रांची: 26 जुलाई 1999 को हिंदुस्तान ने पाकिस्तान को कारगिल की धूल चटाई थी. 90 के दशक का ये वो दौर था जब भारत अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान से सौहार्द की परिकल्पना कर रहा था. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि भारत तमाम गिले शिकवे भुला कर पड़ोसियों से अच्छे संबंध बनाये. इसी क्रम में इन्होंने दोनों देश के बीच बस सेवा की शुरुआत भी की, लेकिन वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान अपनी मक्कारी की कहानी लिख रहा था. पाकिस्तान ने भारत की चोटियों पर बने उन चौकियों पर कब्जा कर लिया था जिसे वह सर्दियों में छोड़ कर नीचे आ जाते थे. लेकिन जैसे ही भारतीय सेना को इसकी भनक हुई हमारे जाबांज सैनिकों के शौर्य और साहस ने पाकिस्तान को एक बार फिर मुंहतोड़ जवाब दिया.
कारगिल विजय: जरा याद उन्हें भी कर लो... झारखंड के योद्धाओं की वीरगाथा
पूरा देश विजय दिवस का जश्न मना रहा है. 26 जुलाई 1999 का ही वह दिन था जब भारतीय सेना ने लगभग 60 दिनों तक चलने वाले युद्ध में विजय प्राप्त किया था और पाकिस्तान को चौथी बार धूल चटाई थी. ये वो दिन था जब पूरा देश भारतीय सेना की वाहवाही कर रहा था. कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. आज हम याद करेंगे कारगिल युद्ध के उन शूरवीरों को जिन्होंने अपने प्राणों की आहूति देकर मां भारती का सिर पूरी दुनिया में ऊंचा कर दिया.
कारगिल युद्ध के समय भारत माता के लिए सैकड़ों शूरवीरों ने अपनी जान की आहुति दी. इस युद्ध में झरखंड के रांची जिले के पिठोरिया निवासी नागेश्वर महतो ने भी अपनी शहादत दी थी. जब शहीद नागेश्वर महतो का पार्थिव शरीर रांची लाया गया था तब भारत माता की जयकारों से पूरी रांची गूंज उठी थी. लोगों ने नम आंखों के साथ गर्व से नागेश्वर महतो का स्वागत किया था.
कारगिल की उस लड़ाई में पलामू के 2 बेटे प्रबोध महतो और युगम्बर दीक्षित ने भी अपने शौर्य का परिचय दिया था. प्रबोध कुमार पठानकोट में तैनात थे लेकिन कारगिल की लड़ाई शुरु होते ही प्रबोध कुमार की तैनाती कश्मीर के डोडा सेक्टर में हो गई थी. जहां युद्ध के दौरान उन्होंने वीरगति को प्राप्त किया था. प्रबोध कुमार के शहीद होने के बाद उनके शव का दाह संस्कार कश्मीर में ही किया गया था.