पलामू: पलमुआ यह शब्द निकलते ही लोग समझ जाते है कि यह व्यक्ति पलामू, गढ़वा या लातेहार का रहने वाला है. इस इलाके में आम बोल चाल की भाषा मे बोले जाने वाली बोली को लोग कभी भोजपुरी तो कभी मगही बताते हैं. लेकिन अब इस इलाके की बोले जाने वाली बोली को पहचान मिली है, जिसे अब पलमुआ भाषा की संज्ञा दी गई हैं. इस भाषा को एनपीआर (National Population Register) की सूची में जगह मिली है. झारखंड में बोले जाने वाली भाषाओं की सूची में इसे 200 नंबर रखा गया है. पलमुआ भाषा का प्रसार क्षेत्र पलामू, गढ़वा, लातेहार और छत्तीसगढ़ सीमा से सटे हुए इलाके में बोली जाती है.
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पलामू की भाषा को मिली NPR में जगह, जानिए क्या है इसका इतिहास - NPR
पलामू की भाषा पलमुआ को एनपीआर (National Population Register) की सूची में जगह मिली है. झारखंड में बोली जाने वाली भाषाओं की सूची में इसे 200 नंबर रखा गया है. पलमुआ भाषा को पहचान मिलने के बाद स्थानीय लोगों ने इसे जिले के लिए गौरव बताया है.
भोजपुरी, मगही और नागपुरी का मिश्रण है पलामू
साहित्यकार हरिवंश प्रभात के मुताबिक भोजपुरी, मगही और नागपुरी को मिला कर पलमुआ भाषा बनाया गया है. पलामू में मगही भाषा का अधिक प्रभाव है जबकि भोजपुरी और नागपुरी का भी प्रभाव है. 17 वीं शदी के बाद से बड़ी संख्या में भोजपुरी और मगही बोलने वाले लोग इस इलाके में आए थे बाद में दोनों भाषा नागपुरी के साथ मिक्स हो गई थी. जंगलों पहाड़ों के ये सिलसिला देख ले, चल चल परदेशी पलामू जिला देख ले, यह रचना कवि साहित्यकार हरिवंश प्रभात की है जिसे पलमुआ भाषा की पहचान बताया जाता है. इस रचना के लिए हरिवंश प्रभात को राज्य सरकार ने झारखंड रत्न से नवाजा है. झारखंड के वे पहले शिक्षक हैं जिन्हें पहली बार राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है. वे बताते हैं कि महान चेरो राजा मेदिनीराय के कहावत धनी धनी राजा मेदनीया घर घर बाजे मथनिया में भी पलमुआ भाषा की झलक है. इससे यह पता चलता है कि 17 वी सदी के मध्य से इस भाषा की शुरूआत हुई है या शुरूआत हो चुकी थी.
500 वर्षो के बाद मिली पहचान
पलमुआ भाषा को 17वीं शदी के बाद पहली बार किसी तंत्र में जिक्र हुआ है. पलामू में बोले जाने वाली बोल चाल की भाषा को पलमुआ भाषा बोलते है. सोशल मीडिया में आवाज उठाने वाले और पलमुआ भाषा पर शोध कर रहे डॉक्टर गोविंद माधव का कहना है कि पलामू के लिए गौरव की बात है कि पलमुआ भाषा को मान्यता मिली है. वे लंबे वक्त से इसके लिए आवाज उठा रहे थे. यह गौरवशाली क्षण है. उनलोगों में कुछ युवाओं की टोली बना कर सोशल मीडिया पर पेज बनाया था, जिसके लाखों फॉलोअर्स हैं. इस पेज पर सारी रचना पलमुआ भाषा मे ही होती है. पलमुआ भाषा को लेकर आवाज उठा रहे युवा सन्नी शुक्ला ने कहा कि यह पलामू के इलाके के लिए खुशी की बात है कि हमारी भाषा को पहचान मिल गई है.
45 लाख से ज्यादा लोग बोलते हैं पलमुआ भाषा
पलमुआ भाषा को 45 लाख से अधिक की आबादी बोलती है. जिसका प्रभाव बिहार के औरंगाबाद, गया और छत्तीसगढ़ में भी है. पलामू जिले की 22 लाख से अधिक अबादी पलमुआ भाषा ही बोलती है. लातेहार और गढ़वा के लोग भी पलमुआ बोली ही बोलते हैं.