पलामूःपलामू में भीख मांग कर जीवन यापन करने वाले पांडू थाना क्षेत्र के मुरुमातु के महादलित अचानक चर्चा का केंद्र बने हुए हैं. कहा जाता है कि ये महादलित जिस इलाके में अपनी बेटी की शादी करते हैं, उस इलाके में भीख मांगने नहीं जाते हैं. उस इलाके को अपनी बेटी के परिजनों के लिए छोड़ देते हैं. इसी से इनके संबंध में कहावत है कि राजा को पता नहीं और ये महादलित गांव बांट दिए. ये कहावत यहां के सामाजिक आर्थिक हालात की ओर भी इशारा करते हैं.
पलामू में 760 महादलित परिवारों को नहीं मिल पाया स्थाई बसेरा, मात्र एक युवक को करा पाई परास्नातक - पलामू में उजाड़े गए महादलित
पलामू में उजाड़े गए महादलितों को सरकार आज तक स्थायी बसेरा नहीं दे पाई है. मुरुमातु के महादलित कभी यहां कभी वहां तंबू में जीवन गुजार रहे हैं. इस समुदाय में शिक्षा की स्थिति इतनी बुरी है कि इस समुदाय का मात्र एक युवक इस इलाके में परास्नातक हो पाया है.
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बता दें कि पलामू प्रमंडल में महादलितों के 760 परिवार हैं. आजादी के 75 वर्ष बाद भी ये दयनीय स्थिति में हैं. इनकी सामाजिक और आर्थिक दशा में बदलाव नहीं हुआ है. पलामू से सटे हुए बिहार और यूपी के इलाकों में इनका राजनीतिक कद भी बढ़ा है और सत्ता के शीर्ष तक भी पंहुचे हैं. लेकिन पलामू के इलाके में इनको भीख मांग कर गुजारा करना पड़ रहा है. पलामू के चियांकि, पड़वा, लेस्लीगंज, बैरिया जबकि गढ़वा के नगर उंटारी के इलाके में इनका स्थायी प्रवास है. लेकिन बाकी इलाके में इनका स्थायी ठिकाना नहीं है. पलामू के हुसैनाबाद के रहने वाले बीरेंद्र ने बताया कि उन्हें देखने वाला कोई नहीं है, उन्हें सरकारी योजना का लाभ तक नहीं दिया जाता. इतना ही नहीं उनके पास कोई सरकारी कागजात तक नहीं हैं.