पलामूः झारखंड के जंगलों का नॉर्थ ईस्ट और बर्मा से कनेक्शन है. राज्य के कई इलाकों में सागवान के पेड़ों से पटे कई जंगल भरे पड़े हैं. पलामू टाइगर रिजर्व समेत कई इलाकों में सागवान के पेड़ के बड़े जंगल मौजूद है. सागवान के पेड़ का इस्तेमाल इमारती लकड़ियों के लिए होता है. झारखंड में पाए जाने वाले सागवान की बड़ी ही रोचक कहानी है.
किसी जमाने में पलामू के इलाके में बांस के बड़े बड़े जंगल हुआ करते थे 70 के दशक तक इसका व्यापार फलता-फूलता रहा. व्यापार के कारण बांस के जंगल कम होते गए. इन जंगलों को भरने के लिए अंग्रेजों ने सागवान को लगाने का काम शुरू हुआ. पलामू में पाए जाने वाला सागवान बर्मा और नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों से लाया गया था. पलामू में अंग्रेजों के शासन काल से ही सागवान के पेड़ लगाने का काम शुरू हुआ था. एक अनुमान के मुताबिक पलामू रेंज के इलाके में सागवान के छह लाख से भी अधिक पेड़ मौजूद हैं.
हाथियों पर पड़ा प्रभावः झारखंड के इलाके में जैसे-जैसे सागवान के पेड़ बढ़ते गए वैसे-वैसे वन्य जीवों की संख्या कम होती गयी. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि सागवान के पत्तों को कोई भी वन्य जीव नहीं खाता है. हाथी को बांस के पेड़ काफी पसंद है. जिन इलाकों में सागवान के पेड़ बड़े हुए, उन इलाकों में हाथियों की संख्या कम होती गयी. जिसके बाद हाथियों ने इलाके को ही बदल दिया.
प्रोफेसर बताते हैं कि सागवान के पेड़ के नीचे कोई भी दूसरा पौधा फलता-फूलता नहीं है. इसके पत्ते काफी कड़वे होते हैं, जिस कारण वन्य जीव इसे खाते ही नहीं है. अंग्रेजों ने सागवान के पेड़ से जंगलों को भरने के लिए लगाया गया था. क्योंकि अंग्रेजों को व्यवसायिक इस्तेमाल वाले पेड़ चाहिए थे, जिस कारण इनकी संख्या इन इलाकों में लगातार बढ़ती गयी. वर्तमान में पलामू में इनकी संख्या 6 लाख के करीब है.
सागवान वन माफिया की पहली पसंदः पलामू के इलाके में सागवान के जंगल लगातार फैलते जा रहे हैं. कभी यह इलाका सखुआ, पलाश और महुआ के पेड़ के चर्चित हुआ करता था, अब यह इलाका सागवान के पेड़ के लिए चर्चित हो रहा है. सागवान बाजार में काफी ऊंची कीमत पर बिकती है. इसका इस्तेमाल इमारती लकड़ी के रूप में होता है, जिस कारण कई इलाकों में इसके जंगल भी काटे जा रहे हैं. पर्यावरणविद कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि पेड़ कटना बेहद गंभीर है, मामले में हर स्तर पर कार्रवाई करने की जरूरत है. वो बताते हैं कि सागवान एक इमारती पेड़ है, जिसका इस्तेमाल व्यापार में अधिक हो रहा है. सागवान का पेड़ काफी धीरे-धीरे बढ़ता है लेकिन यह काफी मजबूत होती. एक पेड़ को तैयार होने में 16 से 20 वर्ष लग जाता है.