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SPECIAL: लॉकडाउन में जानिए बीड़ी मजदूरों की लाचारी, आखिर कौन लेगा इनकी सुध

ऐसे तो कोरोना के कहर से समाज का हर वर्ग परेशान है. लेकिन एक वर्ग ऐसा है जिनकी ओर अभी तक किसी की नजर नहीं गई और वो वर्ग है बीड़ी बनाने वाले मजदूर. झारखंड में पाकुड़ जिले को बीड़ी उद्योग के एक बड़े हब के रुप में जाना जाता है जहां इस धंधे में 50 हजार मजदूर काम करते हैं.

Bidi laborers of Pakur
बीड़ी मजदूरों की लाचारी

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Published : Apr 21, 2020, 5:00 PM IST

Updated : Apr 21, 2020, 6:38 PM IST

पाकुड़: देश भर में कोरोना वायरस से बचाव और रोकथाम को लेकर शासन और प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद है. कोरोना को हराने की चल रही मुहिम में लॉकडाउन हो या सोशल डिस्टेंसिंग सबका पालन कराने के साथ जरूरतमंदों को भोजन मुहैया कराने, सैनिटाइजर और मास्क उपलब्ध कराने के साथ-साथ प्रवासी मजदूरों को क्वारेंटाइन सेंटर में रखने का काम बीते एक माह से चल रहा है.

देखिए मजदूरों की लाचारी पर स्पेशल रिपोर्ट

लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जिस पर किसी की नजर नहीं है. इनके कारोबार से जुड़ी कंपनी से लेकर जिला प्रशासन तक कोई भी इनका सुध नहीं ले रहा है. हम बात कर रहे हैं जिले के बीड़ी मजदूरों की. इस वर्ग को मजबूरन अब दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लॉकडाउन में कुछ शर्तों के साथ दी जाने वाली विशेष छूट की घोषणा के बाद, इस वर्ग के लोगों में यह आस जगी थी कि इनका जिवन चर्या फिर से पटरी पर लौट आएगा. लेकिन इन्हें अगले आदेश का इंतजार करना होगा.

बीड़ी मजदूरों की लाचारी

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झारखंड के पाकुड़ जिले के सदर प्रखंड के रहशपुर, इलामी, हीरानंदपुर, झिकरहट्टी, मनीरामपुर, जानकीनगर, रामचंद्रपुर, अंजना, सीतेशनगर, सीतापहाड़ी, नवादा आदि दर्जनों ऐसे गांव हैं जहां की ग्रामीण महिलाएं अपने अपने घरों में बीड़ी बनाने का काम करती थी और कोरोना वायरस ने इन बीड़ी मजदूरों की आर्थिक स्थिति पर ऐसा चोट किया है कि आज भी बेकार घर में बैठी हुई है.

50,000 मजदूर बनाते हैं बीड़ी

जिले के सदर प्रखंड के दर्जनों गांव के लगभग 50 हजार बीड़ी मजदूर बीते एक माहीने से पूरी तरह घर में बैठ गए हैं. अपने-अपने घरों में बीड़ी बनाने वाली इन मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी है. आखिर हो भी क्यों नहीं, क्योंकि इनके परिवार के मुखिया जो पत्थर खदानों और क्रशरों में काम करते थे, वे भी इन उद्योगों के बंद हो जाने के कारण बेकार बैठे हुए हैं.

बीड़ी मजदूरों की लाचारी

शासन-प्रशासन के अलावे कई संगठनों से जुड़े लोग आपदा की इस घड़ी में कुछ परिवारों को सुखा राशन तो मुहैया करा रहे हैं परंतु इनकी परिवारों की संख्या के सामने ये राहत सामग्री बौना साबित हो रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि इन मजदूरों को रोजी रोजगार कब मिलेगा और इनकी बदतर स्थिति कब सुधरेगी.

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इन बीड़ी मजदूरों के सामने एक ओर कोरोना वायरस तो दूसरी और बेबस और लाचारी है. इन बीड़ी मजदूरों की बदहाल दशा को खुशहाल बनाने के लिए न तो बीड़ी कारखानों के मालिक और न ही इन्हें केंदू पत्ता और तंबाकू पहुंचाने वाले मुंशी ने अबतक कोई मदद की है. मुंशी हो या बीड़ी कारखानों के मालिक या मैनेजर सबने इनसे मुंह फेर लिया है.

बीड़ी मजदूरों की लाचारी

100 से 150 रुपए मिलते हैं दिहाड़ी

सरकार द्वारा लॉकडाउन लागू के बाद जिले में संचालित आधा दर्जन बीड़ी फैक्ट्रियों में ताला लग गया है और घर बैठे बीड़ी बनाने वाली लगभग 50 हजार बीड़ी मजदूरों का काम छीन गया है. मुंशी इन्हें तंबाकू और केंदू पत्ता नहीं पहुंचा रहा जिस कारण रोजाना 100 से 150 रुपए कमाने वाली इन बीड़ी मजदूरों को फूटी कौड़ी भी नसीब नहीं हो रही है. जिले में प्रतिमाह लगभग 25 से 30 लाख बीड़ी बनाये जाते थे और बनायी गयी बीड़ी पश्चिम बंगाल के अलावे असम, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को भेजा जाता था परंतु लॉकडाउन के बाद बीड़ी का कारोबार पूरी तरह ठप हो गया है.

Last Updated : Apr 21, 2020, 6:38 PM IST

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