लिए सदैव चिंतित रहने वाले डॉ. रामदयाल मुंडा सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलन के अगुआ रहे.
संयुक्त बिहार के समय दक्षिण बिहार की 9 क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई शुरू कराने का श्रेय डॉ. रामदयाल मुंडा को ही जाता है. लंबे बाल और जींस के साथ हाफ कुर्ता पहनने के शौकीन डॉ. रामदयाल मुंडा ने काफी संघर्ष के बाद क्षेत्रीय और जनजातीय भाषा के शोध एवं प्रशिक्षण को लेकर विभाग स्थापित करने में उन्हें सफलता मिली थी, जो आज भी रांची में स्थित है.
झारखंड विधानसभा में डॉ. रामदयाल मुंडा को श्रद्धांजलि दी गई
स्पीकर और सीएम ने दी श्रद्धांजलि
डॉ. रामदयाल मुंडा की जयंती पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) और स्पीकर रवीन्द्र नाथ महतो महतो ने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उन्हें याद किया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि विश्व पटल पर आदिवासी संस्कृति को मुखर करने वाले महान शिक्षाविद और कलाकार पद्मश्री रामदयाल मुंडा जी की जयंती पर उन्हें नमन करता हूं. इधर, विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा है कि ना केवल शिक्षाविद बल्कि झारखंड की संस्कृति और सभ्यता को ऊंचाई पर ले जाने वाले ऐसे महान व्यक्ति का जीवन प्रेरणादायक है. झारखंड के लोग अपने इस सपूत से गौरवान्वित हैं और उनकी ओर से किया गया काम लोगों के लिए अनुकरणीय है. हम विधानसभा परिवार की ओर से उन्हें नमन करते हैं.
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आदिवासी अधिकारों के लिए रहे मुखर
आदिवासियों के अधिकारों को लेकर डॉ. रामदयाल मुंडा देश दुनिया में मुखर रहे. दुनिया के आदिवासी समुदाय को संगठित करने और झारखंड में सांस्कृतिक आंदोलनों को नेतृत्व प्रदान करने वाले डॉ. रामदयाल मुंडा रांची, पटना, दिल्ली से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक के अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आदिवासी अधिकारों को लेकर आवाज उठाते रहे. 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी का सम्मान मिला था. वहीं, 22 मार्च 2010 में वे राज्यसभा के सांसद बनाए गए. 2010 में ही उन्हें पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया था. वह रांची विश्वविद्यालय रांची के कुलपति भी रहे थे.