पलामूः बूढ़ा पहाड़ का इलाका झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ के माओवादियों का ट्रेनिंग कैंप रहा है. यह इलाका करीब 52 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इसकी सीमा झारखंड के लातेहार, गढ़वा जिला और छत्तीसगढ़ के बलरामपुर से सटा हुआ है. तीन दशक तक बूढ़ा पहाड़ और उसके आसपास के इलाकों में नक्सलियों की तूती बलती रही है.
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सितंबर अक्टूबर 2022 में बूढ़ा पहाड़ पर माओवादियों के खिलाफ अभियान ऑक्टोपस चलाया गया. जिसके बाद माओवादी बूढ़ा पहाड़ को छोड़ कर भाग गए हैं. आज बूढ़ा पहाड़ पर सुरक्षाबलों का कब्जा हो गया है. माओवादियों के पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी (PLGA) का मुख्यालय कभी बूढ़ा पहाड़ हुआ करता था. बूढ़ा पहाड़ पर ही माओवादियों के कैडरों को गुरिल्ला वार की ट्रेनिंग दी जाती थी. यह इलाका नक्सलियों के छकरबंधा से सारंडा कॉरिडोर के बीच की कड़ी थी. सारंडा का इलाका माओवादियों के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो का मुख्यालय, जबकि बूढ़ा पहाड़ माओवादियों के बिहार झारखंड उत्तरी छत्तीसगढ़ सीमांत एरिया का मुख्यालय था.
बूढ़ा पहाड़ को माओवादियों ने क्यों चुना था? बूढ़ा पहाड़ का करीब 50 प्रतिशत क्षेत्र पलामू टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आता है. पूरा इलाका घने जंगल और पहाड़ियों की श्रृंखला है. इस इलाके में आदिम जनजाति समुदाय की बहुलता है. 2011-12 तक लातेहार का बूढ़ा पहाड़ माओवादियों का ट्रेनिंग कैंप और यूनिफाइड कमांड हुआ करता था. सरयू के इलाके में सुरक्षाबलों की घेराबंदी के बाद माओवादी वहां से निकल कर बूढ़ा पहाड़ को अपना ट्रेनिंग कैंप और यूनिफाइड कमांड बनाया था.
यूनिफाइड कमांड बनाने में माओवादियों के पोलित ब्यूरो सदस्य रहे देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद की भूमिका रही थी. 2018 में अरविंद की मौत के बाद तेलंगाना के रहने वाले सुधाकरण ने बूढ़ा पहाड़ की कमान संभाली थी. 2020-21 में सुधाकरण ने पूरी टीम के साथ तेलंगाना में आत्मसमर्पण कर दिया था. सुधाकरण के बाद मिथिलेश मेहता उर्फ बनबिहारी के पास बूढ़ा पहाड़ की कमान थी. 2022 में मिथिलेश मेहता के गिरफ्तार होने के बाद सौरव उर्फ मारकस बाबा को माओवादियों ने बूढ़ा पहाड़ का नया कमांडर बनाया. कुछ दिनों पहले सौरव उर्फ मारकस ने बिहार के इलाके में आत्मसमर्पण कर दिया है.