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BAU में विश्व मधुमक्खी दिवस के अवसर पर वेबिनार का आयोजन, शहद के फायदों पर हुई चर्चा

रांची में मधुमक्खी दिवस के मौके पर वेबिनार का आयोजन किया गया. इस मौके पर कई अधिकारियों ने शहद से होने वाले फायदों को बताया साथ ही प्रदेश में कैसे इस उद्यम को बढ़ाया जा सकता है इसपर भी विचार किया गया.

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मधुमक्खी पालन दिवस के अवसर पर हुआ वेबीनार

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Published : May 21, 2021, 7:12 AM IST

रांची:बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो, आरओबी रांची और एफओबी, दुमका के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को वर्चुअल माध्यम से वेबिनार का आयोजन किया गया. इसमें मधुमक्खी पालन की कला और इम्युनिटी बढ़ने में शहद के महत्त्व को बताया गया.

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झारखंड के शहद की पूरे देश में मांग

भारत सरकार के उपक्रम पीआईबी और आरओबी के अपर महानिदेशक डॉ अरीमर्दन सिंह ने कहा कि मधुमक्खी एक सामाजिक कीट है. इसका सामाजिक जीवन काफी विकसित और परिवार काफी व्यवस्थित होता है. इसके शहद और अन्य उत्पाद पराग, मोम, रॉयल जेली, वीवेनम और प्रोपेलीज का काफी अधिक औषधीय महत्त्व है. झारखण्ड की करंज आधारित शहद की पूरे देश में काफी मांग है. झारखंड में उत्पादित शहद में नमी की मात्रा कम होने की वजह से अच्छी कीमत मिलती है और मांग भी ज्यादा है. झारखंड की जलवायु और प्राकृतिक संसाधन मधुमक्खी पालन के लिए काफी उपयुक्त है. मधुमक्खी पालन में प्रबंधन का सर्वाधिक महत्त्व है. राज्य सरकार मधुपालकों की समस्याओं का समाधान कर इस उद्यम को नई दिशा दे सकती है. इस उद्यम से जोड़कर राज्य के ग्रामीण युवाओं के रोजगार अवसर मुहैया कराई जा सकती है.

मधुमक्खी पालन से किसानों को होता है फायदा

कीट वैज्ञानिक डॉ मिलन चक्रवर्ती ने कहा कि मधुमक्खी पालन से किसानों को दोहरा लाभ मिलता है. मधुमक्खी फसलों का मित्र कीट है. इसके परपरागण क्रिया का खाद्यान, फल और सब्जी आदि के उत्पादन में सर्वाधिक महत्त्व है. फसलों के समीप मधुमक्खी पालन से फसल उपज में 15-20 प्रतिशत उपज और तेल की मात्रा और गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है. मधुमक्खी पालन के लिए अक्टूबर– नवंबर और फरवरी–मार्च का महीना सबसे उपयुक्त है. मधुपालकों से प्रशिक्षण लेकर न्यूनतम 5 बक्से से इसकी शुरुआत की जा सकती है. इसमें मधुमक्खी (मौन) की एपीस मेलीफेरा और एपीस सेरेना नामक पालतु प्रजाति का प्रयोग किया जा सकता है.

फलों के लिए मधुमक्खी पालन जरूरी

शहद तीन प्रकार के होते हैं, आर हनी, रेगुलर हनी और शुद्ध हनी. इनमें शुद्ध हनी सुगर युक्त नहीं होती और सबसे उत्तम मानी जाती है. कीट वैज्ञानिक डॉ विनय कुमार ने मधुमक्खी के बिना अनाज, फल, फूल आदि का उत्पादन को असंभव बताया. कहा कि यह किसानों के लिए काफी बहुउपयोगी कीट है. कश्मीर और शिमला के सेब उत्पादक किसान, सेब की खेती में मधुपालकों को उचित पारिश्रमिक देकर बागों में मधुमक्खी पालन कराते हैं. किसानों को मधुमक्खी से फसलोत्पादन में लाभ के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है. इस आयोजन को बेहद सार्थक पहल और राज्य में शहद जांच प्रयोगशाला केंद्र स्थापित करने की जरूरत बताई.

मधुमक्खी पालन से बढ़ेगा रोजगार

केवीके विकास भारती, गुमला के वैज्ञानिक डॉ पंकज सिंह ने किसानों को इस उद्यम के प्रति जागरूक करने पर बल दिया, कहा कि मधुमक्खी पालक नेशनल बी बोर्ड में रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत 10-12 लाख के बैंक लोन से इस उद्यम की शुरुआत की जा सकती है. प्रो रंजीत कुमार सिंह ने बताया कि साहिबगंज के 70 प्रतिशत आदिवासी आबादी के बीच यह उद्यम काफी प्रचलित है. यह व्यापक रोजगार उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र है.

शहद है बेहद फायदेमंद

आयुष, पटना के पूर्व निदेशक डॉ नुमन अहमद ने कहा कि अनेकों विटामिन और मिनरल्स से युक्त शहद इम्युनिटी बढ़ाने के साथ काफी स्वास्थ्यवर्धक है. शहद का एक–दो चम्मच प्रतिदिन इस्तेमाल करना चाहिए. अदरख और शहद के सेवन से खांसी, बरसिंह भस्म और शहद के सेवन से दमा, सांस की बीमारी दूर हो जाती है. लहसून को कुछ दिनों तक शहद में मिलाकर रखने के बाद उपयोग से ब्लड प्रेशर की समस्या से निजात पाया जा सकता है.

पूरी दुनिया में होता है शहद का इस्तेमाल

सऊदी अरब से भाग ले रहे मो मोहसिन ने बताया कि सऊदी के हरेक घरों में शहद का उपयोग होता है. विश्व का हर शहद का ब्रांड यहां के बाजार में उपलब्ध है. कोरोना काल में शहद की मांग काफी बढ़ गयी है. यहां की पूरी आबादी इम्युनिटी बढ़ाने में इसका उपयोग करने लगी है.

मधुमक्खी पालन है लाभकारी

मधुमक्खी पालक और ट्रेनर अशोक कुमार ने बताया कि प्रदेश में यह लाभकारी उद्यम के रूप में उभर रहा है. प्रदेश में बहुतायत करंज आधारित शहद उत्पादित किया जाता है. बड़े मधुमक्खी पालक छत्तीसगढ़ में सरगुजा, मुज्जफरपुर में लीची, लातेहार में वन तुलसी और मध्य प्रदेश में सरसों आधारित शहद उत्पादन की परपरागण क्रिया हेतु बक्से का पलायन करते है. एक राज्य से दूसरे राज्य में बक्से के पलायन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यह उद्यम प्रदेश में फल फूल सकता है. इसके औषधीय गुणों को देखते हुए बच्चों को मिडडे मिल में देकर कुपोषण से बचाव किया जा सकता है.

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