रांची:कोरोना की दूसरी लहर में एक तरफ हजारों की संख्या में लोगों की मौत हुई है. वहीं, दूसरी तरफ कोरोना से ठीक हो चुके कई मरीज पोस्ट कोविड इफेक्ट से परेशान हैं. कई लोग ब्लैक फंगस का शिकार हो रहे हैं. ब्लैक फंगस से कई लोगों की जान भी गई है. ब्लैक फंगस के केस लगातार आ ही रहे हैं कि इस बीच व्हाइट फंगस के मामले भी सामने आ गए. 24 घंटे पहले येलो फंगस का भी एक मामला सामने आया है. ऐसे में यह सवाल है कि ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस क्या है. इसके अलावा एक नई बीमारी एमआईएससी यानी मल्टी सिस्टम इन्फ्लामेट्री सिंड्रोम ने भी दस्तक दी है. ये चारों बीमारी क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है, इसे लेकर ईटीवी भारत की टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की है.
ब्लैक और व्हाइट फंगस में क्या है अंतर?
ब्लैक फंगस नाक से होकर आंखों तक पहुंच जाता है और वह आंखों को डैमेज करने लगता है. इससे डबल विजन की समस्या खड़ी हो जाती है. इसके साथ ही धीरे-धीरे आंखों की रोशनी कम होने लगती है. इस समय रहते सचेत होने की जरूरत है. डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि अगर इस तरह का कोई लक्षण किसी मरीज में मिलता है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. समय रहते अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो जान भी जा सकती है. ब्लैक फंगस के ज्यादातर केस उन मरीजों में सामने आ रहे हैं जिन्हें कोरोना हुआ है. कोरोना के दौरान कुछ मरीजों को ठीक करने के लिए डॉक्टर स्टेरॉयड का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे मरीजों को ब्लैक फंगस का ज्यादा खतरा है. ब्लैक फंगस आंखों और ब्रेन को ज्यादा प्रभावित करता है. ब्लैक फंगस में डेथ रेट 50% के आसपास है. मतलब यह कि औसतन ब्लैक फंगस के शिकार हर दूसरे मरीज की मौत हो जा रही है.
व्हाइट फंगस श्वसन तंत्र पर प्रभाव डालता है. हमारे शरीर के श्वसन प्रणाली से जुड़े अंग इससे प्रभावित होते हैं. व्हाइट फंगस के केस उन मरीजों में भी संभव है जिन्हें कोरोना नहीं हुआ है. यह फंगस फेफड़ा, किडनी, हार्ट, आंत और पेट को प्रभावित करता है. अगर एक बार व्हाइट फंगस खून में आ जाए तो यह खून के जरिये फेफड़ा, हार्ट, किडनी, आंत, पेट समेत सभी अंगों में फैल सकता है. व्हाइट फंगस से मृत्यु दर को लेकर अभी कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है. इसको लेकर अभी रिसर्च की जा रही है.
ब्लैक फंगस को लेकर क्या कहते हैं डॉक्टर?
कोरोना से ठीक होने के बाद ब्लैक फंगस जैसे खतरनाक बीमारी से बचने के लिए रांची के प्रसिद्ध ईएनटी (आंख, कान और गला रोग विशेषज्ञ) स्पेशलिस्ट डॉ. समित लाल का कहना है कि जैसे ही कोई मरीज कोरोना से संक्रमित होता है, उसे शुगर लेवल का ध्यान रखना चाहिए. कोरोना से ठीक और शुगर वाले मरीजों को इसका ज्यादा खतरा है. ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों के लिए एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन रामबाण माना जाता है. लेकिन जिस तरह से मरीजों की संख्या बढ़ रही है उस हिसाब से इंजेक्शन अभी उपलब्ध नहीं है. ऐसे में डॉक्टर वैकल्पिक दवा लगाने को मजबूर हैं लेकिन लगातार एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन की मांग की जा रही है.
व्हाइट फंगस को लेकर डॉक्टरों की राय
रांची के डॉक्टर प्रभात कुमार के मुताबिक व्हाइट फंगस (कैंडिडोसिस) कोई नया फंगस नहीं है बल्कि इसके केस कोरोना काल से पहले भी बड़ी संख्या में मिलते रहे हैं. यह शरीर के कई अंगों में फैल सकता है. इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और इस वजह से यह फंगस खतरनाक हो जाता है. डायबिटीज से पीड़ित मरीज या फिर वैसे मरीज जो लंबे समय से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें इस फंगस का खतरा ज्यादा है. व्हाइट फंगस ब्लैक फंगस की तरह खतरनाक नहीं होता लेकिन अगर यह फेफड़े या पेट तक पहुंच जाए तो काफी दिक्कत हो सकती है. व्हाइट फंगस शरीर के जिस हिस्से में संक्रमण करता है, उसके हिसाब से कई एंटीफंगल दवाएं उपलब्ध हैं.
डॉक्टर यह लगतार सलाह दे रहे हैं कि ब्लैक और व्हाइट फंगस में कोई भी लक्षण शरीर में देखे तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें. शुरुआती दौर में अगर इसका इलाज नहीं हो सका तो आगे जाकर यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है. ब्लैक फंगस में मौत का खतरा थोड़ा ज्यादा होता है. कोरोना से उबरे मरीज खासतौर पर अपना ख्याल रखें.
क्या है येलो फंगस?
डॉक्टरों के मुताबिक यह ब्लैक और व्हाइट फंगस से भी ज्यादा खतरनाक है. चूंकि यह बीमारी नई है तो इसके बारे में काफी कम लोगों को जानकारी है. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में इसका पहला केस सामने आया है. ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर बीपी त्यागी का कहना है कि यह बीमारी सरीसृप यानी रेपटाइल्स में पाए जाते हैं. पहली बार इस तरह की बीमारी इंसानों में देखी गई है. डॉ. त्यागी के मुताबिक इसका एक मात्र इलाज एम्फोटेरासिन इंजेक्शन है. लेकिन ब्लैक और व्हाइट फंगस की तुलना में इस बीमारी में घाव भरने में ज्यादा वक्त लगता है.