पाकुड़: जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड स्थित जालोकुंडी गांव में रह रहे पहाड़िया आदिम जनजाति शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में काफी पिछड़े हैं. इनके पिछड़ेपन का अंदाजा इसी से लगता है कि आज भी इनके जीवन स्तर के साथ-साथ इनके रहन सहन और सामाजिक परिवेश में कोई बदलाव नहीं आया. झारखंड अलग राज्य बना, इन्हें लगा था कि अब तो दिन बहुरेंगे, लेकिन हुआ कुछ नहीं.
इनके बारे में जानिए
सौरिया पहाड़िया झारखंड की एक आदिम जनजाति है, जो मुख्य रूप से संथाल परगना प्रमंडल के साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका और जामताड़ा जिलों में निवास करती है. इसके सिवा इस जनजाति की कुछ आबादी रांची, प. सिंहभूम और धनबाद जिलों में भी पाई जाती है. 2011 के अनुसार इनकी जनसंख्या 46, 222 है. सौरिया पहाड़िया जनजाति के अधिकांश गांव लहरदार पहाडियों की चोटियों और जंगल से भरे पहाड़ी ढलानों पर बसे होते हैं.
इनके गौत्र नहीं होते
सौरिया पहाड़िया पुरूषों के लिए परंपरागत पोशाक धोती, गंजी और पगड़ी है. महिलाओं के लिए साड़ी और टोपवारे हैं, वहीं सौरिया पहाड़िया जनजाति एक अन्तर्विवाह जनजाति है, सौरिया पहाड़िया जनजाति के बीच गोत्र नहीं होते. सौरिया पहाड़िया जनजाति के बीच देवी- देवीताओं को वर्ष का नया अन्न चढ़ाना त्यौहार के रूप में मनाया जाता है.