डॉ बीके सिंह, स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख रांची: सरकार और स्वास्थ्य विभाग के उच्चस्थ अधिकारियों की नाक के नीचे नामकुम स्थित स्वास्थ्य मुख्यालय में पिछले पांच महीने से 206 की संख्या में नए एंबुलेंस पड़े हुए हैं. खुले आकाश के नीचे पड़े-पड़े ये एंबुलेंस बर्बाद हो रहे हैं लेकिन हैरत की बात यह कि कोई भी अधिकारी इस पर बात नहीं करना चाहता. राज्य के दुर्गम और दूर दराज के इलाकों से मरीज को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की भारी कमी है. ऐसे में वहीं नए एंबुलेंस जंग खा रहे हैं. राज्य में एंबुलेंस की यह स्थिति तब है, जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आम जनता के लिए एयर एंबुलेंस शुरू कराने की बात करते हैं.
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ईटीवी भारत ने राज्य के स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख डॉ बीके सिंह से खराब हो रहे नए एंबुलेंस को लेकर सवाल किया तो उनका जवाब हैरान करने वाला था. स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख ने कहा कि 'मैं उसके (एंबुलेंस) संबंध में कुछ नहीं कहना चाहूंगा, उसकी संचिका हमारे पास नहीं है, उसकी विशेष जानकारी मेरे पास नहीं है.' जब ईटीवी भारत के संवाददाता ने पूछा कि क्या नया-नया एंबुलेंस यूं ही सड़ता रहेगा? इस सवाल के जवाब में स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख ने सिर्फ इतना कहा कि उसकी व्यवस्था होगी.
सवाल यह है कि आखिर जब स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख जैसे उच्चस्थ पद पर बैठे अधिकारी खराब हो रहे 206 एंबुलेंस को लेकर चुप्पी साध ले तो कौन बतायेगा कि अस्पताल और मरीजों की सेवा की जगह स्वास्थ्य मुख्यालय में एंबुलेंस क्यों जंग खा रहा है.
विधानसभा के बजट सत्र के दौरान भी उठा था एंबुलेंस का मुद्दा:स्वास्थ्य मुख्यालय में खड़े खड़े बर्बाद हो रहे इन नए एंबुलेंस के मामले को पूर्व मंत्री और विधायक सरयू राय ने विधानसभा में उठाया था. उन्होंने कहा था कि जब एंबुलेंस की गुणवत्ता की जांच हो रही है तो उसकी खरीद ही क्यों की गई थी. विधायक सरयू राय ने कहा था कि नामकुम में 206 एंबुलेंस पड़ी सड़ रही हैं. जिसके जवाब में सरकार की ओर से कहा गया था कि एंबुलेंस की गुणवत्ता की जांच हो रही है. स्वास्थ्य विभाग के सूत्र बताते हैं कि पहले स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख की अध्यक्षता में कमिटी इसकी जांच कर रही थी. फिर स्वास्थ्य निदेशक बदल दिए गए. नए निदेशक प्रमुख पूरे मामले पर कुछ कहना नहीं चाहते और नई कमिटी फिर से नए एंबुलेंस की गुणवत्ता जांच कर रही है.
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निर्दलीय विधायक सरयू राय की मानें तो विभागीय मंत्री और सचिव में एंबुलेंस चलाने को लेकर एकमत नहीं हो पा रहा है. अपर मुख्य सचिव चाहते हैं कि नए सिरे से विज्ञापन निकाल कर किसी नई एजेंसी को इन एंबुलेंस को चलाने की जिम्मेवारी दी जाए जबकि मंत्री बन्ना गुप्ता की इच्छा वर्तमान में 108 एंबुलेंस चला रही एजेंसी को ही मौका देने की है. अब सवाल यह है कि नए एंबुलेंस की गुणवत्ता का सवाल हो या फिर इसके परिचालन का. विभाग को जल्द फैसला लेना चाहिए, अन्यथा अभी धूप और धूल में बर्बाद हो रहा एंबुलेंस बारिश के दिनों में और खराब हो जाएगा. इन एंबुलेंस में एडवांस लाइफ स्पोर्ट सिस्टम (ALS), बेसिक लाइफ सपोर्ट सिस्टम (BLS) और नियोनेटल एंबुलेंस भी शामिल है.
राज्य में 2017 से चल रही है 108 एंबुलेंस सेवा: झारखंड में वर्ष 2017 से निःशुल्क 108 एंबुलेंस सेवा चलाई जा रही है. करीब छह वर्ष मरीजों को सेवा देने के बाद इन एंबुलेंस में से कई आज की तारीख में खराब स्थिति में हैं. ऐसे में अगर नया एंबुलेंस स्वास्थ्य मुख्यालय की जगह अस्पतालों में होता तो उसका लाभ उन मरीजों को होता जिन्हें समय पर अस्पताल पहुंचना जरूरी होता है.