रांची/खूंटी: झारखंड में 32 जनजातियां हैं. इनमें एक जनजाति है बिरहोर जो विलुप्त प्राय की श्रेणी में आ गई है. इस जनजाति के बारे में कहा जाता है कि यह अगर किसी पेड़ को छू देते हैं तो उस पर बंदर कभी नहीं आता. क्योंकि तीर चलाने में इनको महारत होता है और इसी वजह से बंदर भी इनसे डरते हैं. लेकिन जंगलों में निवास करने वाली है जनजाति अब सिमट रही है. अभाव इनकी नियति में है. योजनाएं इनतक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं. लेकिन खूंटी जिला के तेलंगाडीह गांव में रहने वाले 19 बिरहोर परिवार विकास की मुख्यधारा में आने के लिए खेतों में पसीना बहा रहे हैं. जिला प्रशासन और एक स्वयंसेवी संस्था की पहल पर इन लोगों ने 10 एकड़ जमीन पर लेमनग्रास की खेती शुरू की है. इसके लिए कई दिनों तक भूखे प्यासे रहकर इन मेहनतकशों ने पथरीली जमीन को खेती के लायक बना दिया.
मदद मिली तो जमीन बना दिया हरा-भरा
जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसाइटी के बीच जिले में 100 एकड़ में लेमनग्रास की खेती करने को लेकर हुए एमओयू के तहत बिरहोरों ने लेमनग्रास की खेती की है. जिला प्रशासन से मिले सहयोग के बाद सोसाइटी के लोग लगातार उनके बीच जाकर इनकी हौसला अफजाई करते हैं. अब पांच महीने बाद पहली कटाई होगी और तेल निकाला जाएगा. लेकिन अब भी जरूरत है उनकी इस जमीन पर आसवन केंद्र स्थापित करने की. ऐसा हुआ तो बिरहोरों की कमाई लाखों में पहुंच जाएगी. अब बिरहोरों से आसपास के गुडूबुरू, जोजोहातु आदि गांवों के लोग भी लेमनग्रास की खेती की सिखने लगे हैं.