रांची:भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट ने रांची नगर निगम की पोल खोलकर रख दी है. मामला "रांची शहर में मल और जल निकास व्यवस्था के प्रबंधन" से जुड़ा है. इस प्रोजेक्ट के नाम पर करोड़ों रुपए बेवजह खर्च कर दिए गये. प्रोजेक्ट के लेखा परीक्षा के मुताबिक जून 2005 में यह योजना शुरू हुई थी. लेकिन 17 साल बाद भी परियोजना पूरी नहीं हुई.
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सितंबर 2017 से मार्च 2019 तक और उसके बाद जनवरी 2023 तक समय बढ़ा दिया गया. इसकी वजह से परियोजना का प्राथमिक उद्देश्य फ्लॉप साबित हो गया. सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक विभाग ने भी शर्तों का उल्लंघन कर अयोग्य और अनुभवहीन संवेदक को काम दे दिया. परियोजना का डीपीआर तैयार करने के लिए 16.04 करोड़ रुपए परामर्शी को दिया गया, जो बेकार चला गया. क्योंकि डीपीआर ने परियोजना के क्षेत्र-1 में जरूरी उद्देश्य को पूरा नहीं किया. बाद में नया सर्वेक्षण करना पड़ा. अन्य तीन क्षेत्रों में किसी भी काम को लेने के लिए भी डीपीआर का इस्तेमाल नहीं किया गया.
अयोग्य और अनुभवहीन संवेदन को काम:सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक रांची नगर निगम की निविदा ने संवेदक मेसर्स ज्योति बिल्ड टेक प्रा. लिमिटेड (प्रमुख भागीदार) और मेसर्स विभोर वैभव प्रा. लिमिटेड के संयुक्त उपक्रम जेवी का पक्ष लिया. जबकि संवेदक के प्रमुख भागीदार के पास निविदा पात्रता की शर्तों को पूरा करने लिए जरूरी अनुभव तो दूर वित्तीय क्षमता भी नहीं थी. संवेदक ने निविदा की अहर्ता पूरी करने के लिए जाली और मनगढंत दस्तावेज दिया था. प्रोजेक्ट के कार्य निष्पादन के दौरान संवेदक जरूरी मैन पावर और मशीन भी उपलब्ध नहीं करा पाया. धीमी कार्य की वजह से सितंबर 2018 और मार्च 2019 में समय विस्तार दिया गया. इसके बावजूद संवेदक ने एकपक्षीय रूप से काम बंद कर दिया. इसकी वजह से रांची नगर निगम ने अक्टूबर 2019 में अनुबंध समाप्त कर दिया.
अयोग्य संवेदक पर खूब बरसायी गई कृपा:सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक संवेदक को 5 प्रतिशत के बजाए 15 प्रतिशत की दर से मोबिलाइजेशन अग्रिम का भुगतान किया गया. इसकी वजह से 35.93 करोड़ का अधिक भुगतान हुआ. यही नहीं मोबिलाइजेशन अग्रिम की 18 करोड़ की एक किश्त बिना बैंक गारंटी से सुरक्षित किए बगैर दे दी गई. इस किश्त की बैंक गारंटी संवेदक ने अग्रिम भुगतान के 10 माह बाद जमा की थी. हद तो तब हो गई जब अन्य दो किश्त की 36 करोड़ की राशि वैसी बैंक गारटी के बदले दी गई जो ऐसी संस्था से जारी की गई थी, जो बैंक गारंटी जारी करने के लिए अधिकृत है ही नहीं.
निष्पादन चरण में संवेदक को अधिक भुगतान:रिपोर्ट के मुताबिक रांची नगर निगम ने संवेदक को अधिक भुगतान किया है. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के 4.22 करोड़ के सभी घटकों के डिजाइन और अलाइनमेंट जमा किए बगैर और चरणबद्ध भुगतान का पालन किए बिना सीवेज पंपिंग स्टेशन के लिए 75.40 लाख एकमुश्त दे दिया गया. साथ ही 1.98 करोड़ रुपए नाली के काम के मदों के बढ़े हुए माप के कारण कर दिए गये थे. वर्षा जल नालों के आंशिक निष्पादन पर 47.93 लाख रुपए बेवजह खर्च किए गये. क्योंकि खंड-खंड में बनी नालियों के हिस्से किसी भी नाली नेटवर्क से नहीं जोड़े गये. वाटर फ्लो तो रूका ही, ऐसी नालियों में सेप्टिक टैंको का पानी भरा पाया गया. ऐसे नालों का निर्माण योग्य संस्थान के डिजाइन के बिना ही शुरू किया गया था.
सीएजी की रिपोर्ट से साफ है कि रांची में सिवरेज और ड्रेनेज के नाम पर पानी की तरह पैसे बहाए गये. विभागीय अदूरदर्शिता का खामियाजा शहर को लोग भुगत रहे हैं क्योंकि गली-मुहल्लों में जहां-तहां नालियों का पानी बहता दिखता है क्योंकि नालियों की कनेक्टिविटी है ही नहीं. अब देखना है कि सरकार इस रिपोर्ट की गंभीरता से लेती है या इसे ठंडे बस्ते में डालती है.