रांची: जिस स्वावलंबी समाज की गांधी जी ने परिकल्पना की थी, उसी समाज को तैयार करता है धुर्वा के जगन्नाथपुर स्थित छोटानागपुर नागपुर खादी ग्रामोद्योग संस्थान. इस संस्थान की स्थापना देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की ओर से 1928 में की गई. लेकिन इस संस्थान की नींव देश के राष्ट्रपिता और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने 1917 में ही रखी थी और तब से लेकर अभी तक यह संस्थान गांधी जी के विचारों पर चलने का काम कर रहा है. आज भी इस संस्थान में चरखे और हस्त करघाह पर सूती की बुनाई देखने को मिलती है.
लोगों को रोजगार देने में अहम भूमिका
इस संस्था में 40 वर्षों से अपनी सेवा दे रहे श्याम किशोर लाल बताते हैं कि गांधीजी के विचारों को आगे तक ले जाने का काम यह संस्था कर रहा है और यह संस्था से सूती के कपड़े का ही नहीं बल्कि बेरोजगारी को रोजगार देने में भी अहम भूमिका निभाने का काम कर रहा है. क्योंकि इस संस्थान में कोई भी काम मशीन से नहीं बल्कि मजदूरों के हाथों से होती है. खादी के कपड़े बनाने के लिए पहले किसानों से कोकून खरीदा जाता है. उसके बाद उस कोकून से सुते को निकाला जाता है और फिर उसे हस्तकरघाह और चरखे पर मजदूरों की ओर से बुनने का काम किया जाता है, जिसके बाद उस बुने हुए कपड़ो को फिनिशिंग के लिए बाहर भेजा जाता है. फिर वह कपड़ा बनकर तैयार होता है, जिसे हम खादी के कपड़े के रूप में उपयोग करते हैं. इस कपड़े को बनाने में मशीन से ज्यादा मजदूरों के कारीगिरी की जरूरत पड़ती है. जिस वजह से बेरोजगारों को रोजगार मिलता है.
बदहाली की मार झेल रहे कारीगर
गांधी जी के सपनों का यह संस्थान आज बदहाली की मार झेल रहा है, जिस संस्थान के कर्मचारी अपने दिन की शुरुआत गांधी जी के भजन 'वैष्णव जन तो तेने कहिए' और 'रघुपति राघव राजा राम' जैसे शब्दों से करते हैं. आज वही कर्मचारी आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं. 24 एकड़ में फैला इस संस्थान में एक समय कई कुटीर उद्योग चलते थे, जैसे मधु प्रोडक्शन उद्योग, सरसों तेल घानी उद्योग इत्यादि इस संस्था में बनते थे और हजारों युवकों को रोजगार मिलता था, जो गांधी जी के स्वावलंबी समाज के सपनों को कहीं न कहीं साकार कर रहा था. लेकिन सरकार की उदासीनता और लापरवाही से आज ये संस्थान मजबूर होकर गांधी के सिद्धांतों पर चलने के लिये कमजोर पड़ रहा है.
मेहनत के हिसाब से कम है मजदूरी
संस्थान के संचालक अभय कुमार चौधरी के दृढ़ संकल्प की वजह से संस्थान आज भी खादी के कपड़ो का लगातार निर्माण कर रहा है, जिससे आसपास रहने वाली कई महिलाएं और बेरोजगारों को रोजगार मिल रहा है. इस संस्थान में काम करने वाली महिलाएं बताती है कि प्रतिदिन खादी के कपड़ों को काट-छांट कर हम लोग कुर्ता-पजामा और अन्य डिजाइन के कपड़े बनाने का काम करते हैं. लेकिन डिमांड अधिक नहीं होने के कारण हम लोगों को मजदूरी मेहनत के हिसाब से नहीं मिल पाती है.
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