पलामू: नक्सलियों के गढ़ में बुलेट की आवाज अब इतिहास बन गई है, अब ग्रामीण बूट के आवाज के फ्रेंडली हो गए हैं. यह बदलाव पलामू के झारखंड-बिहार सीमा से सटे दर्जनों गांव में हुआ है. अब गांव में वोट बहिष्कार की चेतवानी देने वाले माओआदियों का प्रभाव कम हो गया है.
डरते थे ग्रामीण
गांव के नव युवक, महिला, बुजुर्ग वोट देने को लेकर उत्साहित हैं. ग्रामीण कहते हैं कि वोट डालेंगे पुलिस कैंप से बदलाव आया है और सरकार ने माहौल को बदला है. पलामू में माओवादियों के भय से पांच दर्जन से अधिक मतदान केंद्रों को बदल दिया जाता था, जिस कारण बड़ी आबादी वोट नहीं दे पाती थी. वोट देने वाले ग्रामीणों को 16 से 20 किलो मीटर का सफर करना पड़ता था. वहीं माओवादियों के वोट बहिष्कार से भी वे डर जाते थे.
कई ग्रामीण पहली बार वोट देंगे
पलामू के डगरा, चेतमा, रायबार, महूदण्ड, माहूर, पथरा, सरसोत, सलैया, मंसुरिया जैसे पांच दर्जन से अधिक गांव में पहली बार मतदान केंद्र बनाया गया है. माओआदियों के भय से इन गांव के मतदान केंद्र को बदल दिया जाता था. रायबार के नारायण यादव के परिवार में पांच सदस्य हैं. वह बताते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में परिवार से सिर्फ इन्होंने ने ही वोटिंग किया था. वोटिंग के लिए उन्हें तीन घंटे का पैदल सफर तय कर सरईडीह जाना पड़ा था. लेकिन वे इस बार खुस हैं परिवार के सभी सदस्य वोट देंगे.