पाकुड़: जिले के सदर प्रखंड के पोचाथोल गांव के लोगों का मुख्य पेशा वर्षों से खेती के अलावे पत्थर खदानों और क्रशर मशीनों में मजदूरी करना रहा है. वर्षा आधारित कृषि रहने के कारण गांव के लोग रोजगार के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं. वर्षा के अभाव में खेती का न होना और गरीबी से मुक्ति की चाह ने ही गांव की आदिवासी महिलाओं के जीवन स्तर में ऐसा बदलाव ला दिया है कि आज वह हजारों रुपए महीने की कमाई कर रही हैं. महिलाए आज खुद आत्मनिर्भर बन रही है.
घर का चौका बर्तन और परिजनों की देखभाल से समय निकालकर क्रोयलर चिकन का पालन कर रही हैं और उसे बाजारों में ले जाकर बेचने का काम कर रही हैं. मुर्गी पालन से जुड़ी गांव की आदिवासी महिलाएं बताती हैं कि वह पहले किसी तरह अपने परिवार का भरण पोषण करती थी, लेकिन जब से वह राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह से जुड़ी उनके जीवन में बदलाव आ गया.
मुर्गी पालन से जुड़ी महिलाओं ने बताया कि समूह से जुड़ने के बाद उन्हें मुर्गी पालन के लिए झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने पहले प्रशिक्षण दिया और फिर चूजा मुहैया कराने का काम किया. जोहार योजना के तहत मुर्गी पालन से जुड़ी महिलाओं को चूजा मुहैया कराने के लिए मदर यूनिट का निर्माण कराया गया. मदर यूनिट से 50 से 55 रुपए की दर से 50 चूजा मुहैया कराया जाता है. 50 से 55 रुपए में खरीदा गया चूजा एक महीने के अंदर ही 100 से 200 की आमदनी आदिवासी महिलाओं को करा रहा है. महिलाओं को मुर्गी पालन के लिए शेड के अलावे उसका आहार, ड्रिंकर भी जोहार योजना के तहत मुहैया कराया गया है.
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झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के जिला कार्यक्रम प्रबंधक प्रवीण मिश्रा ने बताया कि ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए जोहार योजना के तहत उन्हें मुर्गी पालन से जोड़ा गया है. डीपीएम ने बताया कि कम लागत में मुर्गी पालन कर महिलाएं अपनी आय दोगुनी कर रही है और उन्हें वित्तीय सहायता भी मुहैया कराया जा रहा है.