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चुनाव आयोग की चिट्ठी से सियासी पारा चढ़ा, सीएम पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का आरोप, जवाब तैयार कर रहा है सीएस ऑफिस

सीएम पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के आरोप मामले में चुनाव आयोग की चिट्ठी से सियासी पारा चढ़ गया है. सीएस ऑफिस चिट्ठी का जवाब तैयार करने में जुटा है.

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Published : Apr 20, 2022, 7:24 PM IST

Updated : Apr 20, 2022, 10:00 PM IST

रांची: इन दिनों झारखंड का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक यही चर्चा है कि क्या झारखंड में संवैधानिक संकट गहराने वाला है. इसकी वजह है चुनाव आयोग की दिल्ली से आई एक चिट्ठी. चुनाव आयोग की चिट्ठी सूबे के मुख्य सचिव के पास आई है. इसमें कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सरकार को देना है. यह मामला सीधे-सीधे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़ा हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उनपर ऑफिस ऑफ प्रोफिट का आरोप लगाया है. ईटीवी भारत को मिली जानकारी के मुताबिक चुनाव आयोग ने शिकायती पत्र के आधार पर मुख्य सचिव से यह जानना चाहा है कि हेमंत सोरेन ने खदान के लिए कब आवेदन दिया था. आवेदन को कितने दिनों में स्वीकृति मिली थी. चिट्ठी आने के बाद से सीएस ऑफिस दस्तावेजों को वेरिफाई करने में जुटा है. इसके बाद चुनाव आयोग को जवाब भेजा जाएगा. हालांकि इस मसले पर कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कितने दिनों के भीतर चुनाव आयोग को जवाब दिया जाएगा.

ये भी पढ़ें-सीएम की बढ़ सकती है परेशानी! ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में 22 अप्रैल को सुनवाई, शिबू सोरेन भी गवां चुके हैं सदस्यता

दरअसल, इस मामले को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 10 फरवरी को उठाया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री ने माइंस मिनिस्टर रहते हुए रांची के अनगड़ा में अपने नाम से 0.88 एकड़ में पत्थर खदान को लीज पर लिया था. इसके बाद 11 फरवरी को भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को पूरे मामले से अवगत कराते हुए हेमंत सोरेन को विधायक के पद से डिस्क्वालिफाई करने की मांग की थी. इस मसले को राजभवन ने चुनाव आयोग को रेफर कर दिया था. उसी आलोक में चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव से जानना चाहा है कि शिकायती पत्र में जो बातें लिखी गई हैं वो सही हैं या नहीं. इस मसले पर चुनाव आयोग की राय के आधार पर राजभवन फैसला लेगा. हालाकि यह मामला पीआईएल के रूप में झारखंड हाई कोर्ट में भी फाइल हो चुका है. इसपर बहुत जल्द सुनवाई होने वाली है. वैसे महाधिवक्ता राजीव रंजन कोर्ट को कह चुके हैं कि यह मामला कोड ऑफ कंडक्ट का हो सकता है, संविधान के उल्लंघन का नहीं.

संविधान के जानकारों का कहना है कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे में आने के लिए ऑफिस (पद या पॉजिशन) होना चाहिए. दूसरा, संबंधित संस्थान सरकार के अधीन होना चाहिए. तीसरा, आर्थिक लाभ मिलना चाहिए. अगर कोई मंत्री अपने नाम से खदान को लीज पर लेता है तो यह पार्लियामेंट्री प्रीवलेज का सवाल हो सकता है. प्रोप्राइटरी का भी मसला आ सकता है. मंत्री पद के लिए जो शपथ ली जाती है, उसका वायलेशन हो सकता है. संविधान के जानकारों का कहना है कि सरकार की तरफ से चुनाव आयोग को जवाब भेजा जाएगा. इसके बाद चुनाव आयोग दोनों पक्ष से जवाब मांगेगा. जवाब के आधार पर चुनाव आयोग अपनी मंशा से राज्यपाल को अवगत कराएगा. जानकारों का कहना है कि डिस्क्वालिफाई किए जाने पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है.

Last Updated : Apr 20, 2022, 10:00 PM IST

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