पलामूः झारखंड के पिछड़े जिले पलामू से मजदूरों का पलायन लगातार जारी है. स्थिति यह है कि पेट की आग बुझाने के लिए छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियां मजदूरी करने को विवश हैं. हरिहरगंज सड़क हादसे में जिन मजदूरों की मौत हुई वह मजदूरी करने के लिए घर से निकले थे. इसमें पांच लड़कियां शामिल हैं, जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम थी. बताया जा रहा है कि सिस्टम की अनदेखी की वजह से सरकारी योजनाओं का लाभ गरीब परिवारों को नहीं मिलता है. इससे वे पलायन करने को मजबूर होते हैं.
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सड़क हादसे में जिन मजदूरों की मौत हुए हैं, वे मेदिनीनगर से करीब 70 किलोमीटर दूर जीरो और आसपास के गांवों के रहने वाले थे. यह इलाका नक्सल प्रभावित हैं और विकास से कोसों दूर, जहां रोजगार के कोई अवसर लोगों को नहीं मिलता है.
धान काटने मजदूर जाते हैं बिहार
जीरो इलाके से प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में धान कटने के लिए लोग बिहार जाते हैं. इनमें बड़ी संख्या में लड़कियां भी शामिल होती है. करीब 36 घरों की आबादी वाले जीरो गांव के 32 लोग धनकटनी के लिए बिहार के औरंगाबाद जिले के ओबरा गए हुए थे. 32 लोगों में से 20 लड़कियां शामिल थी. दुर्घटना के शिकार हुई कालो कुमारी के भाई कहते हैं कि हमलोग मजबूरी में धान काटने बिहार जाते हैं. उन्होंने कहा कि नवंबर माह में जाते हैं और जनवरी में लौटते हैं.
प्रत्येक वर्ष मजदूरों का पलायन
जीरो गांव के लोग प्रत्येक वर्ष एक महीने के लिए बिहार जाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि एक महीने के धन कटनी में मिली मजदूरी से एक वर्ष तक पेट भरते हैं. मजदूर प्रमोद भुइंया ने बताया कि मजबूरी के रूप में प्रत्येक दिन नौ किलोग्राम धान मिलता है. उन्होंने कहा कि एक महीने में एक मजदूर ढाई क्विंटल धान कमा कर लौटते हैं. उन्होंने कहा कि जीरो गांव में कोई भी व्यक्ति ग्रेजुएट नहीं है.
योजना शुरू करने की जरूरत
पांकी के विधायक डॉ. शशि भूषण मेहता ने बताया कि पलायन रोकने को लेकर सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए. उन्होंने कहा कि पलायन की समस्या खत्म नहीं हुआ तो विधानसभा में सवाल उठाएंगे. उन्होंने कहा कि इलाके में मजदूरों के लिए कई राहत कार्य और योजना शुरू करने की भी आवश्यकता है.