पलामू:हर्बल होली मनाने वाले लोगों को इस बार मायूसी का सामना करना पड़ेगा. लगातार दूसरे वर्ष पलामू में हर्बल रंगों का उत्पादन शुरू नहीं हो पाया. एशिया के बड़े लाह बगान पलामू के कुंदरी में है. यहां के पलाश के पेड़ों में फूल तो आ चुके है, लेकिन इस बार इससे हर्बल रंग तैयार नहीं हो रहा है. 2019 -20 से कुंदरी लाह बगान से हर्बल रंगों का उत्पादन ठप है. 2018 के बाद से कुंदन लाह बगान विवादों में है. 2017 में कुंदरी के पलाश के पेड़ से हर्बल रंगों का उत्पादन शुरू हुआ था. कुंदरी लाह बागान 241 एकड़ में फैला हुआ है और करीब 85 हजार पलाश के पेड़ हैं.
होली में लोगों को नहीं मिल पाएगा हर्बल रंग! पलाश के पेड़ों से हर्बल रंग नहीं हुआ तैयार
हर्बल होली मनाने वाले लोगों को इस बार मायूसी का सामना करना पड़ेगा. इस वर्ष भी पलामू के कुंदरी में हर्बल रंगों का उत्पादन शुरू नहीं हो पाया.
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प्रति वर्ष 12 हजार टन हर्बल रंगों का हो सकता है उत्पादन
कुंदरी लाह बगान में पलाश के इतने पेड़ हैं कि प्रति वर्ष 12 हजार टन हर्बल रंगों का उत्पादन हो सकता है. लाह बगान में तैयार हर्बल रंग 2018 में 4 हजार पैकेट, जबकि 2019 में 4 हजार 500 पैकेट बाजार में उतारा गया था. शुरूआत में इस परियोजना से करीब 5 हजार महिलाओं को रोजगार से जोड़ा गया था. उस दौरान पीएम ने भी हर्बल रंग उत्पादन की सराहना की थी और केंद्र सरकार के किताब में जगह मिली थी. शुरुआत रिद्धि-सिद्धि नाम के संस्था के माध्यम से रंगों का उत्पादन होता था. संस्था के कमलेश सिंह बताते हैं कि उदासीनता के कारण यह परियोजना कमजोर हो गई है. अगले वर्ष से फिर से उत्पादन शुरू होगा और लोगों को हर्बल रंग मिल पाएगा.
जेएसएलपीएस को दी गई उत्पादन की जिम्मेदारी
पलामू डीएफओ राहुल कुमार बताते हैं कि कुंदरी लाह बगान से लाह और अन्य उत्पादन की जिम्मेदारी जेएसएलपीएस को दी गई है. वही इसके उत्पादन और अन्य उत्पादन को देख रही है. पांकी विधायक डॉ शशि भूषण मेहता बताते हैं कि सुंदरी बागान बहुत बड़ा बागान है. इससे भी उत्पादन को कई जगहों पर भेजा जा सकता है. मामले में भी पहल करते हुए उत्पादन शुरू करवाने की कोशिश करेंगे.